राजेश श्रीवास्तव
इन दिनों पूरे देश में हर तरफ नववर्ष का जश्न मनाया जा रहा है। लोग एक-दूसरे को बधाई देने और तोहफे देने के साथ ही धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, सैर-सपाटा, पिकनिक, दावतें करके इस नववर्ष का आनंद ले रहे हैं। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि हम अपने देश में जिस नववर्ष को इतनी शिद्दत से मना रहे हैं। वह भारत का नववर्ष है ही नहीं, हम जिसे नववर्ष के रूप में मनाते हैं वह दरअसल ईसाई धर्म का नया साल है। इसकी शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 को हुई थी। जिसकी तारीख ग्रिगोरियन कैलेंडर के मुताबिक चलती है। आप सब भली भांति जानते हैं कि दुनिया के वह देश जो विकसित और समृद्धि में सबसे आगे माने जाते हैं वह सब अपने-अपने देश का नववर्ष बेहद धूमधाम से मनाते हैं। इस श्रेणी में जर्मनी, जापान, इजराइल, चीन, इक्यूडोर, इथोपिया, हंगरी, रशिया, सऊदी अरब, स्कॉटलैंड, थाइलैंड और नीदरलंैड शुमार है। इन सभी देशों में एक जनवरी को नववर्ष नहीं मनाया जाता। नए साल का उत्सव लगभग 4००० साल से भी पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था, जो कि वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव तभी मनाया जाता था। रोम के बादशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, तब विश्व में पहली बार एक जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां अलग-अलग लोग रहते हैं इसलिए संभव नहीं। क्योंकि यहां हिंदू धर्म को मानने वाले चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर कहते हैं। फसल पकने का प्रारंभ, किसानों की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। भारतीय कैलेंडर की गणना, सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारत में कैलेंडर अथवा पंचाग का चलन शुरू हुआ। इसके अलावा 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में 7 दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है।
जबकि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगाडी- तेलगू न्यू ईयर मनाया जाता है। तेलगू न्यू ईयर हिन्दी के चैत्र महीने और अंग्रेजी के मार्च-अप्रैल के बीच में पड़ता है। मराठी और कोंकनी लोग चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा के रूप में नववर्ष मनाते हैं तो पंजाबी लोग 13 या 14 अप्रैल को बैसाखी के रूप में नववर्ष मनाते हैं। तमिल माह पहले दिन यानी अप्रैल के मध्य में तमिल न्यू ईयर मनाया जाता है। असम का सबसे खास त्योहार बोहाग बिहू- असामी न्यू ईयर के रूप में मनाया जाता है। बंगाली नववर्ष अप्रैल महीने के मध्य में मनाया जाता है। बंगाल में इसे पोहला बोईशाख कहा जाता है। यह बैशाख महीने का पहला दिन होता है। गुजराती नववर्ष को बेस्तु वर्ष कहा जाता है। यह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में तेज बारिश को रोकने के लिए गोर्वधन पूजा की थी। गोर्वधन पूजा के दिन से गुजराती नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। विषु केरल में नववर्ष का दिन है। यह मलयालम महीने मेदम की पहली तिथि को मनाया जाता है। कश्मीर में नवरेह नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह चैत्र नवरात्र के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामिक वर्ष मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होता है। हिजरी एक चंद्र कैलेंडर है। इस्लामिक धार्मिक त्योहार को मनाने के लिए हिजरी कैलेंडर का ही इस्तेमाल किया जाता है।
जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो एक उम्मीद जगी थी कि शायद अब इस दिशा में भी कुछ काम होगा। हिंदुओं और मंदिरों की बात करने वाली सरकार शायद सरकारी दफ्तरों में ही हिंदू कैलेंडर लागू करा सकेगी। जिसे आमतौर पर ‘पंचांग’ कहा जाता है। पूर्व की उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के रामप्रकाश गुप्ता का कार्यकाल आप याद करिये, बहुत छोटा कार्यकाल था उनका। लेकिन उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग ने सरकारी खर्चे पर पंचांग का प्रकाशन किया था। लेकिन यह साहस उसके बाद कोई नहीं दिखा पाया। निश्चित रूप से अगर इस सरकार में इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया तो फिर दोबारा भारतीय नववर्ष मनाये जाने की उम्मीद धूमिल ही पड़ती जा रही है। हम जिस तरह से पश्चिम की नकल कर रहे हैं उससे इसके प्रयास भी मंद पड़ते जा रहे हैं। दुनियाभर भर में सभी कैलेंडर की काल गड़ना दो पद्यतियों से होती है एक सौर चक्र और दूसरी चंद्र चक्र। भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर शक संवत है, जिसकी रचना 78ई वर्ष पूर्व हुआ था अत: यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 78 वर्ष अधिक है। इसी प्रकार ग्रेगोरियन कैलेंडर से विक्रम संवत की 57 वर्ष पूर्ण रचना मानी जाती है जब विक्रमादित्य ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाये और उसके बाद इस कलेंडर को मान्यता दी इसी लिए इसे विक्रम संवत कहा जाता है। और यह कैलेंडर शक संवत से ज्यादा प्रचलित है जबकि शक संवत को राष्ट्रीय पंचांग घोषित किया गया है। ऐसे में अब सिर्फ सारे भारत के संस्कारों में विश्वास करने वाले लोग सरकार की ओर ही टकटकी लगाये देख रहे हैं कि आखिर हम कब तक दूसरे देशों का अनुकरण करते रहेंगे। आत्मनिर्भर बनता भारत अपने देश का सामान इस्तेमाल कैसे करे, जब उसे अपना नववर्ष मनाने तक को सरकारें नहीं प्रेरित करतीं। अब देखिये सरकार कब जागती है….