नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि आरएसएस किसी से किसी की जाति नहीं पूछता. उन्होंने यह भी कहा है कि जाति को जाति व्यवस्था कहना बिल्कुल गलत है. ये व्यवस्था नहीं बल्कि ये तो अव्यवस्था है. और इसका खत्म होना तय है. दिल्ली में आयोजित ‘भविष्य का भारत’ कार्यक्रम का आज आखिरी दिन है. आज मोहन भागवत सवालों के जवाब दे रहे हैं. पिछले दो दिनों में श्रोताओं से कुल 25 सवाल लिए गए हैं.
सवाल- हिन्दुज़्म को हिंदुत्व कहा जा सकता है?
मोहन भागवत- हिंदुत्व को हिन्दुज़्म नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इज़्म का मतलब ‘बंद’ है. राधामोहन जी का एक कोड है उसका एक हिस्सा ही बता सकता हूं. हिदुत्व ही तालमेल का आधार बन सकता है. कुछ लोग जानते हैं और कुछ लोग गर्व से कहते हैं. कुछ लोग किसी कारणवश इसे स्वीकार नहीं करते हैं. भारत में इतनी विविधता है कि कई बार एक दूसरों के विरोधी भी लगते हैं. भारत में परायापन नहीं है, ये हमने पैदा किया है.
सवाल- क्या सामाजिक समरसता के लिए रोटी-बेटी का व्यवहार किया जा सकता है?
मोहन भागवत- रोटी बेटी का सम्बंध का हम समर्थन करते हैं. रोटी का तो ठीक है लेकिन जब बेटी का सम्बंध करते है तो ये दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का सम्बंध होता है. इसलिए हम इसका समर्थन करते हैं. महारष्ट्र में साल 1942 में पहला अंतरजातीय विवाह हुआ था. अगर परसेंटेज निकाला जाए तो आरएसएस के स्वयंसेवकों का परसेंटेज सबसे ज़्यादा निकलेगा. जब हम ये करेंगे तो हिन्दू समाज बटेगा नहीं. ये हम सुनिश्चित कर सकते हैं, लेकिन हिन्दू समाज बटेगा नहीं क्योंकि हिंदुत्व, हिन्दू की आत्मा है और शरीर बहुत दिनों तक अलग नहीं रह सकता.
सवाल- हिन्दू समाज जाति व्यवस्था को कैसे देखता है, हिन्दू समाज में एससी/एसटी का क्या स्थान है?
मोहन भागवत- इसे जाति व्यवस्था कहते हैं, ये गलत है. ये व्यवस्था कहां है? ये तो अव्यवस्था है. ये खत्म होना तय है. हम विषमता में भरोसा नहीं करते. ये लंबी यात्रा है और करनी पड़ेगी. हम संघ में जाति नहीं पूछते. जब मैं संघचालक चुना गया तो मीडिया ने चलाया कि भागवत चुने गए, लेकिन ओबीसी को प्रतिनिधित्व देना है इसलिए सोनी जी को बनाया गया. जब मैंने पूछा कि सोनी जी आप ओबीसी में आते हैं क्या? वे मुस्कुरा दिए और आज तक मुझे नहीं पता है कि सोनी जी क्या हैं.
सवाल- शिक्षा में परम्परा और आधुनिकता का समावेश, पैराणिक ग्रंथों का समावेश, संघ का क्या दृष्टिकोण है.
मोहन भागवत- परम्परा से हमारी शिक्षा व्यवस्था, सभी की शिक्षित करने वाली और मनुष्य बनाने वाली थी. हम धर्म की शिक्षा भले ही न दें लेकिन मूल्यों और उनसे निकलने वाले संस्करों की शिक्षा देनी चाहिए. शिक्षा का स्तर नहीं गिरता, शिक्षा लेने और देने वालों का स्तर गिरता है. हमारे देश मे शिक्षा नीति में आमूल चूल परिवर्तन की ज़रूरत है. निजी क्षेत्र में भी बड़े अच्छे काम हो रहे हैं और ये जारी रहा तो सरकार भी एक दिन निजी शिक्षा क्षेत्र का अनुसरण करेगी.
सवाल- हिंदी कब राष्ट्र भाषा बन पाएगी, अंग्रेजी का प्रभुत्व नीति नियामक संस्थओं में ज़्यादा है. हिंदी या संस्कृत का होना चाहिए.
मोहन भागवत- अंग्रेजी से कोई शत्रुता नहीं है, लेकिन अच्छी हिंदी बोलने वाले हो, अच्छी एक भाषा हम सीखे, एक भाषा बनाने से अगर देश में कटुता बढ़े तो हमें मन कैसे बने ये सोचना चाहिए. हिंदी के अतिरिक्त दूसरी भाषाओं में से एक भाषा हिंदी भाषी सीखे तो गैर हिंदी भाषी भी हिंदी सीखने में आगे आएंगे. संस्कृत विद्यालय इसलिए कम हो रहे हैं, क्योंकि हम वरीयता नहीं देते हैं. अपनी मातृ भाषा ज़रूर आनी चाहिए.
सवाल- लड़कियों और महिला सुरक्षा को लेकर संघ की क्या दृष्टि है, संघ ने इस पर क्या किया है, कानून का भय क्यों नहीं है?
मोहन भागवत- महिला पहले ज्यादातर वक्त घर में रहती थी तो परिवार वालों की ज़िम्मेदार थी. अब जब महिला कंधे से कंधे मिलाकर बाहर निकल रही है तो उसे अपनी सुरक्षा के लिए तैयार करना होगा. महिला तब असुरक्षित होती है जब पुरुष की दृष्टि बदलती है. अपनी पत्नी को छोड़कर सभी को माता के रूप में देखना ये संस्कार थे. अब इसे संघ के स्वयंसेवक करते हैं. एबीवीपी इसे कर रहा है.
मोहन भागवत ने कहा कि कानून का डर कम क्यों हैं, क्योंकि कानून का पालन समाज नहीं करता. देश में कई इलाके ऐसे हैं जहां पांच बजे के बाद महिला नहीं निकलती. जबकि कई जगह रात में आभूषण पहन कर निकलती है. ये माहौल है. इसे बनाना पड़ेगा.