लोकेश कौशिक
युद्ध की जब भी चर्चा होती है, हमारे किस्से भारतीय आर्मी से आ जुड़ते है, लेकिन आज एयर फोर्स डे पर मैं आपको सुनाता हूँ भारतीय वायु सेना के एक मात्र परमवीर चक्र विजेता “निर्मलजीत सिंह शेखों” की कहानी।
14 दिसम्बर 1971 का दिन
श्रीनगर की जमा देने वाली ठंड में सुबह के तकरीबन 5 बजे “जी मैन” कहलाने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट बलधीर सिंह घुमान और उनके साथी “ब्रदर” के सम्बोधन से मशहूर 26 वर्षीय फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह शेखों अपने छोटे से एयर क्रू रूम में बैठे हुए थे। अमूमन पायलट ऐसे समय मे अपने कॉकपिट में होते है मगर भयानक ठंड में हर 3 घन्टे के बाद पायलेट को आराम दे दिया जाता था। मगर शेखों और घुमान ने अभी अपने विमान नही संभाले थे।
दोनो के नैट्स खुले में ही उनसे थोड़ी दूर मगर छिपा कर खड़े किए गए थे। कोहरा होने की वजह से दोनो को रिलैक्स टाइम 2 मिनट से बढ़ाकर 5 मिनट दिया गया है।
नेट्स फाइटर
ये पुराने और छोटे विमान थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध मे इस्तेमाल किये गए थे। चूंकि भारतीय वायुसेना अभी तक जम्मू कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लगाए गई पाबंदी पर अमल कर रहे थे इसलिए 18 स्क्वाड्रन जो अम्बाला में थी को युद्ध की तनातनी के बीच श्रीनगर में तैनात कर रखा था। 1965 की लड़ाई में इन नैट्स की जबरदस्त मारक क्षमता देखते हुए इन्हें “सेबर स्लेयर” नाम दिया गया क्योंकि इन्होंने 7 पाकिस्तानी सेबर जेट्स को मार गिराया था।
अवन्तिपुर एयर बेस
असल मे उस समय श्रीनगर एयर बेस में एयर डिफेंस राडार नही था और दृश्यता भी कम थी इसलिए दुश्मन के जहाजों को तब तक नही देखा जा सकता था जब तक वे बहुत नजदीक नही आ जाये। इस समस्या से बचने के लिए पश्चिम में पहाड़ो की चोटियों पर बहुत सी चौकियां बना दी गई थी । जिनपर स्थानीय रेजिमेंट का एक एक सिपाही तैनात था, जिसके पास रेडियो सेट थे और दुश्मन के हवाई जहाज देखते ही रिपोर्ट करना था।
सुबह सुबह पीर पंजाल की चोटियों को पार करते हुए 10हजार फीट की ऊंचाई से पाकिस्तान की 26 स्क्वाड्रन के 4-2 फॉर्मेशन में एफ़86 सेबर ने पेशावर एयर बेस से उड़ान भर के भारतीय सीमा में एंट्री मारी। अवन्तिपुर के ऊपर से उड़ते हुए उन्हें देख लिया गया और तुरन्त खतरे की घण्टी बजी।
श्रीनगर बेस
“जी मैन” और “ब्रदर” दोनो दौड़ते हुए अपने अपने जहाज के कॉकपिट में आये। ये दोनों पायलेट एयर ट्रेफिक कन्ट्रोल के सिग्नल का इंतजार कर ही रहे थे कि अचानक सेबर जेट इनके सर पर आ गए। घुमान ने और इंतजार न करते हुए उड़ान भरी और उन्हें उड़ता देख शेखों ने भी बिना सिग्नल के उड़ान भरी।
जैसे ही शेखों ने जॉयस्टिक खींचा पाकिस्तानी सेबर ने श्रीनगर एयर बेस पर भारी बमबारी कर दी। नीचे धुंए और आग का गुब्बार था। कुहासे की वजह से घुमान ओर शेखों ने एक दूसरे को फिर नही देखा ना उनका सम्पर्क हो पाया।
उड़ान के फौरन बाद शेखों ने खुद को दो जहाजों के पीछे लगा दिया जो बमबारी करने के बाद वापस लौट रहे थे। शेखों की आवाज रेडियो पर रुक रुक कर आ रही थी,” मैं दो सेबर जेट्स के पीछे हूँ, मैं इन हरामजादो को भागने नही दूँगा।”
दुश्मन को जैसे ही भनक मिली कि उनके पीछे नैट्स है उन्होंने बाई तरफ एक तीखा मोड़ काटा, पर जोश से भरे शेखों ने भी अपने विमान को उनके पीछे लहरा दिया। सेबर नम्बर 3 और 4 भी बमबारी के बाद वापस लौटे और नम्बर 3 भी सेबर नम्बर 1 और 2 कि पीछे हो लिया, जबकि सेबर नम्बर 4 कुहासे की वजह से बच गया और पाकिस्तान लौट गया।
शेखों ने खुद को सेबर नम्बर 2 के पीछे लगाए रखा और अपनी 30 mm गन से उस पर गोलियां बरसानी शुरू की सेबर में अचानक आग लगी और धमाके के साथ वो कटे पंख नीचे कहीं गिर गया।
अब शेखों ने सेबर नम्बर 1 के पीछे खुद को लगा दिया मगर उनके पीछे सेबर नम्बर 3 पड़ा था। सारा आकाश इस अद्भुत कारनामे से गुंजा हुआ था। पाकिस्तानी सेबर नम्बर 3 ने नैट्स पर गोलियां बरसानी शुरू की। हल्के नैट्स ने हवा में कलाबाजियां खानी शूरु की और सेबर नम्बर 3 से बचते रहे। रेडियो पर शेखों की आवाज गूंजी,”मैं एक दम आनन्द के भंवर में दो सेबर के साथ हूँ, एक जहाज के मैं पीछे हूँ पर दूसरा मेरे पीछे से गोलियां बरसा रहा है।”
तीसरे सेबर को शेखों ने छका दिया और पाकिस्तानीयो को रेडियो पर पायलेट की आवाज सुनकर झटका लगा “थ्री इज विंचेस्टर”, यानी उसके 1800 राउंड्स खत्म हो गए थे।
जब गोलियां खत्म हुई तो शेखों ने राहत की सांस ली और खुद को लड़ाई से बाहर लाकर अपने बाहरी फ्यूल टैंक को गिरा दिया। अब शेखों का नेट पहले से भी ज्यादा हल्का और तेज हो गया था। वे दुगने जोश के साथ सेबर नम्बर 1 पर टूट पड़े। सेबर ने भागने की कोशिश की लेकिन हल्के विमान से शेखों तेज कट लगा रहे थे जब वो रेंज में आया तो शेखों ने अपनी 30 mm गन से उसे निशाना बना लिया।
पाकिस्तानी सेबर ने मदद की गुहार लगाई और 4-2 फॉर्मेशन में से जो 2 जहाज ऊंचाई पर थे वे अचानक कम हाइट पर आए। शेखों ने इन दोनों जहाजों को देख लिया था वे जान गए थे कि अब वे फंस चुके है। पीछे वाले सेबर ने अंधाधुंध फायरिंग शूरु कर दी नेट में आग लग गई थी।
“मुझे लगता है कि मेरा प्लेन दुश्मन का निशाना बना चुका है। घुमान आओ और इनकी खबर लो।” ये शेखों का आखिरी सन्देश था।
आग और धुंए में लिपटे नैट ने खुद को सम्भालने की खूब कोशिश की पर वो लगातार गिरते जा रहा था। आखिरकार वो सीधा बडगाम की घाटी में आ गिरा। शेखों ने पैराशूट के जरिये खुद को बचाने की कोशिश की पर कम ऊंचाई होने की वजह से पैराशूट खुल नही पाया।
जब जहाज को ढूंढा गया तो उसपर गोलियों के 37 निशान थे। एकेले ही 6 सेबर विमानों से लड़ने वाले फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत शेखों को मरणोपरांत अद्भुत युद्ध कौशल व वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वे भारतीय वायुसेना की तरफ से इस सर्वोच्च सम्मान को पाने वाले इकलौते जवान है।
17 जुलाई 1945 को लुधियाना में जन्मे निर्मलजीत सिंह वांरट ऑफिसर त्रिलोक सिंह शेखों के पुत्र थे। 6 फ़ीट से भी लम्बे कद वाले शेखों बेहद विनम्र थे।
भारतीय वायु सेना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!