दावों के बावजूद किसानों की समस्याएं जस की तस, किसानों की आमदनी बेहद चिंताजनक
सरकार की नाकामी से बढ़ रही किसानों की आत्महत्याएं
लखनऊ। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने वादा किया था कि वह 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करेगी। 2022 बीत चुका है लेकिन अभी इस पर सरकार चुप्पी साधे हुए है। किसानों की आमदनी बढ़ी तो हुई नहीं उलटे उनकी तकलीफें और बढ़ गई हैं। नतीजा यह है कि किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों ने अपना सुसाइड नोट योगी और मोदी को संबोधित कर लिखा है। ताज्जुब तो यह है कि डबल इंजन सरकार वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भी किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्य के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूम कर दावा कर रहे हैं कि अब किसानों के सामने पहले जैसी समस्याएं नहीं हैं। उन्होंने उनकी समस्याओं का समाधान कर दिया है। सवाल यह उठता है कि अगर योगी जी ने उनकी समस्याएं हल कर दी हैं तो वे आत्महत्या क्यों कर रहे हैं?
पिछले दिनों ही उत्तर प्रदेश में तीन किसानों के आत्महत्या की हृदय विदारक खबरें आईं। दो घटना कानपुर से और एक ललितपुर से थी। ये तीनों खबरें ज्यादा दुखी करने वाली रही हैं। कानपुर देहात के मंगलपुर गांव के 76 साल के किसान चंद्रपाल ने अपने घर के पास ही पेड़ की डाल पर गमछे का फंदा बनाकर फांसी लगा ली। उसने आत्महत्या की वजहों में बैंक का कर्ज चढ़ जाने और खेत गिरवी रखने का जिक्र किया है। चंद्रपाल सिंह ने दो महीने पहले अपने गांव के ही पूर्वी बड़ौदा ग्रामीण बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड पर 3.60 लाख रुपये का कर्ज लिया था। पैसों की तंगी और जरूरत के चलते उसने अपना एक बीधा खेत भी एक दूसरे ग्रामीण को 60 हजार रुपये में गिरवी रख दिया था।
दूसरी घटना भी कानपुर के चकेरी गांव की हफ्ते भर पहले की ही है। इस घटना में तो बीजेपी के एक नेता का नाम सामने आया है। चकेरी गांव के बाबू सिंह यादव की अहिरवा के मौजा में प्राइम लोकेशन पर साढ़े छह बीघा जमीन थी, जिसकी कीमत करीब सवा करोड़ रुपये है। बताया जाता है कि चकेरी के भाजपा नेता आशु उर्फ प्रिय रंजन दिवाकर ने इस जमीन का सौदा साढ़े छह करोड़ रुपये में किया था। उन्होंने बाबू सिंह यादव को एक होटल में बुलाकर पूरी जमीन की लिखा-पढ़ी करा ली। बदले में उन्होंने बाबू सिंह को साढ़े छह करोड़ का चेक दे दिया। लेकिन बाद में वह चेक बोगस निकला। पुलिस में शिकायत के डर से नेता के गुर्गों ने वह चेक भी बाबू सिंह से छीन लिया। परिवार के लोगों ने जब हंगामा किया तो सात लाख रुपये देकर मुंह बंद रखने को कहा गया। पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी भी दी गई। बाबू सिंह ने अपने पैसे पाने के लिए थानेदार से लेकर डीसीपी और पुलिस कमिश्नर तक सभी के दफ्तर के चक्कर काटे पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। पैसे न मिलने, पुलिस-प्रशासन का सहयोग प्राप्त न होने और नेता की धमकी से तंग आकर बाबू सिंह यादव ने पास में ही रेल से कटकर जान दे दी। अपने सुसाइड नोट में बाबू सिंह यादव ने लिखा है कि “माननीय योगी सरकार हो सके तो बच्चों को न्याय मिले। आपसे मेरी शिकायत है कि आपके राज्य में आप की ही पार्टी का सदस्य आपका ही कानून तोड़ रहा है। आपकी केंद्र सरकार ने कानून लागू किया था कि 20 हजार से ऊपर का कोई भी लेन-देन रजिस्ट्री से होगा। मुझे छह करोड़ 29 लाख का चेक देकर मेरी साढ़े छह बीघा जमीन ले ली गई।… अब जीने का मतलब नहीं बचा।“
तीसरी घटना उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की है। वहां एक युवा किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। किसान प्रीतम अहिरवार ने कर्ज लेकर सवा एकड़ जमीन में उड़द की फसल लगाई थी। लेकिन बारिश न होने और पानी न मिलने के कारण फसल सूख गई। प्रीतम ने जब खेत में सूखी फसल देखी तो उससे यह सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी जान दे दी। एक अलग तरह की घटना मुजफ्फरनगर में घटी है। जिले के चरथावल थाना क्षेत्र के कसौली गांव के किसान भूपेंद्र का शव बरामद हुआ। बताया जा रहा है कि पिछले महीने हुई बारिश और बांधों से पानी छोड़े जाने से कई गांवों में बाढ़ आ गई थी। भपेंद्र का गांव भी उन्हीं में से एक था। भूपेंद्र देर शाम चारा लेने गया और उसका शव नदी किनारे पाया गया। कुछ लोगों का कहना है कि भारी बरसात की वजह से उसकी फसल नष्ट हो गई और परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली। आसपास के लोग और किसानों ने उसका शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन किया और मुआवजे की मांग की। हालांकि पुलिस का कहना है कि अभी यह ठीक ढंग से पता नहीं चल पाया है कि उसने आत्महत्या की, उसकी हत्या हुई या मौत की कोई और वजह है।
किसानों की इन आत्महत्याओं में कई समस्याएं सामने आ रही हैं और हर समस्या के पीछे कहीं न कहीं शासन की विफलता भी सामने आ रही है। ये आत्महत्याएं कर्ज लेने और न चुका पाने, फसल बर्बाद होने और मुआवजा न मिलने तथा किसानों को दबंगों द्वारा परेशान किये जाने और पुलिस-प्रशासन द्वारा उन्हें संरक्षण न दिए जाने के कारण हुई हैं। ऊपर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह दावा कर रहे हैं कि राज्य में 2017 के बाद से किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। अब उनसे कोई पूछे कि महीने भर के अंदर चार-चार किसानों की आत्महत्या की खबरें सामने आई हैं। इन्हें आप क्या कहेंगे? अभी मामले ताजा हैं। कुछ समय बाद इन्हें भुला दिया जाएगा। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भी अब किसानों की आत्महत्या के मामले अलग से दर्ज नहीं करता। इसलिए यह पता नहीं चल पाता कि राज्य में या देश में कितने किसानों ने आत्महत्या की है। 2020 के एनसीआरबी के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उस साल यूपी में कुल 87 किसानों ने आत्महत्या की थी। राज्य सभा में कृषि मंत्री के लिखित जवाब के अनुसार यूपी में 2017 से लेकर 2021 तक कुल 398 किसानों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2017 में 110, 2018 में 80, 2019 में 108, 2020 में 87 और 2021 में (शुरू के कुछ महीनों तक) 13 किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन मुख्यमंत्री कहते हैं कि 2017 के बाद किसी किसान ने राज्य में आत्महत्या नहीं की है। लेकिन उनके दावों से सच्चाई तो नहीं बदल सकती। फिर ये आंकड़े भी एनसीआरबी और उन्हीं की पार्टी के केंद्रीय मंत्री के संसद में दिये हुए हैं। किसान संगठन तो लगातार दावा कर रहे हैं कि किसानों की आत्महत्या के मामले राज्य में बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल दस हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं। सात साल में यह आंकड़ा 75 हजार के पार जा चुका है। इससे पहले 2008 से 2014 के बीच करीब 95 हजार किसानों ने आत्महत्या की थी।
इसी साल मार्च के महीने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि राज्य में पिछले छह वर्षों में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। उनके राज्य में सत्ता में आने से पहले यानी 2017 से पहले सिंचाई की व्यवस्था न हो पाने, बिजली न मिलने और समय पर किसानों की फसल के बकाये का भुगतान न होने के कारण किसान गन्ने की फसलों को जलाने के लिए मजबूर हो जाया करते थे। लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। सरकार ने गन्ने की कीमत का समय पर भुगतान किया और समय पर ही धान और गेहूं की खरीद की। तब उन्होंने यह भी दावा किया था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही किसान सरकार के एजेंडे का हिस्सा बन गए थे। वे सरकार द्वारा चलाए जा रहे लाभप्रद कार्यक्रमों का हिस्सा बन गए थे।
पहले साहूकारों और कर्ज देने वालों पर किसान निर्भर हो गए थे लेकिन अब मृदा स्वास्थ्य कार्ड, किसान बीमा योजना, कृषि सिंचाई योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से उन्हें लाभ मिलने लगा है। मुख्यमंत्री ने ये दावा तो किया लेकिन वे इस बात को भूल गए कि उनके दावे के कुछ समय पहले ही प्याज और आलू की कीमतों में गिरावट के कारण किसान बेहाल हो गए थे। उस समय आलू की कीमतों में 60 से 75 प्रतिशत की कमी देखी गई थी। उससे पहले किसानों को आलू का दाम दस रुपये किलो मिल रहा था जबकि तब किसान चार रुपये किलो आलू बेचने को मजबूर हो रहे थे। पिछली सरकार की तुलना में गन्ना किसानों को समय पर जरूर भुगतान हुआ लेकिन सभी मिलों ने ऐसा नहीं किया। बजाज की 14 सुगर मिलों ने समय पर किसानों का भुगतान नहीं किया। आवारा मवेशियों की समस्या अभी भी राज्य में जस की तस बनी हुई है। किसानों की आत्महत्या की एक वजह खाद न मिलना भी है। दो साल पहले बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के मसौरा खुर्द गांव के नौजवान किसान रघुवीर सिंह ने खाद न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली थी। तब खाद की समस्या से परेशान होकर बुंदेलखंड के कई किसानों की आत्महत्या की खबरें आई थीं।
दरअसल किसानों की ये आत्महत्याएं सरकार के वादों के पूरा न होने की कहानी कहती हैं। सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक वह किसानों की आमदनी बढ़ाकर दोगुनी कर देगी। पर ऐसा हुआ नहीं। एनएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 में कृषक परिवारों की आमदनी 6426 रुपये थी जो 2015-16 में आठ हजार रूपये प्रति माह और 2018-19 में बढ़कर 10 हजार 218 रुपये प्रति माह हो गई थी। इसमें फसल उत्पादन से किसानों की औसत आमदनी 3798 रुपये प्रति महीना थी। यह आय किसानों की कुल आय की 37.2 प्रतिशत है। जबकि पशुपालन से किसानों की आमदनी 1582 रुपये प्रति माह है। किसानों को पशुपालन से होने वाली आमदनी किसानों की कुल आय का 15.5 प्रतिशत है। किसान गैर कृषि कार्यों से प्रति माह 641 रुपये कमाते हैं। यह उनकी कुल आमदनी का 6.3 प्रतिशत है। जबकि किसानों की मजदूरी से होने वाली आय कृषि कार्यों से होने वाली आय से कहीं ज्यादा है। मजदूरी से उसे 39.7 प्रतिशत की आय होती है। किसान अपनी भूमि को पट्टे पर देकर प्रति माह 134 रुपये कमाता है जो कि उसकी कुल आमदनी का 1.3 प्रतिशत है। अब अगर किसानों की आय 2022 तक बढ़कर करीब 21 हजार रुपये होती तब उनकी आय में दोगुनी की वृद्धि कही जाती। पर ऐसा नहीं हो सका। नवंबर 2021 में सरकार ने बताया था कि हर किसान एक महीने में 10, 218 रुपये कमाता है। इसमें से वह हर महीने 2959 रुपये बुआई पर, 1267 रुपये पशुपालन पर खर्च करता है। इस तरह उसे बाकी खर्चों के लिए छह हजार रुपये भी नहीं बचते। कहां तो उसकी आमदनी 21 हजार रुपये होने वाली थी और कहां खर्चे काटकर देखें तो वह बहुत कम रह गई।
इस तरह किसान की आमदनी बढी नहीं जबकि खाद, पानी और दूसरे कृषि उत्पादों की लागत बढ़ती गई। इसका नतीजा यह निकला कि देश के ज्यादातर किसान कर्जदार हो गए। साथ ही उन पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता गया। इस समय देश के आधे से ज्यादा किसान (50.2 प्रतिशत) कर्जदार हैं। पिछले छह सालों में किसानों का कर्ज 58 प्रतिशत तक बढ़ गया है। एनएसएसओ ने बताया था कि 2013 में देश के हर किसान पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज था जो कि 2019 में बढ़कर 74 हजार रुपये हो गया। यानी 58 प्रतिशत की वृद्धि। 2019 की नाबार्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के किसानों पर कुल 16.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। अलग-अलग एजेंसियों के कर्ज के आंकड़ों में थोड़ा बहुत अंतर मिलता है। लेकिन उनमें कोई बहुत बुनियादी फर्क नहीं होता। इसी तरह किस राज्य के किसानों पर सबसे ज्यादा कर्ज है इस पर भी एजेंसियों के आंकड़ों में फर्क नजर आता है। शायद उनके आंकड़े जुटाने के समय में अंतर रहता हो। एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक आंध्र प्रदेश के किसानों पर सबसे ज्यादा 1.89 लाख करोड़ का कर्ज है। जबकि दमन और दीव के किसानों पर सबसे कम 40 करोड़ का कर्ज है।
यूपी के किसानों पर 155 लाख करोड़ का कर्ज एजेंसी ने बताया है। अगस्त 2023 में वित्त राज्य मंत्री ने एक आंकड़ा लोकसभा में पेश किया। उन्होंने यह आंकड़ा नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट यानी नाबार्ड का पेश किया। उस आंकड़े के अनुसार 21.42 लाख किसानों ने 64 हजार 694 करोड़ रुपये का लोन कमर्शियल बैंक से लिया है। इसके अलावा 50 हजार 635 किसानों ने 1130 करोड़ का लोन सहकारी बैंकों से लिया है। जबकि ग्रामीण बैंकों ने 2.99 लाख किसानों को 7849.46 करोड़ रुपये का लोन दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 1.47 लाख करोड़ का लोन राजस्थान के किसानों ने लिया है। लेकिन संस्थागत लोन सबसे अधिक पंजाब में है। इसके बाद गुजरात का नाम है जहां पर 2.28 लाख करोड़ का लोन है। उसके बाद हरियाणा और आंध्र प्रदेश का नंबर है जहां क्रमश: 2.11 लाख करोड़ और 1.72 लाख करोड़ का लोन है। यूपी में चूंकि व्यावसायिक खेती कम ही किसान करते हैं इसलिए यहां इस तरह के लोन कम हैं। लेकिन जितना भी कर्ज है यहां के किसानों पर भी लोन का कर्ज हर साल बढ़ता ही जा रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि किसानों का कर्ज पहली बार बढ़कर पांच हजार करोड़ से ज्यादा हो गया है। पिछले साल दिसंबर तक यह कर्ज 4890 करोड़ का था जो मार्च 23 तक ब़ढ़कर 5063 करोड़ तक पहुंच गया। यहां के किसानों पर 2008-9 में 1071 करोड़ का कर्ज था जो क्रमश बढ़ते हुए 2009-10 में 1296 करोड़, 2010-11 में 1454 करोड़, 2011-12 में 1842 करोड़, 2012-13 में 2010 करोड़, 2013-14 में 2874 करोड़, 2014-15 में 3250 करोड़, 2015-16 में 3840 करोड़, 2017-18 में 4300 करोड़, 2018-19 में मार्च तक 5063 करोड़ रुपये हो गया।
इसी तरह पिछले साल मेरठ से एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि यहां के किसानों पर 15 हजार 890 करोड़ का कर्ज है। यहां कृषि और कृषि संबंधी उपकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि पर लोन लेने वाले किसानों की संख्या चार लाख 92 हजार 618 है। इन्होंने कुल 15 हजार 890 करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है। इस हिसाब से यहां के प्रत्येक व्यक्ति पर बैंक का कर्ज 3.22 लाख रुपये है। इसी साल पंजाब के सांसद सुखबीर बादल द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री भागतव कराडे ने बताया कि पूरे देश में प्रति कृषक परिवार पर औसतन 74 हजार 121 रुपये का कर्ज बकाया है। सबसे अधिक आंध्र प्रदेश के कृषि परिवारों पर 2,45 554 रुपये, केरल 2,42,482 रुपये, पंजाब 2,03,249 रुपये है। उत्तर प्रदेश के प्रति कृषक परिवार पर यह रकम 51 हजार 107 रुपये है। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 26.31 करोड़ किसान थे जिसमें सबसे ज्यादा 3.89 करोड़ किसान यूपी में ही थे। हालांकि हाल के वर्षो में किसानों की संख्या तेजी से कम हुई है।