राजेश श्रीवास्तव
अगर आपसे पूछा जाए कि पूरे देश में आपको कौन से मुख्यमंत्री का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में सुनने को मिलता है तो निश्चित रूप से आपकी जुबां पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही नाम आएगा। ऐसा नहीं कि वो भारतीय जनता पार्टी के हैं इसलिए वह चर्चित हैं क्योंकि भाजपा या राजग के कोटे से भी कई मुख्यमंत्री हैं। लेकिन उनमें से कई ऐसे हैं जिनके नाम सप्ताह-सप्ताह तक अखबारों में नहीं छपते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ ऐसा नाम है जो कमोबेश हर रोज दिल्ली के अखबारों की पहली पन्नों की सुर्खियों में रहते हैं। यह जलवा बिहार जैसे दूसरे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक को हासिल नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मात्र तीन साल के अपने कार्यकाल में यह साबित कर दिया कि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं। उनके सामने चुनौतियां बहुत आयीं लेकिन उन्होंने हर चुनौती को चुटकियों में हल कर डाला। चुनौती आना बड़ी बात नहीं बड़ी बात उसका हल करने में है। उत्तर प्रदेश जैसा सबसे बड़ा राज्य, यहां चुनौतियां तो पल-पल मिलेंगी ही। यहां सपा-बसपा जैसे दल हैं तो मायावती व अखिलेश यादव जैसे क्ष्ोत्रीय क्षत्रप हैं। तो दूसरे सबसे बड़े सियासी दल कांग्रेस की सारी ताकत उत्तर प्रदेश पर ही लगी रहती है तो फिर यहां के मुख्यमंत्री को चुनौती कैसे नहीं मिलेगी। लेकिन मुख्यमंत्री ने हर चुनौती को बड़े ही चेतावनी वाले लहजे में पार कर लिया।
यहीं नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी की नजीर देनी पड़ी है। इसी कोरोना काल में एक अजीब वाकया होता है जो मुख्यमंत्री की छवि को फलक तक पहुंचा देेता है। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुई वैश्विक महामारी से जंग को लेकर सरकार के आला अफसरों की मीटिग चल रही होती है – और तभी दिल्ली से एक बुरी खबर आती है। भरी मीटिग में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मालुम होता है कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। जो शख्स हर वक्त आत्मविश्वास से भरपूर और कड़क मिजाज वाला नजर आता है – आंसू नहीं रोक पाता। आंसू छलक जाते हैं। वो संन्यासी जरूर है, लेकिन हाड़-मांस से बना इंसान ही है। घर बहुत पहले ही छूट चुका है – लेकिन पिता तो पिता ही होता है – आंसू कैसे रुकेंगे। वो पिता जिसने पाल पोस कर गुरु को सौंप दिया। कलेजे के टुकड़े पर सारा हक किसी और को दे डाला। गुरु तो पहले ही चला जाता है अपनी गद्दी सौंप कर – अब तो वो पिता भी दुनिया को अलविदा कह देता है। योगी अपने पिता की मौत पर केवल कुछ मिनट ही बिचलित होते हैं। काम पहले है। दुनियादारी बाद में। वो संन्यासी बड़ा ही भावुक एक पत्र लिखता है। क्षमा भाव के साथ बाद में आने के वादे के साथ कहता है – अंत्येष्टि में नहीं बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद आ पाऊंगा। जिम्मेदारियों ने जकड़ रखा है। खुद ही मिसाल भी पेश करनी है ताकि दूसरे भी सबक ले सकें। यह छोटी मिसाल नहीं है, अगर आप ढूंढ़ेंगे तो भारतीय राजनीति में कमोबेश ऐसा उदाहरण आज तक किसी ने नहीं रखा। और न ही कोई ऐसा हो पायेगा। क्योंकि यह बड़े से बड़ा कठोर हृदय रखने वाले के लिए भी आसान नहीं है। देश में संपूर्ण लॉकडाउन लागू होते ही अचानक मालूम होता है कि यूपी के लोग दिल्ली में सड़कों पर आ गये हैं-रातों रात बसों का इंतजाम करना पड़ता है। सबको दिल्ली बॉर्डर से लाकर क्वारंटीन करना और फिर उनके घर भेजना-आसान है क्या? तभी तो कट्टर विरोधी भी लोहा मानने लगे हैं। लोग आज कहने को मजबूर हैं कि अगर देश में मोदी हैं तो उत्तर प्रदेश में योगी हैं। लोग तो अब योगी के भीतर देश का प्रधानमंत्री देख रहे हैं। देश भर में जब अयोध्या फैसले को लेकर निगाहें उत्तर प्रदेश पर लगी थीं तब हिंदुओं के पक्ष में अदालत का फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश में इस तरह कानून-व्यवस्था बनी कि सब कुछ खुला रहा लेकिन उत्तर प्रदेश में एक भी छिटपुट वारदात तक नहीं हुई जिससे माहौल खराब होता। यही हाल तब हुआ जब उत्तर प्रदेश को नागरिकता संशोशन कानून और एनआरसी की हिंसा में झुलसाने का प्रयास हुआ लेकिन मुख्यमंत्री ने अपनी कट्टर छवि के चलते ऐसी मिसाल पेश की कि दंगाईयों के रातों-रात पोस्टर चौराहों पर लग गये। धरपकड़ हुई । सब कुछ शांत। उत्तर प्रदेश में सीएए को आंदोलन बनाने का प्रयास हुआ लेकिन मुट्ठी भर लोग मात्र घंटाघर पर ही सिमट गये। अखिलेश की बेटी तक को धरना स्थल पर जाना पड़ा लेकिन बुझी आग को वह भी नहीं सुलगा पायीं। यह आदित्यनाथ की स्टाईल ही है कि उन्होंने आंदोलन को समाप्त कर दिया। नि:संदेह योगी सरकार के तीन साल का काम सपा और बसपा के 15 साल के कार्यकाल पर भारी पड़ रहा है। जो काम सपा बसपा की सरकारें 15 साल में नहीं कर पायीं, वह कार्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महज तीन साल में कर दिखाया है। योगी ने जो तय किया वह किया, जो ठान लिया उसे समय पर पूरा कर दिखाया। कड़क मिजाजी उनके कार्यों में भी बखूबी देखने को मिल रही है। कठोर परिश्रम और त्वरित निर्णय के अलावा शुचिता समन्वय योगी आदित्यनाथ की पहचान है। मुख्यमंत्री बनते ही अवैध बूचड़खाने बंद कराये। बड़ा बजट आवंटन कर प्रदेशभर में गौशालाओं का निर्माण कराया। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देते हुए अयोध्या और काशी की तस्वीर बदलने का काम किया। अपराधियों को ठिकाने लगाने का काम किया। बड़ी संख्या में इन्काउन्टर किये गये। बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य सुरक्षा में प्रदेश को अव्वल बनाया। योगी ने सबके प्रति समत्व भाव रखते हुए सरकारी योजनाओं को बिना भेदभाव के हर वर्ग तक पहुंचाया। जबकि पूर्ववतीã सरकारों में जाति मत मजहब के आधार पर काम होता था। यही कारण है कि देश में कहीं भी चुनाव हो मोदी अमित शाह के बाद सर्वाधिक मांग योगी आदित्यनाथ की ही रहती है। अब जब बिहार में चुनाव होने की मुनादी हो गयी है तब भाजपा के स्टार प्रचारकों में उनका नाम शुमार है और उनकी अधिक से अधिक सभाएं लगायी गयी हैं। नेतृत्व को पता है कि हिंदू वोट बैंक को सहेजने में योगी की भूमिका कम नहीं होती है। उन्होंने विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नकेल कसने का काम किया। जबकि पूर्ववतीã सरकारों में कई नेताओं व नौकरशाहों ने भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा पार करते हुए संपत्ति अर्जित की। जिन अतीक अहमद, खान मोहम्मद और मुख्तार अंसारी का प्रदेश क्या पूरे देश में तूती बोलती थी और बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी मूक दर्शक बने खड़े रहते थ्ो। योगी ने उनके मकानों को मात्र कुछ सिपाही व हवलदार लगाकर जमींदोज कर दिया।