पहले बात सोमनाथ की…
गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल के पास मौजूद सोमनाथ मंदिर शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में पहला माना जाता है। आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत में आने वाला यह पवित्र स्थान भगवान कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है। जिस तरह अयोध्या में राम मंदिर को गिराकर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था, उसी तरह 1026 ईसी में तुर्की के शासक मोहम्मद गजनी ने बेहद धनी इस मंदिर को लूट लिया था और शिवलिंग को भी नुकसान पहुंचाया था। आजादी के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।
सोमनाथ पुनर्निर्माण और कांग्रेस की दो धारा
सोमनाथ पुनर्निर्माण को लेकर कांग्रेस के दो खेमों में काफी टकराव देखने को मिला। इस मामले में पीएम जवाहर लाल नेहरू एक किनारे पर थे तो गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद दूसरे किनारे पर थे। दोनों की खेमों की सोच पूरी तरह अलग थी। कांग्रेस नेता और नेहरू सरकार में मंत्री केएम मुंशी सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहते थे, उन्होंने इस मुद्दे को कई बार जोरशोर से उठाया। आजादी के कुछ महीनों बाद ही सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ गए और उन्होंने एक जनसमूह के सामने सोमनाथ पुनर्निर्माण की घोषणा की।
गांधी ने दी थी सहमति
बताया जाता है कि पटेल और मुंशी इस प्रस्ताव को लेकर महात्मा गांधी के पास गए और उनके सामने सोमनाथ पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा। गांधी ने इसके लिए अपनी सहमति व्यक्त की लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकारी धन का इस्तेमाल ना किया जाए, बल्कि इसका खर्च लोगों को उठाना चाहिए। इसके बाद सोमनाथ पुनर्निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया गया, जिसके अध्यक्ष मुंशी को बनाया गया। 1950 में पटेल की मृत्यु के बाद सोमनाथ पुनर्निर्माण की पूरी जिम्मेदारी केएम मुंशी के कंधों पर ही रही।
उद्घाटन में राष्ट्रपति को जाने से क्यों रोक रहे थे नेहरू?
सोमनाथ का पुनर्निर्माण पूरा होने के बाद जब इसके उद्घाटन की बारी आई तो असली विवाद शुरू हुआ। कहा जाता है कि पुनर्निर्माण को लेकर केएम मुंशी और नेहरू में काफी मतभेद थे। दोनों एक दूसरे से पूरी तरह असहमत थे और खुलकर विरोध भी दर्ज करा चुके थे। ऐसे हालात में जब उद्घाटन की बारी आई तो मुंशी यह प्रस्ताव लेकर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के पास गए। उन्होंने अपनी सहमति दे दी, लेकिन नेहरू को जब इसकी जानकारी हुई तो वह काफी नाराज हुए। उन्होंने तुरंत राष्ट्रपति को लेटर लिखकर रहा कि यदि वह इस कार्यक्रम में ना जाएं तो बेहतर होगा। लेकिन राष्ट्रपति ने नेहरू की इस सलाह को नहीं माना। इतिहासकार बताते हैं कि नेहरू का मानना था कि यह उनके ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ के विचारों से मेल नहीं खाता था, क्योंकि वह मानते थे कि सरकार और धर्म को अलग-अलग रखने की जरूरत है। सोमनाथ में राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि दुनिया देख ले कि विध्वंस से निर्माण की ताकत बड़ी होती है। उन्होंने इस दौरान यह भी कहा था कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारा सभी जगह जाते हैं।
दूसरे धर्मों के पवित्र स्थलों का भी दौरा कर चुके हैं मोदी
पीएम मोदी के अयोध्या जाने पर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यदि मोदी बतौर पीएम अयोध्या जाएंगे तो यह संविधान का उल्लंघन है, क्योंकि राष्ट्र का कोई धर्म नहीं है। हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी बतौर पीएम मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च भी जा चुके हैं।
धर्मनिरपेक्षता को लेकर अलग-अलग सोच
वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि असल में धर्मनिरपेक्षता क्या है, इसे समझने की जरूरत है। धर्मनिरपेक्षता की दो परिभाषा हो सकती है, या तो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार या राजकाज में किसी धर्म का ख्याल ही ना किया जाए। आजाद भारत में इनमें से किसी भी परिभाषा का ईमानदारी से पालन नहीं किया गया। नेहरू धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा का पालन करते थे, लेकिन वह कई बार इसके प्रति ईमानदार नजर नहीं आते हैं। कांग्रेस पार्टी अब तक इससे उबर नहीं पाई है। इंदिरा गांधी ने कई बार इसे बदलने की कोशिश की थी। मोदी से पहले हम कई प्रधानमंत्रियों को मंदिर-मस्जिद या गुरुद्वारा जाते हुए देख चुके हैं।