अभिरंजन कुमार
“आज तक” की वेबसाइट के मुताबिक, दिल्ली के दंगों में 5 लोगों की मौत हो चुकी है और इस दंगे की शुरुआत CAA-विरोधियों द्वारा जाफराबाद मेट्रो स्टेशन का रास्ता ब्लॉक करने से हुई।
किसी इलाके में रास्ते ब्लॉक कर देना और उसे बाकी हिस्से से काट देना- यह देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार रेडिकल इस्लामिक टेररिस्ट शरजील इमाम और उसके आकाओं का मॉडल है। उसी ने शाहीन बाग में रास्ते ब्लॉक कराए और उसी ने असम को भारत से काटने का मंसूबा जताया। उसी की राह पर चलते हुए CAA-विरोधी दंगाई जगह-जगह रास्ते ब्लॉक करने का प्रयास कर रहे हैं।
बहरहाल, ठीक ट्रम्प दौरे के समय दिल्ली को सुलगाने की साज़िश हुई और साज़िशकर्ता न सिर्फ उसमें कामयाब हुए बल्कि जान-माल को भी नुकसान पहुंचा सके, तो निश्चित रूप से यह दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों की भी विफलता है। और इस विफलता के पीछे बेहद ठोस राजनीतिक कारण या मजबूरियां दिखाई देती हैं।
हमने देखा है कि जब भी कोई भीड़ ऐसी होती है, जिसकी पहचान जाति-विशेष या सम्प्रदाय-विशेष के तौर पर की जा सकती है, उसे नियंत्रित करने में सरकार और प्रशासन के हाथ-पांव फूल ही जाते हैं। चाहे जाट हों, गूजर हों, पटेल हों, मुसलमान हों, या कोई अन्य जातीय या धार्मिक समूह हों, उन्हें संभालने में प्रशासन के हाथ पांव इसलिए फूल जाते हैं, क्योंकि वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण राजनीतिक दल/दलों द्वारा संचालित सरकार/सरकारें ठोस और सख्त रवैया नहीं अपना पाती हैं, जिसके कारण ऐसी तमाम हिंसाओं का अंत अक्सर जान-माल के भारी नुकसान से होता है।
मुझे पूरा यकीन है कि अगर छात्रों, शिक्षकों, नौकरी के अभ्यर्थियों, कर्मचारियों की तरफ से ऐसा कोई आंदोलन किया जाए, जो उक्त जातीय या धार्मिक समूहों के आंदोलनों जैसा उग्र और हिंसक हो, तो पुलिस को लाठी-गोली चलाने में ज़रा भी देर नहीं लगती।
यह सबको पता है कि दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले दो महीने से जो कुछ चल रहा है, उसमें आम मुस्लिम भाई-बहन मोहरे मात्र हैं और उसकी पूरी कमान रेडिकल इस्लामिक टेररिस्टों के हाथों में है। इसकी शुरुआत हिंसा, आगजनी, तोड़-फोड़, देशविरोधी तक़रीरों और भड़काऊ हिन्दू/हिंदुत्व-विरोधी नारों की पृष्ठभूमि में हुई। संविधान और तिरंगे की ओट लेकर वहाँ देश को तोड़ने की बातें हुईं। और अब इन कथित संविधान-वादी तिरंगा-प्रेमी रेडिकल टेररिस्टों ने एक बार फिर से अपना चोला उतार फेंका है। फिर पुलिस और सरकार की दुविधा क्या है?
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इन रेडिकल इस्लामिक टेररिस्टों की साज़िशों में देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां और अन्य सहयोगी दल भी शामिल हैं। ये सभी यही चाहते हैं कि रंगों की होली से पहले देश में खून की होली बहाई जा सके, ताकि सरकार को अल्पसंख्यक-विरोधी बताकर घेरा जा सके और दुनिया में देश की बदनामी हो।
ऐसे में सरकार और पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अपने माथे पर कोई कलंक लिए बिना कैसे वह इन रेडिकल इस्लामिक टेररिस्टों और साम्प्रदायिक सियासी दलों की साजिशों को विफल करती है।