भारत के लिए आज (23 अगस्त) का दिन मील का पत्थर साबित हुआ है। मून मिशन चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी पोल की सतह पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के उतारते ही पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल की गवाह बन गई। दुनिया में भारत का झंडा बुलंद करने वाले इस मिशन का नेतृत्व पुरुषों ने किया, लेकिन लगभग 54 इंजीनियर और वैज्ञानिक महिलाओं ने इसमें सीधे तौर पर अहम जिम्मेदारी निभाईं।
चंद्रयान 2 और 3 मिशन के बीच सबसे साफ फर्क दोनों चंद्र मिशनों का नेतृत्व करने वाले लोगों का जेंडर है। चंद्रयान-2 मिशन में महज दो महिलाओं- प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम. वनिता और मिशन डायरेक्टर रितु करिधाल श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई थी। हालाँकि, चंद्रयान-3 में महिलाओं की बड़ी तादाद है। इसके साथ ही देश इस बात की भी खुशी मना रहा है कि मून मिशन चंद्रयान-3 सफल रहा। इससे देश की आधी आबादी का दम भी दुनिया के सामने आ गया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज एजेेंसी IANS को बताया, “लगभग 54 महिला इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने सीधे चंद्रयान-3 मिशन में काम किया। वे विभिन्न केंद्रों पर काम करने वाली विभिन्न प्रणालियों की सहयोगी, डिप्टी प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर और प्रोजेक्ट मैनेजर हैं।”
चंद्रयान -3 मिशन में श्रीहरिकोटा रॉकेट बंदरगाह की अधिकारी पी. माधुरी भी अहम हिस्सा रहीं। उन्होंने रॉकेट लॉन्च के दौरान कमेंटेटर की भूमिका निभाई। दरअसल आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ था। इसका नेतृत्व देश की ‘रॉकेट वुमन’ रितु कारिधाल श्रीवास्तव ने किया था।
दरअसल दुनिया के सामने अंतरिक्ष में अपने दमखम दिखाने की शुरुआत देश की महिलाओं ने आज से 9 साल पहले ही कर दी थी। वो भी सितंबर का ही महीना था, जब भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की कक्षा में सैटेलाइट स्थापित किया था।
उस वक्त एक फोटो खासी वायरल हुई थी। इसमें बेंगलुरु में इसरो के दफ्तर में बालों में फूल लगाए खूबसूरत साड़ी पहने महिलाओं को जश्न मनाते हुए दिखाया गया था। इस फोटो ने यह साबित कर दिया कि खुशी मनाती ये सभी महिलाएँ वैज्ञानिक थीं। इस तस्वीर ने इस रूढ़िवादिता को चुनौती दे डाली कि भारत में रॉकेट साइंस पुरुषों के वर्चस्व का क्षेत्र है।
हालाँकि, इसरो ने कहा था कि फोटो में जश्न मनाने वाली महिलाएँ प्रशासनिक कर्मचारी थीं, लेकिन उसने यह भी कहा कि इस ग्रुप में मिशन पर काम करने और लॉन्च के वक्त नियंत्रण कक्ष में रही कई महिला वैज्ञानिक भी शामिल थीं। भारत को अंतरिक्ष में ले जाने वाली इन महिला वैज्ञानिकों में तब रितु कारिधाल, अनुराधा टीके और नंदिनी हरिनाथ शामिल थीं।
रितु बचपन में भी चंद्रमा के आकार के बारे में सोचती थीं। वह सोचती थीं यह क्यों बढ़ता और घटता है। वो जानना चाहती थीं कि अंधेरे स्थानों के पीछे क्या है। विज्ञान की छात्रा रहीं रितु को भौतिकी और गणित पसंद था। स्टूडेंट लाइफ में ही उन्होंने नासा और इसरो प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी के लिए दैनिक अखबारों को खंगाल डाला था।
इससे जुड़ी अखबारों की कतरनें इकट्ठा करना उनका प्रिय शगल था। इसके साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी किसी भी चीज़ के बारे में हर छोटी जानकारी पढ़ना उनका शौक रहा। एक इंटरव्यू में वो कहती हैं, “अपनी पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेने के बाद मैंने इसरो में नौकरी के लिए आवेदन किया और इस तरह मैं एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक बन गई।”
इसरो में उन्हें अब लगभग 25 साल हो गए हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित मंगल मिशन सहित इसरो में कई प्रोजेक्ट पर काम किया है। इसने उन्हें और उनके सहयोगियों को सुर्खियों में ला दिया था। वह कहती हैं कि मार्स मिशन अप्रैल 2012 में शुरू हुआ और वैज्ञानिकों के पास मंगल ग्रह पर जाने के लिए केवल 18 महीने थे।
रितु इस मिशन की इसकी सफलता को टीम के कोशिशों की नतीजा बताती है। वह कहती है, “यह एक बहुत छोटी खिड़की थी यानी बहुत कम वक्त था, इसलिए उस समय में प्रोजेक्ट को साकार करना बड़ी चुनौती थी। हमारे पास अंतरग्रहीय मिशनों की कोई विरासत नहीं थी, इसलिए उस छोटी अवधि में हमारे पास करने के लिए बहुत कुछ था।”
दो छोटे बच्चों की माँ रितु कारिधाल कहती हैं कि काम और जिंदगी में संतुलन बनाए रखना आसान नहीं था, लेकिन “मुझे अपने परिवार, अपने पति और अपने भाई-बहनों से वह समर्थन मिला जिसकी मुझे ज़रूरत थी”।