नई दिल्ली। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार एन राम और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कोर्ट की अवमानना कानून में सेक्शन 2(c)(i) की वैधता को चुनौती दी है। यह प्रावधान उस विषय-वस्तु के प्रकाशन को अपराध घोषित करता है, जो कोर्ट की निंदा करता है या कोर्ट के अधिकार को कम करता है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिले ‘बोलने की स्वतंत्रता’ के अधिकार का उल्लंघन करता है और जनता के महत्व के मुद्दों पर बहस को प्रभावी तरीके से रोकता है। याचिका में कहा गया है, ”यह अनुच्छेद 19 (1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी गारंटी का उल्लंघन करता है। यह असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान की प्रस्तावना मूल्यों और बुनियादी विशेषताओं के साथ असंगत है।”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे और सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ ट्वीट्स को लेकर प्रशांत भूषण को इन्हीं प्रावधानों के तहत नोटिस जारी किया था। याचिका में कहा गया है, ”कोर्ट की निंदा के अपराध की जड़ें औपनिवेशिक धारणाओं से जुड़ी हैं और लोकतांत्रिक संवैधानिकता के लिए प्रतिबद्ध कानूनी व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है।”
कोर्ट की अवमानना सिविल या आपराधिक प्रकृति की हो सकती है। सिविल कंटेम्पट को सेक्शन 2 (b) में परिभाषित किया गया है। इसके तहत कोर्ट के किसी फैसले, आदेश या निर्देश या कोर्ट में दिए गए वचन को जानबूझकर ना मानने या तोड़ने के मामले आते हैं।
सेक्शन 2 (c) के तहत आपराधिक अवमानना और कोर्ट के खिलाफ किसी प्रकाशन या कार्य को दंडित किया जाता है। इस प्रावधान के तीन उप खंड हैं, जो बताते हैं कि कब किसी ऐसी सामग्री का प्रकाशन आपराधिक अवमानना के दायरे में आएगा। याचिकाकर्ताओं ने केवल उपखंड 2(c)(i) को चुनौती दी है जो कोर्ट के अधिकार को कम करने वाले या कोर्ट की निंदा करने वाले सामग्री के प्रकाशन को आपराधिक घोषित करता है।