नई दिल्ली। बसपा अध्यक्ष मायावती ने कांग्रेस की बजाय अजीत जोगी के साथ गठबंधन कर छत्तीसगढ़ के रण में उतरने का फैसला किया है. मायावती का ये फैसला राहुल गांधी के लिए राजनीतिक रूप से बड़ा झटका माना जा रहा है. ये पहली बार नहीं है कि राहुल सहयोगी दलों को साधने में फेल साबित हुए हैं बल्कि इससे पहले कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, त्रिपुरा जैसे राज्यों में गच्चा खा चुके हैं.
एक दशक से भी अधिक समय से राजनीति में सक्रिय राहुल गांधी छत्रपों के साथ-साथ अपनी ही पार्टी के कई नेताओं को भी अपने साथ जोड़कर नहीं रख पाए. राहुल की इसी चूक का फायदा बीजेपी ने उठाया. बीजेपी कांग्रेस के नाराज नेताओं को अपने पाले में लाकर यूपी और पूर्वोत्तर के कई राज्यों की सत्ता को फतह करने में कामयाब रही.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है. इसके मद्देनजर कांग्रेस नेता बसपा के साथ गठबंधन के लिए लालायित थे. छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और मध्य प्रदेश के अध्यक्ष कमलनाथ बसपा के साथ गठबंधन करने की इच्छा कई बार सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं.
बसपा को कांग्रेस की नाक के नीचे से ले गए जोगी!
इसके बावजूद कांग्रेस बसपा को अपने साथ नहीं रख पाई. अजीत जोगी कांग्रेस के नाक के नीचे से बसपा को अपने पाले में ले आए. राहुल भले ही पूरे जोश के साथ घूम रहे हों और विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मायावती के साथ गठबंधन करने में सफल नहीं हो सके. इसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी विधानसभा चुनावों में उठाना भी पड़ सकता है.
कांग्रेस नेता भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में बसपा से गठबंधन न होने के चलते करीब दो दर्जन सीटों पर नुकसान पार्टी को हो सकता है. इसी तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को करीब 50 विधानसभा सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा सकता है. पिछले चुनाव में बसपा को 4 सीटों के साथ करीब 7 फीसदी वोट मिले थे और 80 सीटें ऐसी थी, जहां बसपा को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. अब दलित-अदिवासी बहुल सीटों में जोगी-माया की जोड़ी कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.
मायावती के इस कदम के बाद दलितों का वोट कांग्रेस के हाथ से फिसल सकता है. बसपा लोकसभा चुनाव में भी ऐसे ही तेवर यूपी में भी दिखा सकती है. हरियाणा में बसपा पहले ही इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन कर चुकी है. ऐसे में कांग्रेस के पास भी वहां कोई साथी नहीं बचा है.
पहले भी कई चूक कर चुके हैं राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से पहली बार चूक नहीं हुई है. इससे पहले कर्नाटक में भी जेडीएस के साथ गठबंधन कर पाने में असफल रहे थे. इसी का नतीजा था कि बीजेपी वहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि बाद में त्रिशंकु विधानसभा के हालात होने के बाद बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसी कारण कांग्रेस के पास जेडीएस से ज्यादा सीटें होने के बाद सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
त्रिपुरा में कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव न लड़ने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ा. कांग्रेस का वोटबैंक बीजेपी में शिफ्ट हो गया और उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई. हालांकि लेफ्ट को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.
कांग्रेस को सहयोगी दलों को साधने का नुकसान झारखंड में उठाना पड़ा था. 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर चुनाव लड़ने बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा. इतना ही नहीं यूपी के विधानसभा चुनाव के आखिरी वक्ता में सपा से गठबंधन हो सका था. कहा जाता है कि उसमें भी प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही दोनों पार्टियों में सहमति बन पाई.
ऐसे-कैसे सहयोगियों को साथ लेकर चल पाएंगे राहुल?
सहयोगी दलों के साथ-साथ अपनी पार्टी के नेताओं को भी राहुल सहेजकर साथ नहीं रख सके. असम के हिमंता बिस्वा सरमा जैसे जमीनी नेता ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. हिमंता बिस्वा के जरिए बीजेपी ने असम ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर में अपनी राजनीति को मजबूत किया है.
मोदी के खिलाफ राहुल गांधी का विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति पर लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं. 2019 में मोदी के खिलाफ अभी तक विपक्ष के गठबंधन का स्वरूप तय नहीं हो सका है. जबकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और नरेंद्र मोदी दोबारा से सत्ता में वापसी के लिए रैली दर रैली कर रहे हैं.