राजेश श्रीवास्तव
मै आया नहीं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है यह कहकर गुजरात से वाराणसी में आकर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद हासिल कर लिया। गंगा मां ने उन्हें प्रधानमंत्री बनवा दिया लेकिन उसी गंगा मां को स्वच्छ निर्मल बनाने के लिए कई लोगों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया। प्रधानमंत्री ने एक बार भी उनको सुनने की फुर्सत नहीं निकाली। अब एक और गंगा पुत्र शहादत के बेहद करीब है। वह भी 112 दिन से अनशनरत है। शायद जल्द ही देश एक और गंगा पुत्र के गंगा में समाने की खबर मिलने का इंतजार कर रहा है। गंगा मां के लिए स्वामी सानंद अकेले नहीं हैं बल्कि अनेक लोगों ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। आइये एक नजर पहले उन पर डाल लेते हैं जो अब इस मुहिम के चलते दुनिया में नहीं हैं। ऐसा नहीं कि स्वामी सानंद पहली बार अनशन कर रहे थे। इससे पहले मनमोहन सिह सरकार में भी उन्होंने बनारस में गंगा के लिए अनशन किया था। तब हम पत्रकारों ने उनकी बात को खूब ध्यान से सुना और उनके अनशन के नफ़े-नुकसान जनता के सामने रखे। तबकी सरकार ने उनकी सारी मांगें मान तो नहीं लीं, लेकिन कुछ मांगें तो मानी ही थीं। कम से कम उनकी ठीक-ठाक मनुहार तो की ही थी और उन्होंने अनशन खत्म कर दिया था। लेकिन इस बार उनकी आवाज भारी बहुमत के तले दब कर रह गयी। और सरिता प्रवाह ने उनके संबंध में तीन बार खबर प्रकाशित की लेकिन वह भी नक्कारखाने में तूती की तरह साबित हुई। इस बार उनका अनशन दिल्ली के सत्ता और मीडिया के गलियारों से दूर रहा। लेकिन अब जब वह चले ही गए हैं, तो हम पलटकर फिर सोचें कि वह बूढ़ा बाबा आखिर किस बात के लिए अनशन कर रहा था। वह यही तो कह रहे थे कि गंगा की धारा अविरल होनी चाहिए।
गंगा के लिए विशेष ऐक्ट बनाने की मांग कर रहे जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) ने सरकार को 9 अक्टूबर तक का समय दिया था। 87 साल के जीडी अग्रवाल ने 9 अक्टूबर तक मांग न पूरी होने के बाद 1० अक्टूबर से जल भी त्याग दिया था। बुधवार को प्रशासन ने उन्हें एम्स में भर्ती कराया था, जिसके बाद उनका निधन हो गया। डॉक्टरों ने मौत की वजह कमजोरी के कारण हुआ हार्ट अटैक बताया । केवल वही नहीं, गंगा की खातिर 114 दिन तक अनशन करते हुए इससे पहले स्वामी निगमानंद की भी मौत हुई थी। गंगा में खनन पर रोक लगाने की मांग को लेकर अनशन पर गए निगमानंद सरस्वती का 13 जून 2०11 को देहरादून स्थित जौलीग्रांट अस्पताल में निधन हो गया था। हालांकि उनकी मौत को हत्या करार देते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्बारा जांच भी की गई थी, लेकिन गंगा के लिए जान देने वाले निगमानंद की मृत्यु से अब तक पर्दा नहीं उठ सका है। इसके अलावा हरिद्बार के पास स्थित कनखल में 1998 में निगमानंद के साथ स्वामी गोकुलानंद ने भी क्रशर व खनन माफिया के खिलाफ अनशन शुरू किया था। अलग-अलग समय पर अनशन करने के बाद 2०11 में निगमानंद की मृत्यु हो गई तो स्वामी गोकुलानंद ने मांग आगे बढ़ाते हुए अनशन किया। वर्ष 2०13 में वह एकांतवास के लिए गए थे, जिसके बाद नैनीताल के बामनी में उनका शव मिला था। आरोप लगा था कि उन्हें जहर दिया गया था। खास बात यह है कि गंगा नदी के लिए बलिदान देने वाले ये तीनों संत ही संस्था मातृसदन से जुड़े हैं। तीसरे संत के बलिदान के साथ यह संस्था गंगा के लिए जान देने वालों की पहचान बन गई है। 1998 में कनखल के जगजीतपुर में इसकी स्थापना के बाद से ही गंगा नदी की स्वच्छता व बेहतर स्थिति के लिए आवाज उठी थी। संस्था के परमाध्यक्ष शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि मातृसदन गंगा के लिए हर तरह का बलिदान दे सकता है।
अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्ग मोदी ही नहीं, बल्कि पूर्व की भी सरकारों ने गंगा के नाम पर अच्छा खासा बजट खर्च किया लेकिन पापियों के पाप धोने वाली गंगा आज आचमन के योग्य भी नहीं रह गयी है। वैज्ञानिक बताते हैं कि गंगा का पानी पीने योग्य भी नहीं रह गया है। यह बात दूसरी है कि गंगा का पीएम मोदी ने जितना सियासी उपयोग किया उतना किसी ने नहीं किया। उनकी मंत्री उमा भारती ने भी गंगा के लिए बहुत बातें कीं लेकिन उनको संबंधित विभाग से ही हटा दिया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2०14 में वादा किया था कि 2०19 तक गंगा साफ कर दी जाएगी। हालांकि कई सारी रिपोर्ट्स बताती हैं कि गंगा की सफाई के लिए कोई खास प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। एक संसदीय समिति, जिसने गंगा सफाई के लिए सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन किया था, ने बताया था कि गंगा सफाई के लिए सरकार द्बारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मौजूदा स्थिति ये बताती है कि सीवर परियोजनाओं से संबंधित कार्यक्रमों को राज्य द्बारा सही तरीके से लागू नहीं किया गया और ये सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया दर्शाता है। सीवर परियोजना सीवेज ट्रीटमेंट और जल निकायों में सीवेज के डंपिग के मुद्दों का हल करने के लिए था। संसदीय समिति के अलवा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी गंगा सफाई को लेकर सरकार की कोशिश को अपर्याप्त बताया था।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ समझौता करने के साढ़े छह साल बाद भी स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) की लंबी अवधि वाली कार्य योजनाओं को पूरा नहीं किया जा सकता है। इसी वजह से राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी अधिसूचना के आठ वर्षों से अधिक के अंतराल के बाद भी स्वच्छ गंगा के राष्ट्रीय मिशन में नदी बेसिन प्रबंधन योजना नहीं है।
हमें याद रखना चाहिए कि जब नदी मरती है तो कोई नहीं बचता। आखिरकार हड़प्पा सभ्यता वहां बहने वाली सरस्वती (या आप उसका जो नाम चाहें वह रख लें) नदी के सूखने से ही खत्म हुई थी। हमारे कई साम्राज्यों की राजधानियां तो इसलिए वीरान हो गईं कि नदियों ने अपनी धारा बदल ली थी। वे सभ्यताएं भी इन त्रासदियों से इसलिए गुजरीं क्योंकि वे नदी से बहुत ज्यादा की मांग करने लगी थीं और नदी की ओर से दी गईं चेतावनियों के बावजूद खुद को बदलने को राजी नहीं थीं। गंगा भी हमें वाîनग कॉल दे रही है। स्वामी जी अपने ऋत की प्रेरणा से उसे सुन पा रहे थे, हम अपने तर्क आधारित सत्य की जिद में उसे अनुसना कर रहे हैं। गंगा अपने संकट के सबसे गहरे काल में पहुंच चुकी है। गंगा सागर से लेकर गढ़मुक्तेश्वर तक उसके तटीय इलाके में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। इससे आसपास के इलाकों का भूजल पीने लायक नहीं बचा है। यह बड़े पैमाने पर बीमारियों की वजह बन रहा है। हमारी सबसे पवित्र नदी के आसपास बीमारियों और मौत का डेरा होता जा रहा है।
राजीव गांधी के जमाने से नरेंद्र मोदी के जमाने तक सब अपनी इस जिद पर कायम हैं। लेकिन इस जिद का कोई नतीजा निकल नहीं रहा है। क्योंकि गंगा सिर्फ इंजीनियरिग का नहीं, जिदगी का मुद्दा है। उसका अपना इकोसिस्टम है और वह अपने आपमें पूरी कायनात है। अब जब देश में प्लानिग कमीशन खत्म हो चुका है और नीति आयोग बन गया है। तो नीति आयोग को नई नीति भी बनानी चाहिए। उसे यह भी याद रखना चाहिए कि हम पांच हजार साल पुरानी सभ्यता हैं, तो अब हमारी नीति कम से कम कुछ सौ साल की तो होनी चाहिए। इस नीति में आत्मनिर्भर गांव न सही, आत्मनिर्भर शहर तो बनाए जाएं।
इस नीति में तय हो कि हमें अपनी नदियों, जमीन, पहाड़ और हवा का कैसे संरक्षण हो। मोटे तौर पर कहें तो इस समय सारे पंच महाभूत क्षित, जल, पावक, गगन और समीर संकट में हैं। स्वामी जी तो इनमें से सिर्फ एक, यानी जल यानी गंगा को बचाने में शहीद हो गए। आगे चलकर हम देखेंगे कि इस देश में बाकी पंच महाभूत को बचाने के भी आंदोलन होंगे। जो लोग ये आंदोलन करेंगे, वे हमारे दुश्मन नहीं, हमारे सबसे बड़े हितैषी होंगे।