राजेश श्रीवास्तव
दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले एक महीने से जो चल रहा है । उसे उचित तो कतई नहीं कहा जा सकता। इस प्रदर्शन को भले ही लोग यह कहें कि लोग अपनी स्वेच्छा से आकर शांति तरीके से अपनी बात रख रहे हैं। लेकिन जिस तरह से इन प्रदर्शनकारी लोगों की संख्याओं में पुरुषों की संख्या बेहद कम और महिलाओं व बच्चों की संख्या ज्यादा है। इससे साफ है कि इनके पीछे कोई तीसरी शक्ति काम कर रही है। लेकिन आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि अगर यही स्थिति रही तो यहां पर कभी भी रामदेव कांड को दोहराया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो इसके लिए दिल्ली पुलिस ने तैयारी भी पूरी कर ली है, बस इंतजार है तो अधिकारियों के आदेश का।
दूसरी तरफ जो दिख रहा है उससे तो यह भी कहा जा सकता है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जिस तरह का प्रदर्शन शाहीन बाग में चल रहा है वही सही मायनों में प्रदर्शन है और इससे अन्य प्रदर्शकारियों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। वरना जो प्रोटेस्ट अन्य जगहों पर चल रहे हैं वो दंगे से ज्यादा कुछ और नहीं हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से आने वाली बर्फीली हवाओं ने दिल्ली की फिजा को अपनी आगोश में ले लिया है। हड्डी गला देने वाली ठण्ड है। सर्दी का आलम कुछ ऐसा है कि लोग शाम होते ही अपने अपने घरों में लौट जाते हैं लेकिन शाहीन बाग इलाके में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में महिलाएं 13 दिनों से लगातर धरने पर हैं। ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ (घ्न्धप्द्गपप् देश की एक बड़ी आबादी सड़कों पर है। तमाम ऐसे मामले हमारे आ चुके हैं जिसमें कानून के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने ‘कानून’ अपने हाथ में लिया।आगजनी हुई, पत्थरबाजी को अंजाम दिया गया। उपद्रव हुआ और शांति को प्रभावित किया गया। अब इसी प्रदर्शन की तर्ज पर पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। लखनऊ में भी बड़ी संख्या में लोग दो दिन से जमे हैं।
शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रही ये महिलाएं एक दूसरे से बोल रही हैं। बातें कर रही हैं। साथ खा पी रही हैं। मगर अपनी मांगों को लेकर बहुत सख्त हैं। इन महिलाओं की मांग हैं कि ये तब तक अपना धरना नहीं ख़त्म करेंगी जब तक सरकार नागरिकता कानून को वापस नहीं लेती। शाहीनबाग की ये प्रदर्शकारी महिलाएं अपने इस धरने को अधिकारों की लड़ाई बता रही हैं और इस लड़ाई में वो सरकार और मौसम दोनों से एकसाथ मोर्चा ले रही हैं। दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध को पूरे 3० दिन हो गए हैं। पिछले 3० दिनों से सैकड़ों लोग सड़क पर डेरा जमाए हुए हैं। इनकी मांग है कि सरकार नागरिकता कानून पर अपना फैसला बदले। हालांकि लंबे वक्त से चल रहे प्रदर्शन के चलते स्थानीय लोग और व्यापारियों को भारी परेशानी भी हो रही है। रास्ता बंद होने से लोगों में नाराजगी भी है।
दूसरी तरफ शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के बयान से निराशा भी हाथ लगी है। भले ही गैर भाजपा शासित राज्य यह कह कर शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को ऊर्जा दे रहे थ्ो कि वहां सीएए लागू नहीं होगा। कुछ राज्य तो सुप्रीम कोर्ट की शरण भी ले चुके हैं लेकिन जिस तरह से कपिल सिब्बल ने यह बयान दिया है कि राज्य चाहें भी तो इस कानून को लागू करने से मना नहीं कर सकते। उससे शाहीन बाग ही क्या पूरे विपक्ष को गहरा आघात लगा है। दरअसल विपक्ष की ओर से अधिकतर मामलों में कपिल सिब्बल ही सुप्रीम कोर्ट में पैरोकारी करते दिखते हैं लेकिन जब वह खुद ऐसा मान रहे हैं कि बयान देना दूसरी बात है लेकिन आधिकारिक तौर पर किसी भी राज्य के लिये नागरिकता संशोधन कानून से इंकार कर पाना किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए असंभव है तो शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को झटका लगना लाजिमी है। अब उनके सामने यही विकल्प है कि वह प्रदर्शन करते रहें लेकिन यह प्रदर्शन अब सरकार और दिल्ली की जनता के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। ऐसे में अब यह प्रदर्शन कुछ दिन भी और चल पायेगा, यह कहना बहुत मुश्किल है। इन प्रदर्शनकारियों को यह भी जानना होगा कि यह पूरा होना असंभव सा ही है।