गाजियाबाद/लखनऊ। गाजियाबाद के मुरादनगर में श्मशान की छत धंसने के मामले में गिरफ्तार ठेकेदार अजय त्यागी ने कैमरे पर हैरान करने वाला खुलासा किया है और इस श्मशान की छत निर्माण में होने वाली धांधली से पर्दा हटाया है. गिरफ्तार ठेकेदार अजय त्यागी ने कैमरे पर स्वीकार किया है कि सरकारी ठेके के काम में 28 से 30 परसेंट कमीशन अधिकारियों को जाता था. उसने पुलिस के सामने ये बात कबूल की है. आरोपी को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
पुलिस ने सोमवार की देर रात ठेकेदार अजय त्यागी को गिरफ्तार कर लिया था. उसकी सूचना देने और गिरफ्तारी कराने पर एसएसपी ने इनाम भी रखा था. अब पकड़े जाने के बाद अजय त्यागी कमीशन और भ्रष्टाचार की पोल खुद खोल रहा है. उसने पूछताछ में सरकारी कमीशनखोरी को बेनकाब कर दिया है. मंगलवार को पुलिस ने अजय त्यागी को कोर्ट में पेश किया. जहां से उसे 14 दिन के लिए जेल भेज दिया गया.
बता दें कि मुरादनगर के श्मशान में आने वाले दुखियारों का सिर छुपाने के इरादे से शेल्टर बनाया जा रहा था, उसी की छत रविवार को अचानक भरभराकर ज़मींदोज़ हो गई. और इसी के साथ ये छत यूं एक ही झटके में 25 ज़िंदगियां लील गई. इससे ज़्यादा बदकिस्मती की बात और क्या होगी जिस श्मशान में आकर बड़े से बड़े दुनियादार को भी वैराग्य का भाव पैदा हो जाता है, भ्रष्टाचार ने उसी श्मशान में बने शेल्टर के खंभों पर भी अपनी जगह बना ली.
साथ ही आंखों से बेहिसाब बहते ये आंसू अपनों के खोने की तकलीफ़ से पैदा हुए दर्द की शिद्दत को बयान कर रहे हैं. किसी का परिवार उजड़ गया. किसी के सपने चकनाचूर हो गए. किसी के परिवार का कमाने वाला चला गया, तो किसी को वो सहारा ही छिन गया, जिसके भरोसे ज़िंदगी आगे खिसक रही थी.
लेकिन ना तो ऐसा पहली बार हुआ है और ना ही लोग इसकी असली वजह से नावाकिफ हैं. लोग बेशक गम में हों, लेकिन उन्हें दिलासे की नहीं. बल्कि इंसाफ़ की उम्मीद है. लोग मुरादनगर के श्मशान में रविवार को हुए हादसे में हुई मौतों का हिसाब चाहते हैं. क़ानून के रास्ते से ही सही गुनहगारों का अंजाम चाहते हैं.
श्मशान में शेल्टर के गिरने से पैदा हुए गुस्से का ही नतीजा था कि सोमवार की सुबह दर्द में तड़पते लोगों ने इंसाफ की मांग के साथ गाजियाबाद-मेरठ हाईवे पर धरना दे दिया. चूंकि ये धरना ही दिवंगत लोगों को इंसाफ़ दिलाने के लिए था, जिन शवों को तब श्मशान में होना चाहिए था, उनके अपनों ने उन्हीं शवों को अपने-अपने धरने में भी शामिल कर लिया. लोग इंसाफ के लिए चिल्ला रहे थे और महिलाएं थी कि लगातार रोए जा रही थीं. लोगों के गुस्से का ही नतीजा था कि शुरू में तो शासन-प्रशासन को भी गुस्साए लोगों तक पहुंचने की हिम्मत नहीं हुई.
लोगों का गुस्सा और उनकी हैरानगी इस बात को लेकर ज़्यादा थी कि जो शेल्टर महज़ 4 महीने पहले ही बन कर तैयार हुआ था, आख़िर वो इतनी जल्दी नीचे कैसे गिर गया. क्या भ्रष्टाचार और सरकारी अफ़सरों के कट के चक्कर में ठेकेदार ने सारी हदें पार कर दीं. क्या कंक्रीट और सीमेंट की जगह सरकार की आंखों में खुद उसी के नुमाइंदों ने धूल झोंक दिया. लोग कह रहे थे कि अगर प्रशासन ने समय रहते निर्माण कार्य की सुध ली होती, भ्रष्ट सरकारी अफ़सरों, बाबुओं और ठेकेदार पर नकेल कसी होती, तो शायद इस तरह इतने लोगों को बेमैत नहीं मरना पड़ता.