बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी मुखिया का पद छोड़ दिया है। बीते दिन रविवार (27 नवंबर 2020) को नीतीश कुमार के सहयोगी आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का नया अध्यक्ष चुना गया। नीतीश कुमार ने ही आरसीपी सिंह के नाम का सुझाव दिया था जिस पर कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में सहमति जताई थी। 2019 में बिहार के मुख्यमंत्री को जदयू का अध्यक्ष चुना गया था और उनका कार्यकाल 3 साल का था। उन्होंने इस्तीफ़ा देते हुए इस पद को आरसीपी सिंह के हवाले कर दिया जो कि राज्यसभा में जदयू का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पार्टी मुखिया का पद छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी बिहार का मुख्यमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं थी। वह सिर्फ इतना चाहते थे कि जनादेश का सम्मान हो भले मुख्यमंत्री कोई भी क्यों न बने।
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान नीतीश कुमार ने कहा था, “लोग कह रहे हैं कि भाजपा को मुख्यमंत्री पद चाहिए। मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है, मैं इन पदों से नहीं बंधा हुआ हूँ। बहुत ज़्यादा दबाव होने की वजह से मुझे मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा, मुझे वाकई इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि इस कुर्सी पर कौन बैठने वाला है। जैसे ही चुनाव के नतीजे आए मैंने गठबंधन के सामने अपनी इच्छा जाहिर कर दी लेकिन दबाव इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि मुझे ज़िम्मेदारी संभालनी ही पड़ी।”
नीतीश कुमार ने 2016 के बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा को हाशिये पर रख कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया था। इतना सब कुछ सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर लें। लेकिन जब उनके इस गठबंधन का विरोध शुरू हुआ तब उन्होंने राजद को नकार कर भाजपा का दामन थाम लिया और फिर से मुख्यमंत्री बन गए।
इस बात की अटकलें चरम पर हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा नहीं रखने वाला बयान इसलिए दिया क्योंकि उनके ही विधायक पार्टी की लुटिया डुबाने में लग गए हैं।
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में जदयू के 6 विधायक पार्टी से इस्तीफ़ा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे लिहाज़ा वहाँ राजनीतिक अस्थिरता पैदा होना स्वाभाविक था। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस बात पर रोष जाहिर किया है और कहा है कि इससे बिहार की गठबंधन सरकार प्रभावित हो सकती है।