अंतरराष्ट्रीय मैगजीन ‘Time’ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व की 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची में तो रखा है लेकिन इसके साथ ही उन पर ऐसी टिप्पणी की है, जिससे भारत के खिलाफ नैरेटिव बनाने वाले खासे खुश हैं। ‘Time’ ने भारत के पीएम नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी की शुरुआत में ही लिख दिया है कि लोकतंत्र की चाभी स्वतंत्र चुनावों के पास नहीं होती। चूँकि उसके पास भारत के चुनावी सिस्टम पर टिप्पणी करने को कुछ नहीं था, इसीलिए उसने ऐसा लिखा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारी बहुमत से दो-दो बार जीत कर सत्ता में आए हैं, ऐसे में भारतीय चुनाव आयोग द्वारा केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में कराए जाने वाले बहुचरणीय चुनावों को लेकर ‘Time’ के पास कुछ गलत लिखने को कहीं था क्योंकि यहाँ हर चुनाव बाद विपक्षी दल भी ईवीएम हैक होने का आरोप लगा कर चुप हो जाते हैं। वहीं जब जीत उनकी होती है तो ईवीएम का मुद्दा न होकर ये ‘मोदी की घटती लोकप्रियता’ का मुद्दा बना दिया जाता है।
‘Time’ ने लिखा है कि लोकतंत्र में उनका अधिकार सबसे ज्यादा मायने रखता है, जिन्होंने सत्ताधारी पार्टी को वोट नहीं दिया है। लेकिन, भारत का संविधान ऐसा कुछ भी नहीं कहता क्योंकि इसमें नागरिकों का वर्गीकरण किसी पार्टी को वोट देने और नहीं देने को लेकर नहीं बल्कि समानता के आधार पर किया गया है, जिसमें गरीबों के लिए अधिकार सुरक्षित करने की बात है। फिर भी ‘Time’ ने मोदी को लेकर जो लिखा, वो गलत है।
पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू के दौरान अपना संस्मरण बताया था कि जब वो 2002 में हुए चुनावों को जीतने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लौटे थे, तब उन्होंने सबसे पहले यही बयान दिया था कि वो उनके भी सीएम हैं, जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया है और साथ ही उनके भी सीएम हैं, जिन्होंने उन्हें वोट दिया है। जो नेता खुद यही बातें कह रहा है, उस पर इसी के आधार पर निशाना साधना अजीब है, हड़बड़ी भरा है।
अब ‘Time’ अपने असली प्रोपेगेंडा पर आता है और लिखता है कि ये सारा कुछ नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद से संशय में आ गया है। बताया गया है कि भारत में अब तक जितने भी प्रधानमंत्री बने, उनमें से सभी हिन्दू ही हुए, लेकिन पीएम मोदी ने इस तरह से शासन किया है – जैसे हिन्दुओं के अलावा कोई और उनके लिए मायने ही नहीं रखता है। कहा गया है कि बाकी किसी भी पीएम ने ऐसा नहीं किया।
जब बात 70 सालों में पहली बार लोकतंत्र के खात्मे वाले नैरेटिव की आती है, तो इंदिरा गाँधी और आपातकाल को एकदम से भुला दिया जाता है, जबकि वो भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एकमात्र ऐसा मौका है, जब लोकतंत्र की सरेआम हत्या हुई। साथ ही जब ‘एक वर्ग के लिए शासन’ की बात आती है तो राजीव गाँधी ने कैसे शाहबानो केस में एक समुदाय को खुश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा था, ये याद नहीं किया जाता।
यहाँ ये समझने वाली बात है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कहते हैं कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुस्लिमों का है और पीएम मोदी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में इसे सुधारते हुए कहते हैं कि मनमोहन को ये कहना चाहिए था कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ गरीबों का है। तो फिर मनमोहन सिंह पर इसके लिए उँगली क्यों नहीं उठती और पीएम मोदी गरीबों की बात करते हैं तो फिर उन पर निशाना क्यों साधा जाता है?
आप भारत सरकार के विभिन्न पोर्टलों पर जाकर देख सकते हैं कि रिकॉर्ड संख्या में शौचालय बने हैं, घर बने हैं, बिजली पहुँची है, सड़कें बनी हैं, आयुष्मान भारत के द्वारा इलाज हुआ है, लोगों को अनाज मिले हैं, किसानों को सम्मान राशि मिली है, जल सुविधा पहुँची है और तकनीक के जरिए सीधे खाते में रुपए पहुँचे हैं। लेकिन नहीं, मोदी ने तो ये सब देख-देख कर सिर्फ हिन्दुओं को ही दिया है न?
‘Time’ कहता है कि नरेंद्र मोदी सशक्तिकरण के जनवादी वादे कर-कर के पहली बार विजयी होकर आए। लिखा है कि इसके बाद उनकी ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ भारतीय जनता पार्टी ने न सिर्फ ‘Elitism’, बल्कि ‘Pluralism’ को भी ख़त्म कर दिया। यहाँ ‘Elitism’ किस सेन्स में कहा गया है, ये समझ से परे है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि भारत में इलीट क्लास वही है, जिनका लुटियंस में दबदबा है और जो ग्रामीण भारत को अपने से नीचा मानते हैं।
यहाँ का एलिटिज्म वो है, जिसके तहत लिबरल गिरोह के कुछ लोग ट्विटर पर चंद शब्द लिख कर चाहते हैं कि जनता ऐसा ही करे। यहाँ का एलिटिज्म वो है, जिसके तहत मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए सारी हदें पार की जाती हैं और हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जाता है। यहाँ का एलिटिज्म वो है, जिसके तहत हिन्दुओं के साथ हुए अत्याचार को मुस्लिमों के साथ हुए अन्याय का नाम दे दिया जाता है और हिन्दुओं को ही इसका दोषी माना जाता है।
समझने वाली बात ये है कि जब भारत के बारे में विवरण देने के लिए ‘Time’ दलाई लामा के बयान का सहारा लेता है तो फिर पीएम मोदी के बारे में उनके क्या विचार हैं, इससे लोगों को क्यों नहीं अवगत कराता है? हाल ही में पीएम मोदी के जन्मदिवस के अवसर पर तिब्बती धर्मगुरु ने अपने पत्र में लिखा था कि भारत में कोरोना आपदा से निपटने के लिए केंद्र व राज्यों की सरकारें हरसंभव कोशिशें कर रही हैं।
वो भारत को हर तिब्बती की तरह आर्यभूमि मानते हैं। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के सभी देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने की दिशा में अद्भुत कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जहाँ पाक पीएम इमरान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी मतभेदों की बात करते हैं, पीएम मोदी हर जगह शांति का सन्देश देते हैं। दलाई लामा कहते हैं कि भारत में धर्मनिरपेक्षता है और जातिवाद का धीरे-धीरे खात्मा हो रहा है।
ऐसे में दलाई लामा ने भारत के बारे में क्या कहा, ये तो बताया लेकिन पीएम मोदी के प्रति उनकी क्या भावना है इसे छिपा लिया। इसे ही सलेक्टिव एप्रोच कहा जाता है। हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए भाजपा को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ ऐसे लिखा जाता है, जैसे ये कोई गुनाह हो। भारत का इतिहास ही हिंदुत्व का रहा है और यहाँ की पहचान ही सनातन है, तो इसे अगर कोई अंगीकार करता है तो ‘Time’ उसे हेय दृष्टि से क्यों देख रहा है?
‘भाजपा भारत के मुस्लिमों को लगातार निशाना बना रही है’ – ये स्पष्ट लिख कर अंत में ‘Time’ ने जता दिया है कि उसका उद्देश्य क्या था। ‘तीन तलाक’ ख़त्म कर के मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देने का काम इसी सरकार ने किया है, लेकिन इसको नहीं गिना गया। अल्पसंख्यकों के लिए तमाम योजनाएँ हैं, मंत्रालय है – ये लेख लिखने से पहले क्या देखा गया कि इस दिशा में कितने काम हुए हैं?
‘Time’ का कहना है कि सरकार विरोधी आन्दोलनों को दबाने के लिए कोरोना आपदा का सहारा लिया गया और भारत का ऊर्जावान लोकतंत्र एक गहरी छाया में चला गया। शायद मैगनीज को तब ख़ुशी होती जब शाहीन बाग़ में कोरोना के बीच सैकड़ों महिलाओं-बच्चों को जमे रहने दिया जाता और वो आपदा की चपेट में आते। तब यही मैगनीज लिख रहा होता कि सरकार ने आंदोलनकारियों को कोरोना से बचाने के लिए इंतजाम क्यों नहीं किए?
मैगजीन ने इस दौरान शाहीन बाग़ में बिना बात विरोध प्रदर्शन करने वाले कथित ‘दादी’ बिल्किस को भी इस सूची में शामिल कर लिया है, जिन्हें टीवी पर बुला-बुला कर एनडीटीवी जैसे मीडिया संस्थान मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बना रहे थे। भारत की कुख्यात प्रोपेगेंडा पत्रकार राना अयूब ने इस विषय पर अपने लेख में लिखा है कि छात्रों और युवाओं को भारत में जेल भेजा जा रहा है और उन्हें बिल्किस से प्रेरणा मिलती है।
इसी तरह 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ‘Time’ ने पीएम मोदी को ‘Divider In Chief’ कहा था। इसका अर्थ हुआ- विभाजित करने वालों या बाँटने वालों का मुखिया। पूर्वग्रह से भरे उस लेख में नरेन्द्र मोदी पर समाज को बाँटने के आरोप लगाए गए थे। चुनाव के दौरान इस लेख की ख़ूब चर्चा हुई थी और कई विपक्षी नेताओं ने मोदी पर भारत की छवि बिगाड़ने का आरोप भी लगाया था। बाद में एक अन्य लेख में मैगजीन ने पलटी मारी और मोदी की बड़ाई करते हुए दिखाया कि कैसे उनके कार्यकाल में बदलाव हो रहे हैं।
हालाँकि, अब जैसा कि अपेक्षित था – लिबरल गिरोह ने ‘Time’ मैगनीज में पीएम मोदी के बारे में लिखे प्रोपेगेंडा लेख का स्क्रीनशॉट शेयर करना शुरू कर दिया है। यही लोग तब चुप्पी साध लेते हैं जब उन्हें बिल गेट्स के फाउंडेशन द्वारा अवॉर्ड दिया जाता है या फिर कई इस्लामिक मुल्क उन्हें अपना सर्वोच्च सम्मान देते हैं। जब अमेरिकी राष्ट्रपति या इजरायल के पीएम उनकी तारीफ करते हैं, तब इन्हीं लोगों की घिग्घी बँध जाती है।