नई दिल्ली। बिहार में जाति आधारित जनगणना का रास्ता साफ हो गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बुधवार को सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से राज्य में जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया गया. ऐसे में कैबिनेट की अगली बैठक में प्रस्ताव पास होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ तौर पर कहा कि बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की गणना कराई जाएगी, जिससे मुसलमानों के भीतर भी उपजाति निकल कर आएगी. ऐसे में साफ है कि बिहार में जाति आधारित गणना सिर्फ हिंदू जातियों की नहीं बल्कि मुस्लिम समुदाय की जातियों की भी गिनती की जाएगी.
हालांकि, साल 1931 की जनगणना में मुस्लिम की गिनती धार्मिक और जातीय दोनों ही आधार की गई थी, लेकिन 1941 की जनगणना में मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समुदाय से अपनी-अपनी जाति को लिखवाने के बजाय इस्लाम धर्म लिखवाने पर जोर दिया था. वहीं, हिंदू महासभा ने हिंदुओं से जाति के बजाय हिंदू धर्म लिखवाने की बात कही थी. इसके बाद से न तो मुस्लिमों की किसी जाति की गिनती की गई और न ही हिंदुओं की. जनगणना के दौरान अनुसूचित जाति और जनजाति की गिनती की जाती रही ही है, जिसमें मुस्लिम दलित जातियां शामिल नहीं हैं.
मुस्लिमों में जातिगत जनगणना की मांग उठती रही
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संगठन और तमाम मुस्लिम ओबीसी समुदाय के लोग जातिगत जनगणना में हिंदुओं की जातियों की तरह मुसलमानों के भीतर शामिल तमाम जातियों की गिनती करने की मांग करता रहा है. दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में पिछले साल 15 मुस्लिम ओबीसी जाति संगठनों ने मुस्लिम जातियों जनगणना के मुद्दे को लेकर बैठक की थी. इस बैठक में मुस्लिम ओबीसी की शैक्षणिक, आर्थिक, सियासी और सामाजिक आधार पर जनगणना करने की मांग उठाई थी.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के अगुवाई में पिछले साल महागठबंधन के पांच दलों के नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर हिंदू जातियों की जनगणना कराने की मांग की थी. इस पर पसमांदा मुस्लिम महाज अध्यक्ष पूर्व सांसद अली अनवर ने सीएम नीतीश कुमार से लेकर देश के प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि सिर्फ हिंदू जातियों की ही नहीं बल्कि मुसलमानों की जातियों की गणना की जानी चाहिए, क्योंकि मुसलमानों के भीतर भी जातियां और उपजातियां शामिल हैं.
मुसलमानों के भीतर भी उपजाति निकल कर आएगी
नीतीश कुमार की अगुवाई में बुधवार को जातीय जनगणना के मुद्दे पर जिस समय सर्वदलीय दल बैठक हो रही थी, उसी से कुछ देर पहले पहले बीजेपी ने मुस्लिम जातियों की गिनती की जाने का मुद्दा उठाया. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि हम जातीय जनगणना के विरोध में नहीं है, लेकिन मुस्लिम जाति की श्रेणी में रख कर उनकी जनगणना जाति के आधार पर कराई जानी चाहिए. मुस्लिम वर्ग में भी कई जातियां हैं और उन्हें भी जातीय रूप से श्रेणीबद्ध करके उनकी गिनती की जानी चाहिए. वहीं, सीएम नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक में बिहार में सभी धर्मों की जातियों की गिनती करने की मांग पर मुहर लगा दी और कहा कि इससे मुसलमानों के भीतर भी उपजाति निकल कर आएगी.
मुस्लिमों की उच्च जातियों को मिल रहा है लाभ
हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय में सवर्ण, पिछड़े और दलित समूह हैं, जिनमें तमाम उपजातियां हैं. ऐसे में जातीय जनगणना में हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों की भी जातियों की गिनती कराने पर सहमति बनी है. इससे हिंदुओं की तरह मुसलमानों में ओबीसी का सही आंकड़ा सामने आएगा. मुसलमानों के नाम पर सारे सुख और सुविधाओं का लाभ मुस्लिम समाज की कुछ उच्च जातियों को मिल रहा है. ऐसे में मुस्लिम ओबीसी गणना से मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति और आंकड़े सामने आएंगे.
बता दें कि मुस्लिम समुदाय की जातियां तीन प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित हैं. उच्चवर्गीय मुसलमान को अशराफ कहा जाता है तो पिछड़े मुस्लिमों को पसमांदा और दलित जातियों के मुसलमानों को अरजाल. अशराफ में सय्यद, शेख, मुगल, पठान, रांगड़, ठकुराई या मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुसलमान आते हैं.
वहीं, ओबीसी मुस्लिमों को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है, जिनमें कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अलवी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन्गुज्जर, इत्यादि, मेवाती, गद्दी, मलिक हैं. दलित मुस्लिम को अरजाल के नाम से कहा जाता है, लेकिन मुस्लिम दलित जातियों को ओबीसी में डाल दिया गया है.
बिहार में जाति आधारित गणना से मुस्लिमों में शामिल जातियों का भी आंकड़ा सामना आ सकेगा. मौजूदा समय में बिहार में मुसलमानों के बीच 50 से ज्यादा जातियां हैं. बिहार में ओबीसी की जातियों का आंकड़े देखें तो केंद्रीय सूची में 24 मुस्लिम जातियां शामिल हैं जबकि स्टेट लिस्ट में करीब 31 जातियां शामिल हैं. हालांकि, बिहार में ओबीसी जाति को पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग में बांटकर रखा गया है.
ग़ौरतलब है कि मुसलमानों के धार्मिक आंकड़े तो हैं, लेकिन मुस्लिमों के अधिकारिक जाति-आधारित आंकड़े नहीं हैं. मंडल कमीशन ने पिछड़े वर्ग की रिपोर्ट बनाई थी, उसे 1931 की जाति जनगणना के उपलब्ध आंकड़े लिए गए थे. सच्चर कमेटी रिपोर्ट और रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने एनएसएसओ डेटा का ही सहारा लिया था. ऐसे परिदृश्य में मुस्लिमों के जाति जनगणना के विचार से धार्मिक समूहों की सामाजिक-आर्थिक विविधता के बारे में, धार्मिक-तटस्थ तरीके से गौर करने में मदद मिल सकती है.
मुस्लिमों में जातियों की समस्या पर आंबेडकर की नजर
मुस्लिम समाज में व्याप्त जातिवाद के बारे में डॉ बीआर आंबेडकर से लेकर डॉ राममनोहर लोहिया और कांशीराम ने भी खुल कर अपनी राय रखी है. डॉ आंबेडकर लिखते हैं कि …गुलामी भले ही विदा हो गयी हो जाति तो मुसलमानों में कायम है ही. कांशीराम ने कहा कि मुस्लिमों में प्रतिनिधित्व के नाम पर सिर्फ उच्च वर्ग के ही मुस्लिमों की भागीदारी है और ओबीसी मुस्लिम वंचित है. ऐसे में मुसलमानों की जाति जनगणना से ओबीसी मुस्लिम के आंकड़े सामने आ सकेंगे.