नई दिल्ली। इसरो ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करवाकर इतिहास रच दिया। इसके बाद जिस जगह पर लैंडिंग हुई, पीएम मोदी ने उस जगह का नाम शिव-शक्ति प्वाइंट करने का ऐलान किया। विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने जहां शिव-शक्ति प्वाइंट नाम देने पर आपत्ति जताई है तो वहीं, अब उस प्वाइंट को चंद्रमा की राजधानी बनाने की मांग की जाने लगी है। स्वामी चक्रपाणि महाराज ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर वीडियो जारी करते हुए मांग की है कि चंद्रमा को जल्द हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह बेंगलुरु स्थित इसरो सेंटर का दौरा किया था। वहां पीएम मोदी ने इसरो चीफ एस सोमनाथ समेत तमाम वैज्ञानिकों से मुलाकात की थी। इस दौरान, उन्होंने ऐलान किया था कि जिस जगह पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग हुई है, उसे शिव-शक्ति प्वाइंट के नाम से जाना जाएगा। वहीं, जहां चंद्रयान-2 के पदचिह्न पड़े थे, उस जगह का नाम तिरंगा रखा गया है। मालूम हो कि बुधवार को शाम छह बजकर चार मिनट पर इसरो ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंड करवाया था। इसके साथ ही भारत दुनिया का पहला देश बन गया, जो साउथ पोल पर पहुंचा। हालांकि, चांद पर भारत समेत कुल चार देश पहुंच चुके हैं। अमेरिका, चीन, सोवियत संघ चांद पर पहुंचने वाले देशों में शामिल है।
चांद पर कितना तापमान, चंद्रयान-3 के लैंडर ने भेजा डेटा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर के साथ लगे ‘चेस्ट’ उपकरण द्वारा चंद्र सतह पर मापी गई तापमान भिन्नता का एक ग्राफ रविवार को जारी किया। अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, ‘चंद्र सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट’ (चेस्ट) ने चंद्रमा की सतह के तापीय व्यवहार को समझने के लिए, दक्षिणी ध्रुव के आसपास चंद्रमा की ऊपरी मिट्टी का ‘तापमान प्रालेख’ मापा। इसरो ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, ”यहां विक्रम लैंडर पर चेस्ट पेलोड के पहले अवलोकन हैं। चंद्रमा की सतह के तापीय व्यवहार को समझने के लिए, चेस्ट ने ध्रुव के चारों ओर चंद्रमा की ऊपरी मिट्टी के तापमान प्रलेख को मापा।” पेलोड में तापमान को मापने का एक यंत्र लगा है जो सतह के नीचे 10 सेंटीमीटर की गहराई तक पहुंचने में सक्षम है। इसरो ने कहा, ”इसमें 10 तापमान सेंसर लगे हैं। प्रस्तुत ग्राफ विभिन्न गहराइयों पर चंद्र सतह/करीबी-सतह की तापमान भिन्नता को दर्शाता है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के लिए ये पहले ऐसे प्रालेख हैं। विस्तृत अवलोकन जारी है।”