*मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव-2018
*जुदा-जुदा राह की कई वजहें
*कांग्रेस द्वारा अधिक सीट न देने का मुख्य कारण, भविष्य में अपना प्रतिद्वंद्वी बनाने का महसूस हो रहा खतरा
*यूपी से सटे क्षेत्रों में सपा, बसपा के अलावा जनअधिकार पार्टी का भी मजबूती से दावा
राहुल कुमार गुप्त
कुछ बदला-बदला सा मंजर होगा अबकि बार मध्य प्रदेश में। बीजेपी के दीर्घ शासन से जहाँ जनता का मोहभंग हो रहा है वहीं उसके विकल्प के रूप में कांग्रेस जहाँ प्रथम पर है वहीं अन्य क्षेत्रीय दलों के लिये एमपी पर पैर जमाने के लिये एक बेहतरीन मौका है। इन अन्य दलों का प्रभाव पूरे मध्य प्रदेश में विस्तृत जरूर नहीं है किन्तु कुछ-कुछ सीटों पर अच्छा प्रभाव है। जो इस विधानसभा में एक नये समीकरण के लिये पर्याप्त हैं। भले अपनी महत्वाकांक्षाओं या अन्य किसी राज के कारण महागठबंधन नहीं हो पा रहा। (प्रयास चुनाव पूर्व तक अंदरखाने से जारी रहने की संभावनायें हैं। ) किन्तु अलग-अलग लड़ने पर नफा सत्ताधारी दल को और नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा।
इस तात्कालिक नुकसान की संभावना को कांग्रेस के दिग्गजों के अनुसार यह कम प्रभाव वाली है, क्योंकि उनके अपने सर्वे और जनता के रुझान से उन्होंने खुद को सत्तासीन होने का उत्तराधिकारी मान लिया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश तक सीमित रहने वाले दो बड़े दलों सपा व बसपा की बढ़ती महात्वाकांक्षा पर थोड़ी पकड़ बनानी भी भविष्य के लिये जरूरी है। जब जीत तय दिख रही है तो भविष्य के लिये सरदर्द कौन पाले? कांग्रेस की यह सोच प्रदेश स्तर के लिये कहीं न कहीं उचित ही होगी। यहाँ सपा और बसपा का प्रभाव कुछ सीटों तक कुछ ही हद तक है अतः कांग्रेस को तात्कालिक नुकसान होगा लेकिन कम। कई छोटे-छोटे स्थानीय दल कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं इस वजह से यह सपा-बसपा की भरपाई पूर्ण रूप से तो नहीं लेकिन कुछ हद तक पूरी जरूर कर देंगे। कांग्रेस भी नहीं चाहती की मध्य प्रदेश में वह सपा-बसपा को ज्यादा सीटें देकर भविष्य में अपना प्रतिद्वंद्वी खड़ा कर ले। यह प्रदेश का मामला है अतः लोकसभा स्तर पर यह महागठबंधन तैयार हो सकता है क्योंकि प्रदेश स्तर पर यह दल उतनी परेशानी महसूस नहीं करते जितनी इस दौर में केंद्रीय स्तर से महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस के कुछ दिग्गजों पर बसपा सुप्रीमो ने कटाक्ष किया और कहा कि यह आरएसएस के एजेंट और महागठबंधन के बीच की दीवार हैं। आज राजस्थान व मध्य प्रदेश में कांग्रेस एक मजबूत स्थिति और सरकार बनाने की स्थिति में है ऐसे में राजनीति और कूटनीति के अनुसार वह बड़ी संख्या में दूसरे दलों को सीट देकर भविष्य में अपना दुर्ग ढहाना नहीं चाहेगी। महागठबंधन के लिये यह भी जरूरी है कि जितना परफार्मेंस पिछले चुनाव में रहा हो उस हिसाब से सीट तय कर लेनी चाहिये थी तो शायद कांग्रेस को भी कतई ऐतराज न होता। लेकिन सबकी अपनी अपनी महात्वाकांक्षाओं के साथ-साथ मध्य प्रदेश व राजस्थान में भी अपने दलों का विस्तार करना था। कुछ सूत्रों के अनुसार तो यह भी अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि सरकारी तोते के दबाव के चलते सब दूर-दूर नजर आ रहे हैं।
इन बड़े दलों के अलावा भी यूपी से सटे और एमपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक नये दल की दस्तक ने यहाँ के समीकरणों को नये सिरे से गढ़ने के संकेत दे दिये हैं। यूपी में अतिपिछड़ों के नायक के रूप में स्थापित कांशीराम के अनुयायी पूर्व काबीना मंत्री बाबूसिंह कुशवाहा के संरक्षण में बनी जनअधिकार पार्टी शुरुआती दौर में इन क्षेत्रों में अपनी रैलियों में पर्याप्त भीड़ एकत्रित करने में कामयाब थी। यह भीड़ स्वप्रेरणा के कारण थी अतः इस पार्टी के लिये यह विश्वसनीय लोग थे।
जन अधिकार पार्टी इस एक वर्ष से इन क्षेत्रों में सक्रिय है। कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी, पटेल आदि स्वजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में एक मजबूत पकड़ भी बना ली है।
जनाधिकार पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आईपी कुशवाहा के अनुसार सन् 2013 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी की चार सीट में जीत दर्ज और लगभग 14 सीटों में द्वितीय स्थान का श्रेय यूपी से लगे क्षेत्रों के एससी के साथ अतिपिछड़ों का भी था। इन अतिपिछड़ों का बसपा से मोह पूर्व कबीना मंत्री श्री कुशवाहा जी की भी वजह से था। बसपा में उपस्थित कुछ अगड़ों की कुटिल साजिशों के तहत पिछड़ों के नायक को जेल पहुँचाने की वास्तविक गाथा यहाँ के लोग तुरंत समझ न पाये थे, किंतु इन एक वर्षों की इस क्षेत्र में हमारी सक्रियता यूपी की तरह अब एमपी में भी बसपा को कमजोर कर देगी साथ ही यूपी से सटे जिलों में कुछ सीटों पर जनअधिकार पार्टी जीत का आगाज भी करेगी। और मध्य प्रदेश की अन्य पिछड़ी जातियों को भी अपने साथ लाकर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ेंगे। समान शिक्षा नीति और आबादी के हिसाब से आरक्षण के लिये संघर्षरत रहेंगे। बुंदेलखंड क्षेत्र और यूपी सी सटी 30 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का पार्टी विचार बना रही है शेष अन्य सीटों पर जो दल समान शिक्षा नीति और आबादी के हिसाब से आरक्षण के लिये प्रतिबद्ध होगी उसका समर्थन करेंगे।
जनअधिकार पार्टी के आगाज से मध्य प्रदेश की कुछ सीटों में पूर्वगामी समीकरणों पर कुछ विराम लगने की संभावना है। इस नवोदित दल की इन विशेष क्षेत्रों में एकवर्षीय सक्रियता का रंग कितना गहरा होगा यह चुनाव के दौरान ही एहसास होना शुरू हो जायेगा, और चुनाव परिणाम यह तय कर देंगे कि ‘जाप’ का लाल रंग यहाँ कितना चढ़ेगा?