भोपाल। उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या (बलिदान) के आरोपित और कुख्यात अपराधी विकास दुबे की उज्जैन में नाटकीय गिरफ्तारी के बाद जहां पुलिस की भूमिका पर अंगुलियां उठने लगी हैं, वहीं विपक्ष को भी हमलावर होने का मौका मिल गया है। बड़ा सवाल यही है कि क्या उसकी गिरफ्तारी पुलिसकर्मियों की मिलीभगत से हुई है। भले ही गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र दावा कर रहे हैं कि खुफिया सूचना मिलने के बाद दुबे पकड़ा गया, लेकिन उप्र के कुख्यात अपराधियों का दूसरे राज्यों से ही गिरफ्तारी का इतिहास रहा है। आखिर क्यों दूसरे राज्यों से ही ये अपराधी पकड़े जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधियों का रिकॉर्ड खंगालें तो यह बात साफ हो जाती है कि दबाव बढ़ने के बाद सांठगांठ कर वे दूसरे राज्यों में गिरफ्तार हो जाते हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं। गोरखपुर जिले में 25 मार्च 1996 को विधायक ओमप्रकाश पासवान समेत कई लोगों की एक सभा में बम फेंककर हत्या कर दी गई थी। हत्या के कुछ माह बाद हत्यारोपी राकेश यादव और ब्रह्मा यादव बिहार के पटना स्थित गांधी मैदान थाने में नकली नाम से जुआ खेलते पकड़े गए। बाद में पड़ताल में यह बात आई कि गांधी मैदान थाना क्षेत्र के तत्कालीन थानेदार तारिणी प्रसाद यादव ने उन दोनों की सुनियोजित गिरफ्तारी कराई है।
उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े इनामी, माफिया से माननीय बने एमएलसी बृजेश सिंह पर पुलिसकर्मियों की हत्या समेत कई नरसंहार के आरोप थे। बृजेश की वर्ष 2008 में ओडिशा के भुवनेश्वर में गिरफ्तारी हुई तो भी सांठगांठ की ही बात सामने आई। बृजेश के प्रतिद्वंद्वी माफिया और विधायक मुख्तार अंसारी की भी करीब तीन दशक पूर्व पहली गिरफ्तारी चंडीगढ़ के पंचकूला में हुई थी। उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त्त आइपीएस बीपी सिंह कहते हैं कि घटना के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस का खौफ अपराधी के सिर पर रहता है इसलिए वह फरार होने के साथ ही अपनी सुरक्षित गिरफ्तारी की जुगाड़ में लग जाता है और येन-केन-प्रकारेण सफलता भी मिल जाती है।
अपराधियों को मिलता सियासी संरक्षण
ऐसे गठजोड़ से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसमें अपराधियों को सियासी संरक्षण भी मिलता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक लाख का इनामी मोस्ट वांटेड सुशील मूंछ राजस्थान से गिरफ्तार हुआ तो उसने पुलिस और राजनीतिक संरक्षण की बात स्वीकारी थी। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का ढाई लाख का इनामी कौशल चौबे उत्तराखंड के देहरादून में गिरफ्तार हुआ। उसे भी राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था। गोरखपुर के पूर्व विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही और बिहार के मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के अभियुक्त राजन तिवारी तो राजनीतिक संरक्षण में ही पकड़ा गया और जेल से ही विधायक बन गया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
अपराधी को मारे जाने का खौफ
मध्य प्रदेश के पूर्व आइपीएस अरुण गुर्टू का कहना है कि अपराधी को मारे जाने का खौफ ही दूसरे राज्य में ले जाता है। पुलिसकर्मियों से सांठगांठ की बात तो मैं नहीं मानता, लेकिन भनक न लग पाना चूक है।