कहावत है कि एक आदमी का नुकसान दूसरे आदमी का फायदा होता है। ऐसा लगता है कि चीन ने इस बात को बखूबी सीख लिया है। चीन अपनी विदेश नीति में इस कहावत का इस्तेमाल कर रहा है। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि चीन नेपाल के प्रसिद्ध गोरखाओं को अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में भर्ती करना चाहता है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि नेपाली गोरखाओं को चीनी सेना में भर्ती करने का सपना पूरा भी हो सकता है। चीन की इस बरसों पुरानी चाहत को पूरा करने के पीछे परोक्ष रूप से भारत की अग्निपथ योजना का भी थोड़ा बहुत हाथ बताया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि गोरखा कौन हैं और भारतीय सेना में उनका इतना सम्मान क्यों है। चीन क्यों गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती करने के लिए इतना उतावला है।
गोरखा नेपाल के पहाड़ों में बसने वाले जन्मजात लड़ाका हैं। गोरखाओं की हिम्मत और वफादारी पर कोई भी शक नहीं करता है। गोरखा शारीरिक और मानसिक रूप से इतने मजबूत होते हैं कि अपने से कई गुना ताकतवर दुश्मन को पलक झपकते मार सकते हैं। 1814 में जब अग्रेजों ने अपने साम्राज्य का विस्तार नेपाल में करना शुरू किया तो उनकी भिड़तं गोरखाओं से हुई। इस युद्ध के दौरान अंग्रेज इतना तो समझ गए कि गोरखाओं से युद्ध में आसानी से जीत नहीं मिल सकती है। गोरखा भी यह जान गए कि अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक हथियार और पैसे बहुत हैं। ऐसे में 1815 में नेपाल के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच सुगौली की संधि हुई। इस संधि के अनुसार, नेपाल के कुछ हिस्से ब्रिटिश भारत में शामिल हुए और काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि को नियुक्त किया गया। यह भी तय हुआ कि ब्रिटिश फौज में गोरखाओं की भर्ती की जाएगी।
1947 गोरखा सैनिकों पर त्रिपक्षीय समझौता
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं के बीच गोरखा रेजिमेंटों को विभाजित करने का निर्णय लिया गया। इसका फैसला गोरखाओं पर ही छोड़ा गया कि वे भारतीय सेना में रहेंगे या फिर ब्रिटिश फौज के साथ जाएंगे। ऐसे में 10 में से छह रेजिमेंट ने भारतीय सेना में रहना पसंद किया जबकि चार रेजिमेंट अंग्रेजों के साथ ब्रिटेन चली गई। इस समझौते में तय हुआ कि भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखाओं को बिना भेदभाव के समान अवसर, समान लाभ, समान स्थायित्व दिया जाएगा। गोरखाओं के हितों का ध्यान रखा जाएगा। भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली नागरिक के तौर पर ही होगी। उनकी सभी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का ध्यान रखा जाएगा और वे संबंधित देश के सैनिकों की तरह समान पेंशन और भत्ते पाने के भी हकदार होंगे।
भारतीय सेना में गोरखाओं का अद्वितीय पराक्रम
2022 में भारत ने बताया कि भारतीय सेना में वर्तमान में सात गोरखा रेजिमेंट हैं, जिनमें 28000 नेपाली नागरिक शामिल हैं। गोरखा सैनिकों ने कई दशकों तक भारतीय सेना की तरफ से युद्धों में अपना शौर्य दिखाया है। पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में, गोरखाओं ने 10,000 फीट पीर कांथी पहाड़ी पर हमले और ज़ोजिला की प्रसिद्ध लड़ाई में खुद को प्रतिष्ठित किया। 1999 के कारगिल युद्ध में गोरखा बटालियनों ने कई सैन्य चौकियों पर कब्जा कर लिया, जिन पर पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि आजादी के बाद भारतीय सेना द्वारा लड़े गए हर युद्ध में गोरखाओं ने वीरतापूर्ण भूमिका निभाई है। इतना अधिक कि उन्होंने वीरता के लिए सर्वोच्च पुरस्कार कई परमवीर चक्र अर्जित किए हैं। उनकी बहादुरी ऐसी है कि भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने भी एक बार कहा था कि अगर कोई आपसे कहता है कि वह कभी डरता नहीं है, वह झूठा है या वह गोरखा है।”
गोरखाओं पर कैसे डोरे डाल रहा है चीन
यही कारण है कि चीन गोरखाओं को पीएलए में शामिल करने के लिए ललचा रहा है। अगस्त 2020 में बीजिंग ने नेपाल में एक अध्ययन शुरू किया था कि हिमालयी राष्ट्र के युवा भारतीय सेना में क्यों शामिल हुए। तब यह बताया गया कि भारतीय सेना में शामिल होने वाले युवा लड़कों की सदियों पुरानी परंपरा को समझने के लिए चीन ने नेपाल में अध्ययन के लिए 12.7 लाख रुपये का वित्त पोषण किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह चीन द्वारा अपनी तरह का पहला अध्ययन था। ब्रिटिश सेना में शामिल होने के बाद से, उन्होंने वफादारी से लड़ाई लड़ी और 13 विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त किए। गैर ब्रिटिश नागरिकों के लिए विक्टोरिया क्रॉस ब्रिटिश सम्मान प्रणाली का सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह ब्रिटिश सशस्त्र बलों के सैनिकों को दुश्मन के खिलाफ अद्वितीय वीरता दिखाने के लिए प्रदान किया जाता है।
अग्निपथ योजना गोरखाओं के लिए बनी समस्या
भारत की अग्निपथ योजना को लेकर नेपाली गोरखाओं में संशय है। नेपाल की पूर्ववर्ती सरकार ने तो अग्निपथ योजना में गोरखाओं की भर्ती से ही इनकार किया था। ऐस में लगता है कि चीन का सपना सच हो सकता है। 14 जून 2022 को घोषित अग्निपथ योजना में सैनिकों की चार साल की छोटी अवधि के लिए ही सशस्त्र बलों में भर्ती की जाती है। इसके बाद सिर्फ एक चौथाई सैनिकों को ही सेना में आगे की सर्विस के लिए रखा जाएगा, जबकि बाकी सैनिकों को एक पैकेज के साथ छुट्टी दे दी जाएगी। यह रक्षा बजट पर पेंशन का बोझ कम करने के साथ-साथ सैनिकों की औसत उम्र को कम रखने के लिए किया गया है। हालांकि, नेपाल इस योजना के पक्ष में नहीं है। नेपाल ने पिछले साल कहा था कि वे भर्ती रैलियों के लिए सेना नहीं भेजेंगे क्योंकि उन्हें लगा कि अग्निपथ योजना को उनसे अनुमोदन की आवश्यकता है। काठमांडू में सरकार का मानना है कि यह योजना 1,400 या इतने ही गोरखा रंगरूटों को शॉर्ट-चेंज करेगी।