पद्मपति शर्मा
एक बात देश के सामने लगभग स्पष्ट हो चुकी है कि कांग्रेस के आला कमान यानी नेतृ वर्ग की निष्ठा भारत के साथ नहीं बल्कि उसके दुश्मन देशों पाकिस्तान और चीन के साथ है। पिछली कुछ घटनाओं मे देश ने आश्चर्य जनित क्षोभ और ग्लानि के साथ देखा और महसूस किया। चाहे वो पाकिस्तान पर की गयी सर्जिकल और एयर स्ट्राइक पर सवालिया निशान लगाना रहा हो अथवा पाकिस्तान के समर्थन में संसद से पारित सीएए के विरोध मे देश के मुस्लिम समुदाय को सार्वजनिक तौर पर सडक पर उतर कर आर पार की लडाई लडने के आह्वान से उपद्रव भड़काने का आह्वान रहा हो या फिर पूर्व नौकरशाह और वरिष्ठ काग्रेसी नेता का पाकिस्तान जाकर चुनाव मे मोदी को हराने के लिए समर्थन मागने का मामला रहा हो। यूपीए के दस साल के शासनकाल के दौरान पाकिस्तानी आतंकियों की ओर से देश के पवित्र स्थलों, न्यायालयों, बाजारों, गंगा घाटों, मुम्बई सहित न जाने कितने नगरों मे बम विस्फोटों से हजारो मासूम भारतीयों की जान लेने और सरकार के हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने को आप क्या कहेंगे और क्या कहेंगे जब आतंकी के मरने पर वरिष्ठ नेत्री के फूट फूट कर रोने को ? आखिर क्या कारण है कि पिछले छह वर्षों से बम फूटने बंद हो गये ?
उसी तरह कांग्रेस का चीन के प्रति प्रेम भी छिपा नहीं रह गया। व्यापारिक दृष्टि से देश के दरवाजे चीन के लिए खोलने वाली यूपीए सरकार यह शायद भूल गयी थी कि यह दुश्मन है भारत का दोस्त नही । कांग्रेस और उसके बैनर पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाले परिवार विशेष के माँ – बेटे को क्या इस इतिहास का ज्ञान है कि उनके पूर्वज ने किस कदर यूएनओ की सुरक्षा परिषद में मिली सीट की पेशकश ठुकरा कर चीन को तश्तरी मे सजा कर दे दी थी ? क्या यह याद नहीं इनको कि हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा लगाने वाले चीन ने 1962 मे धोखे से भारत पर हमला करते हुए आक्साई चिन पर कब्जा कर लिया था ? क्या इन दोनो को यह पता है कि तब उस हार के अपमान का घूंट भारतवासी को इसलिए पीना पढता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने हजारों जवान शहीद करा दिए मगर वायुसेना का प्रयोग नहीं किया। 1962 का चीन एक गरीब मुल्क था और उसके पास भारत जैसी सुसंगठित वायु सेना नहीं थी। इस भयंकर भूल के चलते ही भारत उस जंग मे बाजी नहीं पलट सका।यही नहीं एक साल बाद चीन ने काराकोरम पास ( दर्रा ) भी हमसे छीन लिया।
चीन को लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछने वाली काग्रेस अध्यक्ष के पास इसका क्या जवाब है कि 1962 के बाद चीन ने जहाँ भारत से लगती 3400 किलोमीटर लंबी सेना पर बुनियादी ढांचा खडा कर लिया वही भारत ने जो था उसे भी बेकार करते हुए पूरी सीमा को अविकसित क्यों रखा ? यूपीए के पिछले शासन में तो चीन ने मा-बेटे को वश में करते हुए जम कर मनमानी की। 2008 ओलम्पिक खेलों के मेजबान चीन ने उद्घाटन समारोह के लिए दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षो को आमंत्रित किया सिवाय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छोड कर। वह जानता था कि यह पीएम सिर्फ रबर स्टैम्प है, असली ताकत तो माँ और बेटे के पास है जो बिना जवाबदेही देश को रिमोट कंट्रोल से चला रहे हैं। उसने इन दोनो को आमंत्रित किया और उनके साथ शी जिंन पिंग ने जो तब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव थे, कांग्रेस के साथ एमओयू साइन कर अजूबा कर दिखाया। इसके बाद तो चीन को खुली छूट मिल गयी।उसने 2008 से 2013 के बीच पांच बार घुसपैठ से भारतीय जमीन पर कब्जा किया । 2013 मे तो यह हालत हुई कि राकी नूला मे चीन 21 दिनों तक हमारी सीमा के मीलों अंदर तक घुस कर बैठा रहा और किसी तरह हाथ पैर जोडने के बाद वह हटा।
पिछले छह वर्षों मे परिदृश्य बदला और एनडीए सरकार ने चीन की लगती सीमा पर बुनियादी ढांचा खडा करना शुरू किया। सडकों का जाल बिछने लगा, हेलीपैड बनने लगे, एयर बेस पर तेजी से काम हुआ। चीन ये सब देख कर तिलमिला उठ। 2017 में भूटान सीमा पर स्थित डोकलाम में चीन की कोशिश को भारतीय सेना ने जिस तरह नाकाम किया वह एक स्वर्णिम इतिहास है। उस समय भी परिवार विशेष का बेटा जो पार्टी अध्यक्ष हो चुका था, रात 11बजे चोरी से चीनी राजनयिक के साथ मुलाकात करता है। पहले खंडन फिर स्वीकारोक्ति किस तरह मजाक का विषय बनी, यह बताने की जरूरत नहीं। बाद में भी बेटे का मानसरोवर कैलास यात्रा के नाम पर चीनी सरकार के नेतृत्व से मिलने को आप देश भक्ति तो कतई नहीं कहेगे।
वर्तमान गलवान घाटी विवाद पर अपने आलाकमान के इशारे पर काग्रेसी प्रवक्ताओं की ओर से टीवी डिबेट मे चीन का भारतीय सीमा के भीतर घुस आने का कुप्रचार क्या दुश्मन को खुश करने के लिए नहीं था ?
पिछले शुक्रवार को दो घटनाएं सामने आईं। पहली थी पीएम की अध्यक्षता मे सर्वदलीय बैठक जिसमे प्रधान मंत्री जी ने बता दिया कि हिंसक झड़प में हमारे 20 जाबांज सैनिकों ने अपनी शहादत जरूर दी मगर चीन एक इन्च जगह भी अभी तक नहीं ले सका है। कांग्रेस अध्यक्ष इस मीटिंग में भी सवाल पूछने से बाज नहीं आयीं। संधि से अनजान अज्ञानी बेटा तीन दिन पहले हास्यास्पद सवाल पूछ चुका था कि भारतीय सैनिक निहत्थे क्यों गये थे और प्रधान मंत्री छुपे क्यों हैं, सामने क्यों नहीं आते ? लेकिन इस एक पार्टी के अलावा शेष पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री के प्रति एकजुटता दिखायी और एक सुर में चीन को सबक सिखाने की माग की।
दूसरी घटना कारगिल के काउन्सलर जाकिर हुसैन का वायरल ऑडियो रहा जिसमें उसने मोदी और भारतीय सेना के बारे मे जिस तरह की घोर आपत्तिजनक बात की कि देर शाम उसे गिरफ्तार कर लिया गया। खून खौला देने वाला यह आडियो उसके राजनीतिक दल की मानसिकता जाहिर कर गया। पुरा आडियो नेशन टुडे पोर्टल पर पाठक सुन सकते हैं, जाकिर की गिरफ्तारी वाले समाचार में।
वरिष्ठ पत्रकार शशिधर इस्सर ने चीन की ओर से समय समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ का जो व्यौरा भेजा है वह इस प्रकार है –
*घटनाक्रम*
◆’अक्साई चिन’ : 1962 में चीन ने कब्जा किया.
◆’काराकोरम पास’ : 1963 में चीन ने कब्जा किया.
◆’तीया पंगनक’ : 2008 में चीन ने कब्जा किया.
◆’चाबजी घाटी’ : 2008 में चीन ने कब्जा किया.
◆’डूम चेली’ : 2009 में चीन ने कब्जा किया.
◆’डेमजोक’ : 2012 में चीन ने कब्जा किया.
◆’राकी नूला’ : 2013 में चीन ने कब्जा किया.
◆’डोकलाम’ : 2017 में, चीन विफल.
◆’लिपुलेख’ : 2020 में, चीन विफल.
◆’पैंगांग तसो’ : 2020 में, चीन विफल.
◆’गैलवान घाटी’ : 2020 में, चीन विफल.
फिलहाल भारत के कुल 43 हजार 180 वर्ग मील भूभाग पर चीन का कब्जा है। हर समय सत्ता में कांग्रेस ही थी।