यूपीनामा: यूपी में ओबीसी की जंग,तय नहीं कौन किसके संग ?

हेमंत तिवारी 
सियासत : विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में पाले खिचने लगे हैं और लड़ाई के हथियार पैने किए जा रहे हैं। बीते दो लोकसभा चुनावों और पिछले विधानसभा चुनावों में बंपर जीत का स्वाद चख चुकी भारतीय जनता पार्टी अपना मेन्यू बदलने को तैयार नहीं है। भाजपा ने एक बार फिर से यूपी की वैतरणी पार करने के लिए ओबीसी पर दांव लगाने का फैसला कर लिया है।
अकेले उत्तर प्रदेश में ही नही बल्कि भाजपा ने तो पूरे देश के लिए लक्ष्य बना लिया है कि ओबीसी समुदायके  बड़े हिस्से को अपने पाले में करना है। ख़ासकर चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में इसके लिए वह जमकर पसीना बहाने जा रही है। उत्तर प्रदेश में 45 फ़ीसदी के आसपास ओबीसी समुदाय की आबादी है और इसमें भी अति पिछड़ा वर्ग को जोड़ने पर पार्टी का ज़्यादा जोर है। पार्टी की यह कवायद सोमवार से ही दिखने लगी है जब उसने हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों को आर्शीवाद यात्रा निकालने का फरमान सुनाया।
गौरतलब है कि अब तो संसद के दोनों सदनों में ओबीसी विधेयक पास हो चुका है और बीजेपी मोदी सरकार के इस क़दम को उत्तर प्रदेश में इस समुदाय के लोगों के बीच जोर-शोर से लेकर जाने वाली है। पार्टी ने अपने ओबीसी मोर्चा को कुछ इस तरह बुना है कि इसमें इस समुदाय की लगभग सभी जातियों को प्रतिनिधित्व मिला है।
पार्टी ने अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश ओबीसी मोर्चा की जो 26 सदस्यों वाली प्रदेश स्तरीय टीम का एलान किया है, उसमें इस समुदाय की ताक़तवर जातियों- यादव, कुर्मी, लोध, जाट से लेकर अति पिछड़ी जातियों- निषाद, राजभर, कुशवाहा, प्रजापति, पाल, चौरसिया और तेली (साहू) समाज से आने वाले नेताओं को जगह दी है। जबकि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कश्यप समाज से आने वाले नरेंद्र कश्यप को दी गई है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि सभी जातियों को जगह मिलने से उन्हें बीजेपी के और नज़दीक लाने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 79 जातियां हैं, इसमें से यादव 18-20 फीसदी  कुर्मी 8 फीसदी, लोध और हिंदू जाट भी 8 फीसदी  हैं जबकि अति पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा भी ओबीसी की ताक़त को मज़बूत करता है। इन जातियों से इतर कुशवाहा, मौर्या, सैनी और शाक्य भी 12-14 फीसदी की हैसियत रखते हैं। इनके बाद निषाद, कश्यप, बिंद, मल्लाह, केवट और कहार की आबादी ओबीसी समुदाय की 6-8 फीसदी फीसदी है।
तय योजना के मुताबिक बीजेपी उत्तर प्रदेश में ‘मोदी समर्थन सम्मेलन’ भी करेगी। प्रदेश में ऐसे 70 सम्मेलनों की योजना तैयार कर ली गई है। उत्तर प्रदेश के हर जिले में एक सम्मेलन होगा और ये सम्मेलन तीन महीने तक चलेंगे। इस दौरान पार्टी ओबीसी समुदाय के हक़ में मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए क़दमों का प्रचार करेगी। हाल ही में भाजपा ने मोदी के मंत्रिमंडल में पिछड़े वर्ग से 27 मंत्री बनाए जाने के वे का जमकर प्रचार किया है। इसके साथ ही उसने नीट की परीक्षा में ओबीसी को 27 फीसदी का आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले को जमकर भुनाने की कोशिश की है।
उत्तर प्रदेश में पिछले कई चुनावों से ओबीसी पर ही दांव खेलती रही भाजपा के सामने इस बार दबाव तो ही और दिक्कत भी है। वर्तमान में यूपी में बीजेपी के पास केशव प्रसाद मौर्य के रूप में एक बड़ा चेहरा है। लेकिन पार्टी इस सवाल को लेकर दबाव में है कि उसने 2017 के चुनाव में ओबीसी समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। जबकि केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी समुदाय से ही आते हैं। हालांकि इन दिनों जिस तरह से एक बार फिर से भाजपा में मौर्य को तवज्जों मिल रही है उससे साफ लगता है कि पार्टी अब कम से कम इस गलती को सुधारना चाहती है।
इसके अलावा स्वतंत्र देव सिंह को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। बीजेपी को 2017 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में ग़ैर यादव जातियों का अच्छा समर्थन मिला था, इसलिए पार्टी का अच्छा-खासा जोर ग़ैर यादव जातियों के वोटों को जोड़ने पर भी है। भाजपा अपने संगठन से जुड़े अति पिछड़ी जाति के नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षाओं को पंख लगाकर व उन्हें सरकार सहित संगठन में महत्वपूर्ण पद देकर अपने साथ न केवल जोड़े रखना चाहती है बल्कि उन्हें सियासी लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर ही दिखाना भी चाहती है। बीते कुछ दिनों में भाजपा ने इसके कई उदाहरण भी पेश किए हैं।
हालांकि एसा नहीं है कि भाजपा के सामने चुनौतियां नहीं हैं। बीते कुछ सालों में उसका ओबीसी का मजबूत आधार दरका भी है। कुछ महीने पहले यूपी में हुए पंचायत चुनावों में इसका नजारा भी दिखा था जब पार्टी को ग्रामीण इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था। जानकारों का कहना है कि भाजपा के लिए राजभर भी एक बड़ा फैक्टर है। जो प्रदेश में बहुत सी जगहों पर निर्णायक तो नहीं पर नाराजगी की दशा में नुकसान पहुंचा सकते हैं।
भाजपा की चिंता ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा को लेकर भी है। इस मोर्चे में 10 छोटे दलों का गठबंधन है, जो अति पिछड़ा वर्ग की जातियों में बीजेपी के वोटों में बड़ी सेंध लगा सकता है। पूर्वांचल की 100 सीटों पर राजभर समुदाय के मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं। इसीलिए, स्वतंत्र देव सिंह ने कुछ दिन पहले राजभर से मुलाक़ात की थी और बीजेपी उन्हें अपने पाले में खींचना चाहती है।
इसके अलावा भाजपा के लिए निषाद समुदाय भी बेहद अहम है और ओबीसी समुदाय में इसकी आबादी 18 फ़ीसदी है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद मोदी मंत्रिमंडल के हालिया विस्तार में अपने बेटे प्रवीण निषाद को मंत्री न बनाए जाने से नाराज भी हैं। और उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले अपनी राहें अलग कर सकते हैं।
भाजपा के अंदरुनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने अपनी ओर से इस बात की पूरी तैयारी कर ली है कि अगर राजभर साथ नहीं आते हैं और किन्ही कारणों से संजय निषाद भी अलग हो जाते हैं तो उन हालात में उसे ओबीसी व अति पिछड़े मतो का ज्याजा नुकसान नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की एक अन्य ताकतवर जाति कुर्मी को लेकर भी भाजपा सजगता का परिचय दे रही है।
मोदी सरकार ने नाराज़ चल रहीं अनुप्रिया पटेल को फिर से मंत्री बनाकर कुर्मियों को साथ रखने की कोशिश की है। भाजपा जानती है कि ओबीसी समुदाय जिस तरह एकजुट हुआ है, उसमें उसे हर वह काम करना होगा जिससे यह समुदाय उसके साथ रहे और उत्तर प्रदेश के चुनाव में उसकी नैया पार लग सके।
हालांकि वह जातीय जनगणना के मुद्दे पर जबरदस्त दबाव में भी है और ओबीसी समुदाय के नेताओं ने उसे घेर लिया है। ओबीसी के तमाम नेता उनके समुदाय की आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग को लेकर क़दम उठाने के लिए मोदी सरकार से संसद के सत्र में कर चुके हैं।
भाजपा को यह भी अंदेशा है कि अब तक सरकार में संगठन में उचित प्रतिनिधित्व न देने का मुद्दा उठाकर विपक्षी दल और खास कर समाजवादी पार्टी ओबीसी को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश कर सकते हैं। हाल के दिनों में अखिलेश यादव ने इसी तरह की कवायद भी शुरु की है। भाजपा के लिए अखिलेश के पाले में परंपरागत रुप से जाने वाले ओबीसी मतो को उधर जाने से रोकना भी होगा।