झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के विधायक सरफराज अहमद की विधायकी छोड़ने से इस बात की चर्चा जोरों पर है कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) अब अपनी पत्नी कल्पना सोरेन (Kalpana Soren) को मुख्यमंत्री बना सकते हैं, क्योंकि उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है। दरअसल, ईडी की तरफ से उन्हें सातवीं और आखिरी बार समन मिला है, जिसकी आखिरी मियाद भी खत्म हो चुकी है।
पति की सीट से नहीं लड़ सकतीं चुनाव
दरअसल, कल्पना सोरेन झारखंड विधानसभा की सदस्य नहीं हैं। ऐसे में अगर वह मुख्यमंत्री बनाई जाती हैं तो उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। उनके पति हेमंत सोरेन फिलहाल बरहेट विधान सभा सीट से विधायक हैं, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। कल्पना सोरेन पड़ोसी राज्य ओडिशा के मयूरभंज की रहने वाली हैं और आदिवासी नहीं हैं। इसलिए वह पति द्वारा सीट छोड़े जाने के बावजूद बरहेट सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकती हैं।
इसीलिए, माना जा रहा है कि उनके लिए एक अनारक्षित सीट खाली करवाई गई है। विधायकी छोड़ने वाले सरफराज अहमद गांडेय अनारक्षित सीट से विधायक थे। यह सीट जेएमएम का गढ़ रहा है। यह आदिवासी और मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां से 1985, 1990, 2000, 2005 और 2019 में कुल पांच बार जेएमएम की जीत हो चुकी है। सरफराज अहमद भी यहां से दो बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं। 2019 में अहमद ने यहां 8855 वोटों के अंतर से बीजेपी उम्मीदवार को हराया था। ऐसे में यहां उपचुनाव में कल्पना सोरेन की जीत आसानी से हो सकती है।
सीट छोड़ने का इनाम, राज्यसभा की सदस्यता
झारखंड के राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि गांडेय सीट छोड़ने वाले सरफराज अहमद को त्याग का इनाम भी दिया जा सकता है। चर्चा है कि फरवरी-मार्च में होने वाले द्विवार्षिक राज्यसभा चुनावों में पार्टी उन्हें संसद भेज सकती है। सरफराज अहमद वरिष्ठ राजनेता हैं। वह कांग्रेस में भी रह चुके हैं। संयुक्त बिहार में वह गांडेय सीट से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
बररहाल, कल्पना सोरेन की मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती। उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बॉम्बे हाई कोर्ट का वह आदेश है, जिसमें कहा गया था कि अगर चुनाव होने में एक साल या उससे कम समय शेष हो तो उप चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। महाराष्ट्र की काटोल विधानसभा सीट पर उप चुनाव को लेकर दायर अर्जी पर हाई कोर्ट ने 2019 में यह आदेश दिया था। वहां चुनाव होने में एक साल 50 दिन का समय शेष था।
झारखंड विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने में भी अब एक साल का वक्त रह गया है। ऐसे में अगर उप चुनाव की घोषणा होती है और चुनाव की तारीखों का ऐलान होता है तो इस मुद्दे को कोर्ट में घसीटा जा सकता है। बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने इस बारे में भी ट्वीट कर झारखंड के राज्यपाल से पूछा है कि अगर कल्पना सोरेन जी कहीं से विधायक नहीं बन सकती हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री कैसे बनाया जा सकता है? दूबे ने राज्यपाल से इस बारे में विचार करने को भी कहा है।
संविधान के अनुच्छेद 164 (1) में बताया गया है कि राज्य का राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा। संविधान में मुख्यमंत्री नियुक्ति की प्रक्रिया वैसी ही जैसी भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति की है। अनुच्छेद 164 (1) के तहत मुख्यमंत्री पद के लिए योग्यता वही है जो विधायक की योग्यता है लेकिन इसमें बड़ी और रोचक बात यह है कि यह जरूरी नहीं है कि जिसे मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर नियुक्त किया गया हो, वह विधानसभा या विधानमंडल का सदस्य हो ही। ऐसी दशा में संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार उन्हें पद ग्रहण करने के छह महीने के अंदर विधानमंडल के किसी भी सदन की सदस्यता लेनी होगी। उनके ससुर शिबू सोरेन भी 2009 में ऐसा कर चुके हैं। हालांकि, छह महीने बाद हुए तमाड़ उपचुनाव वह हार गए थे, तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
चूंकि झारखंड में विधान परिषद नहीं है, इसलिए सीएम बनने की सूरत में कल्पना सोरेन को छह महीने के अंदर विधायकी का चुनाव जीतना होगा। ऐसा नहीं होने पर उन्हें छह महीने बाद स्वत: पद त्यागना होगा। ये अलग बात है कि उनकी पार्टी चाहे तो फिर से उन्हें दोबारा बिना विधायक बने अगले छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बना सकती है। तब तक चुनाव की तारीख आ जाएगी लेकिन इसमें सबसे बड़ी मुश्किल राजनीतिक जनाधार और विपक्ष के हमलावर होने की आशंका है। दूसरी तरफ ये भी आशंका है कि बीजेपी की चिंताओं के मुताबिक राज्यपाल भी चाहें तो कल्पना सोरेन के नाम पर रोड़ा अटका सकते हैं।