सूत्र ने बताया “भारतीय मुसलमानों को कट्टर बनाने और कट्टरपंथियों की भर्ती कि लिए तुर्की से समन्वित प्रयास किए जा रहे है।” उन्होंने इस बात को रेखांकित करते हुए कहा कि नई दिल्ली में हाल में किए गए आकलन से पता चला है कि भारत विरोधी गतिविधियों का पाकिस्तान के बाद तुर्की सबसे बड़ा केंद्र बन गया है।
वैश्विक स्तर पर सऊदी अरब के प्रभाव को चुनौती देने के राष्ट्रपति एर्दोगन की पृष्ठभूमि में अंकारा दक्षिण एशियाई मुस्लिमों में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही, अन्य इस्लामी राष्ट्रों के अनुसरण के लिए मॉडल के रूप में ओटोमन परंपराओं के साथ एक नए रूढ़िवादी तुर्की को पेश करना है।
एर्दोगन की दीर्घकालीन योजना खुद को मुसलमानों के वैश्विक संरक्षक के तौर पर तुर्क खलीफा की तरफ पेश करना है। उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान के इमरान खान और मलेशिया के महात्तिर मोहम्मद सहित मुट्ठी भर देशों के साथ-साथ गैर-अरब इस्लामिक देशों के गठजोड़ के लिए एक छोटा कदम उठाया था। इरान और कतर को भी इसमें शामिल किया गया।
पाकिस्तान के ऊपर नजर रखनेवालों का यह मानना है कि भारत द्वारा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने संबंधों को गहरा करने के बाद इस्लामाबाद तुर्की के एर्दोगन के पास गया।
अधिकारियों का मानना है कि एर्दोगन के राजनीतिक एजेंडे ने उनकी सरकार को दक्षिण एशियाई मुसलमानों के साथ अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया है, विशेष रूप से भारत में उन लोगों के साथ। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि तुर्की सरकार ने कश्मीर में कट्टरपंथी अलगाववादी नेता जैसे सैयद अली शाह गिरानी को वर्षों को फंडिंग की। लेकिन इसने तेजी से विस्तार का प्रयास किया किया है, जिसके चलते हाल में सुरक्षा एजेंसियों को व्यापक समीक्षा करना पड़ा है।