नई दिल्ली। खालिस्तानी समर्थक ताकतों द्वारा ‘किसान विरोध प्रदर्शन’ पर कब्जा करने की कोशिशों के बीच अब कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को पारित करने का विरोध करते हुए किसान विरोध में अपना समर्थन दिया है।
शनिवार (नवंबर 28, 2020) को कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने देश के विभिन्न हिस्सों में दंगों और हिंसा के लिए उकसाने के आरोपित किसानों के विरोध को अपना समर्थन व्यक्त किया और प्रदर्शनकारियों को संविधान के संरक्षण के लिए संघर्ष करने के लिए कहा।
पीएफआई ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें लोगों से मोदी सरकार द्वारा ‘फासीवादी कानूनों’ के खिलाफ एकजुट होने के लिए कहा गया।
Video Press Release:
Popular Front extends support to farmers’ protests; calls for the struggle to preserve the constitutionकिसान प्रदर्शनों को पॉपुलर फ्रंट का समर्थन; संविधान बचाने के लिए संघर्ष की अपील#FarmersProtest #किसान_विरोधी_मोदी_सरकार pic.twitter.com/SvdvV0ED2U
— Popular Front of India (@PFIOfficial) November 26, 2020
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ओएमए सलाम ने भी घोषणा किया कि उनका इस्लामी संगठन ‘दिल्ली चलो’ मार्च का समर्थन करेगा। वह किसानों की माँगों के साथ खड़े हैं। उन्होंने दावा किया कि नए कृषि कानून किसानों के जीवन को बदतर बना देंगे।
हरियाणा-पंजाब सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन को पीएफआई का समर्थन उस समय मिला, जब खालिस्तान समर्थक समूहों द्वारा किसान विरोध प्रदर्शनों पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी तरह, हरियाणा-पंजाब सीमा पर ‘किसान विरोध’ के दौरान खालिस्तान समर्थक और भारत विरोधी नारे भी लगाए गए। हाल ही में एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें एक तथाकथित किसान द्वारा स्पष्ट तौर पर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि जैसे इंदिरा गाँधी को ठोका वैसे ही नरेंद्र मोदी को भी ठोक देंगे।
सिर्फ खालिस्तान समूह ही नहीं, यहाँ तक कि इस्लामी संगठनों और वामपंथी तत्वों ने भी इन प्रदर्शनकारियों को मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए किसान विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। तथाकथित प्रदर्शनकारियों को उकसाने के लिए कॉन्ग्रेस पार्टियों के लिंक भी सामने आए हैं।
पीएफआई का हिंसा फैलाने का इतिहास है
पीएफआई का हिंसा करने का काफी पुराना इतिहास है। उनके सदस्य हिंसा के कई मामलों में जाँच के घेरे में आ गए हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम के मद्देनजर हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों और देश भर में हिंसा की जाँच के दौरान, पीएफआई की भूमिका संदिग्ध रही है और पीएफआई के कई सदस्यों को दंगों में शामिल होने के लिए गिरफ्तार किया गया है।
पीएफआई और SIMI जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठन विभिन्न राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की फंडिंग के लिए कुख्यात हैं। पिछले साल दिसंबर में, CAA के विरोध प्रदर्शनों के दौरान गृह मंत्रालय के साथ शेयर की गई एक खुफिया रिपोर्ट ने कुछ ‘राजनीतिक दलों’ की तरफ इशारा किया था और SIMI और पीएफआई जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों- पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफआई) और उसके राजनीतिक मोर्चे, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) के सदस्य मुस्लिम विरोधी भीड़ को सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान राज्य भर में हिंसा में शामिल करने के लिए उकसाने में शामिल था। यूपी पुलिस ने राज्य में व्यापक हिंसा के बाद पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी।
सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, पीएफआई ने हाल ही में बेंगलुरु दंगों में भी भूमिका निभाई थी। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने पूर्वी बेंगलुरु की सड़कों पर हिंसा को भड़काने के लिए ‘भीड़ को उकसाने’ के लिए एसडीपीआई नेता मुजामिल पाशा को नामित किया था। मुस्लिम भीड़ ने दो पुलिस स्टेशन पर हमला किया था और कॉन्ग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवासमूर्ति के आवास पर भी हमला किया था।
एनआईए ने कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंधित कई भड़काऊ दस्तावेज और सामग्री भी बरामद किया था।
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों- पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) से जुड़े चार लोगों को राज्य में जाति-आधारित अशांति पैदा करने की योजना के लिए गिरफ्तार किया था। केरल के पत्रकार ‘सिद्दीकी कप्पन, जो कि इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) का एक पदाधिकारी है, को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। फर्जी पत्रकार हाथरस की घटना के बाद जाति संघर्ष पैदा करने के लिए हाथरस जा रहा था।