नई दिल्ली। आखिर क्या वजह है कि जिस गलवन घाटी में चीन ने भारतीय सैनिकों को चार दशकों तक बेरोकटोक पैट्रोलिंग करने दी अब वह उस समूचे घाटी पर दावा कर रहा है। जानकारों की मानें तो इस सवाल का जवाब साल 2017 में डोकलाम की घटना से जुड़ा हुआ है। जुलाई 2017 में डोकलाम में चीनी सैनिकों के घुसपैठ के बाद भारत ने चीन से सटे अपने समूचे सीमावर्ती क्षेत्र में सड़क मार्ग और दूसरे ढांचागत निर्माण के काम को तेज कर दिया है। इन क्षमताओं से भारत अब चीन की सबसे महत्वाकांक्षी विस्तार योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) पर पूरी निगरानी करने में सक्षम हो गया है।
भारत के सड़क निर्माण से बौखलाहट
चीन को वापस लौटना ही होगा
फिलहाल, दोनों पक्षों के बीच गलवन सबसे बड़ा मुद्दा है। वास्तविक नियंत्रण के पास चार जगहों पर चीन की तरफ से छोटे-बड़े कैंप लगाए गए हैं। बातचीत के दौरान चीन कुछ स्थानों से पीछे हटने को तैयार भी हुआ, लेकिन गलवन को लेकर मामला उलझा हुआ है। भारतीय रणनीतिकारों के सामने अब मामला स्पष्ट हो चुका है कि पूरी तैयारी गलवन को लेकर ही है। यही वजह है कि भारतीय वार्ताकार इस बार पर अड़े हैं कि चीन को गलवन क्षेत्र से ही नहीं, बल्कि उसे पूरी तरह से एलएसी के दूसरी तरफ (चीन के हिस्से) में जाना होगा।
दौलत बेग ओल्डी के सामरिक महत्व से परेशान
भारतीय रणनीतिक गलियारे में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) को ज्वेल ऑफ हाइट्स कहा जाता है। इसे यह उपाधि इसकी बेहद रणनीतिक खासियत की वजह से ही दी गई है। यहां भारत के सबसे बड़े युद्धक विमान और वायु सेना के सारे बड़े जहाज भी पूरे साल उड़ान भर सकते हैं। चीन इस बात से भी चिंतित है कि 255 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग (दारबुल-श्योक-डीबीओ) का निर्माण अंतिम चरण में है। इस सड़क के बनने के बाद लेह से डीबीओ की दूरी महज छह घंटे में पूरी की जा सकेगी।
भारत की अमेरिका और फ्रांस से दोस्ती से भी बौखलाहट
इसके अलावा चीन को एक और चिंता सता रही है। भारत की पिछले कुछ वर्षों में पांच देशों (अमेरिका, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया) के साथ लॉजिस्टिक्स समझौता कर चुका है। जापान, ग्रेट ब्रिटेन और रूस के साथ भी इस तरह की समझौते की तैयारी है। यानी इन देशों की वायु सेना के जहाज भारतीय ढांचागत सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। चीन बखूबी समझता है कि डीबीओ से उसके समूचे सीपीईसी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी जो यहां से बहुत दूर नहीं है। ऐसे में चीन गलवन नदी घाटी में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है।