इनके नाम से ही कांपते थे नेता और पार्टियां, जिन्‍होंने किए चुनाव से जुड़े कई सुधार

नई दिल्‍ली। देश के निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी को 1950 को किया गया था। यानी भारत के गणतंत्र बनने से ठीक एक दिन पहले। पहले आम चुनाव के लिए घर-घर जाकर वोटरों का रजिस्ट्रेशन अपने आप में एक इतिहास बनाने जैसा था। हर पार्टी के लिए अलग-मतपेटी थी, जिन पर उनके चुनाव चिन्ह अंकित थे। इन मतपेटियों और मतपत्रों को संबंधित पोलिंग बूथ तक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। पहाड़ों, जंगलों, मैदानी इलाकों में नदी-नालों को पार करते हुए, पगडंडियों से गुजरते हुए नियत स्थान तक पहुंचने के लिए अधिकारियों-कर्मचारियों को कितना पसीना बहाना पड़ा होगा, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। इस सबके दौरान कई लोग बीमार पड़ गए, कुछ की मृत्यु भी हो गई, कुछ लूट के शिकार हुए। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरीके अपनाए गए। देश में पहला आम चुनाव कराना अपने आप में दुरुह कार्य था।

25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक चले पहले आम चुनाव की प्रक्रिया ने भारत को एक नया मुकाम दे दिया था। उस समय यह अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा, अनपढ़ बनाया गया कंगाल देश जरूर था, लेकिन इसके बावजूद इसने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया। और इन सबमें अग्रणी भूमिका निभाई थी भारत निर्वाचन आयोग ने।

                                                                                               सुकुमार सेन

पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त

भारतीय नागरिक सेवा अधिकारी सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। वह इससे पहले पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे। उन्होंने 1952 और 1957 के चुनाव कराए। दूसरे चुनाव में सुकुमार सेन ने सरकार का 4.5 करोड़ रुपया बचाया था। उन्होंने पहले चुनाव के 35 लाख बैलेट बॉक्स बचाकर रख लिए थे। भारत में सफल चुनाव कराने वाले सेन को सूडान सरकार ने अपने यहां होने वाले प्रथम चुनाव की निगरानी का जिम्मा सौंपा था।

                                                                                        टीएन शेषन

भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक था। टीएन शेषन के कार्यकाल में स्वच्छ व निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए नियमों का इतना कड़ाई से पालन किया गया कि उनका तत्कालीन केंद्र सरकार से विवाद तक हो गया था। देश के हर वाजिब वोटर के लिए मतदाता पहचान पत्र उन्हीं की पहल का नतीजा था। पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने देशभक्त ट्रस्ट बनाया। 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा, लेकिन वह केआर नारायणन से हार गए। उसके दो वर्ष बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें भी पराजित हुए। शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के पहले तक निर्वाचन आयोग की भूमिका से आम आदमी अनजान था, लेकिन शेषन ने इसे जनता के दरवाजे पर ला खड़ा किया। इससे जनता की उम्मीदें और बढ़ीं। इसे और गतिशील और पारदर्शी बनाने के लिए इसका स्वरूप बदलने की जरूरत महसूस की गई और इसे बदला भी गया।

                                                                                          एमएस गिल

टीएन शेषन के बाद देश के 11वें मुख्य चुनाव आयुक्त मनोहर सिंह गिल बने। भारतीय चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रवेश एमएस गिल की ही देन है। चुनाव प्रक्रिया में अभूतपूर्व योगदान के लिए एमएस गिल को पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वह 2008 में केंद्र में मंत्री भी रहे।

                                                                                         एन गोपालास्वामी

एन गोपालस्वामी मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए उस समय चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने अपने अधीन चुनाव आयुक्त नवीन चावला को आयोग हटाने की सिफारिश कर दी थी। उनका आरोप था नवीन एक पार्टी विशेष को लेकर निष्पक्ष नहीं थे। हालांकि केंद्र सरकार ने गोपालस्वामी की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए नवीन चावला को देश का 16वां मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया था।

                                                                                         एसवाई कुरैशी

एसवाई कुरैशी मुस्लिम समुदाय से आने वाले पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। कम्युनिकेशन और सोशल मार्केटिंग से पीएचडी करने वाले कुरैशी हरियाणा कैडर के 1971 बैच के आइएएस अधिकारी थे। वह राइट टू रिकॉल और राइट को रिजेक्ट विकल्प के पक्षधर नहीं थे, हालांकि बाद में उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान

माना था कि राइट टू रिजेक्ट पर विचार किया जा सकता है।

                                                                                         अचल कुमार जोति

6 जुलाई 2017 से 23 जनवरी 2018 तक मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने वाले अचल ने अपना कार्यकाल पूरा होने के दो दिन पहले ही लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने की सिफारिश की थी।

अब तक के मुख्य निर्वाचन आयुक्त

सुकुमार सेन 21 मार्च 1950 – 19 दिसंबर 1958

केवीके सुंदरम 20 दिसंबर 1958 – 30 सितंबर 1967

एसपी सेन वर्मा 1 अक्टूबर 1967 – 30 सितंबर 1972

डॉ. नागेंद्र सिंह 1 अक्टूबर 1972 – 6 फरवरी 1973

टी स्वामीनाथन 7 फरवरी 1973 – 17 जून 1977

एस एल शकधर 18 जून 1977 – 17 जून 1982

आरके त्रिवेदी 18 जून 1982 – 31 दिसंबर 1985

आरवीएस पेरिशास्त्री 1 जनवरी 1986 – 25 नवंबर 1990

श्रीमती वी एस रमा देवी 26 नवंबर 1990 – 11 दिसंबर 1990

टीएन शेषन 12 दिसंबर 1990 – 11 दिसंबर 1996

एमएस गिल 12 दिसंबर 1996 – 13 जून 2001

जेएम लिंगदोह 14 जून 2001 – 7 फरवरी 2004

टीएस कृष्णमूर्ति 8 फरवरी 2004 – 15 मई 2005

बीबी टंडन 16 मई 2005 – 29 जून 2006

एन गोपालस्वामी 30 जून 2006 – 20 अप्रैल 2009

नवीन चावला 21 अप्रैल 2009 – 29 जुलाई 2010

एसवाई कुरैशी 30 जुलाई 2010 – 10 जून 2012

वी. एस संपत 11 जून 2012 – 15 जनवरी 2015

एचएस ब्रह्मा 16 जनवरी 2015 – 18 अप्रैल 2015

डॉ. नसीम जैदी 19 अप्रैल 2015 – 5 जुलाई, 2017

एके जोति 6 जुलाई, 2017 – 22 जनवरी 2018

ओम प्रकाश रावत 23 जनवरी 2018 – 01 दिसंबर 2018

सुनील अरोड़ा 2 दिसंबर 2018 – अब तक

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