सर्वेश तिवारी श्रीमुख
फरवरी नोट्स दुखांत प्रेम कहानियों में से एक है। तरुणाई के बने रिश्ते को असामाजिक रिश्तों में बदल जाने का दुःख, किसी से जिंदगी भर स्नेह रखने, प्रेम करने का दुःख । नेह छोह , लगाव, मनुहार और प्रेम जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगे तो उसका त्याग करने का दुःख । यह अजीब बात हो सकती है पर यही तो किया समर ने अपनी आरती के साथ, इसलिए नही कि दुनिया उनके त्याग तथा प्यार की ऐसी पवित्रता के गीत गाएगी बल्कि इसलिए कि वे स्वार्थी नही थे उन्हें पता था कि उनका प्रेम किसी के दुःख का कारण है । समर और आरती के प्यार में अनिश्चितता भी इतनी कि उन दोनों को खुद नही मालूम कि अगले पल कहाँ किस स्थिति में होंगे और उनका प्यार इतने स्वाभाविक ढंग से इतना अपने आप होता गया कि किसी को एहसास नही कि वे एक ही सफर के हमसफर बन चुके हैं। दोनों का एक दूसरे के प्रति अधिकार इतना स्वाभाविक और पवित्र था जैसे मंदिर में किसी दिए की लौ या शरद पूर्णिमा की शीतलता या या मधुमासी मलय।
इस कहानी का ठिकाना दिल्ली और इलाहाबाद के आस पास है । इस कहानी के चार मुख्य किरदार हैं। समर , आरती , रश्मि और प्रकाश । फरवरी नोट्स की पूरी कहानी इन्हीं किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है। समर यानी इस प्रेम कहानी का नायक एक मध्यमवर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखता है जो दिल्ली में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है और नायिका दिल्ली के एक प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाती है। आरती समर को कॉलेज के दिनों से ही चाहती है किन्तु समर उसे पसंद करने के बावजूद उसे स्वीकार नही कर पाता है। बाद में दोनों की अलग अलग शादी हो जाती है किन्तु आरती समर को भूल नही पाती। बरसों बरस बाद वह समर को फेसबुक के माध्यम से ढूंढ लेती है और फिर वही एक सवाल करती है जो उसने समर से कॉलेज के दिन में किया था ‘ में आई फ्रेंडशिप विद यू’ इस बार समर आरती के प्रस्ताव को मना नही कर पाता पर उसके मन में लगातार इस बात को लेकर जद्दोजहद बनी रहती है। प्रेम को लेकर समर का द्वंद्व पूरे उपन्यास में इस कदर हावी है कि उसके व्यवहार में एक निश्चित अनिश्चतता सी दिखती है ।
डॉ. पवन विजय अपने उपन्यास में आरती और समर के संबंधों की गहराई को बताते हुए थोड़ा सेक्सुअल टच तो देते है, पर संबंधों की मर्यादा बनाने की पूरी कोशिश की है। वल्गैरिटी की जगह उसमे धूपबत्ती सी पवित्रता की खुशबू आती है, कथानक में सिहरन है, रोमांच व रोमांस है, पर उत्तेजना नहीं बल्कि समर्पण हैं एक जगह आरती समर से कहती है मैंने सही गलत अच्छा बुरा सब इस बात पर छोड़ दिया कि तुम मेरे लिए इन सब से ऊपर हो। और सुनो ! तुम मुझसे न मिलो, न प्यार करो, न बात करो, छुओ नही, देखो नही, फिर भी मेरी चाहत कम नही होगी। तुम्हारे लिए मेरा मुझ पर कोई वश नही । मैं अवश हूँ , और जो अवश होता है उससे कोई गलती नही होती।
चिट्ठियों के माध्यम से बातचीत करना वर्तमान इन्टरनेट के दौर में फरवरी नोट्स को एक ख़ास उपन्यास बनाता है। चिट्ठियों में भाषा लालित्य का सागर हिलोरें मार रहा है एक चिट्ठी का उल्लेख करना जरुरी है जो आरती ने समर को लिखी थी,
मेरे तुम,
जानते हो! मेरे स्कूल के बाहर एक होर्डिंग लगी है। उस पर एक कम्पनी सीमेंट का विज्ञापन है जिस पर किसी मौसम का असर ही नही होता। हर मौसम के असर को करे बेअसर। सर्दी गर्मी पानी धूप किसी का कोई असर नही। सोचती हूँ कि इस विज्ञापन को बनाने वाले ने ‘मधुबन तुम कत रहत हरे’ या ‘बिनु गुपाल बैरिन भये कुंजे’ गाते हुए गोपियों की व्यथा कथा से प्रेरणा ली होगी या उसकी प्रेमिका बड़ी कठोर हृदय की होगी जिस पर उसके मनुहार का कोई असर ही नही होता होगा तभी तो वह इस किस्म के विज्ञापन का सर्जन कर पाया।
बहरहाल ठंडी हवाओं में गर्मी के कणों के विस्तार से वातावरण में चहल पहल की वापसी हो रही। यह वसंत की चहल पहल है। यह फूलों से होकर दिलों तक होने वाला विस्तार है। मैं चाहती हूँ कि सीमेंट वाली दीवारें कच्ची दीवारों में तब्दील हो जाएँ जिस पर मौसम के ललछिमे, सिन्दूरी सीले दाग साफ़ साफ़ दिखें। बिना सीमेंट वाली दीवार जिस पर मधुमालती की बेलें लिपटी हों, उस पर बैठ कर कोई कोयल गा सके जिसकी हूक सुनकर नदी की कोई लहर गा उठे।
साथिया नही जाना कि जी न लगे।
मैं अपने कदम रोककर उस गान को जीवन भर सुनना चाहती हूँ।
ऐसे तमाम चिट्ठी पत्री, मौसम, दुःख सुख सामाजिक जीवन के अनेक पक्षों को समेटे यह उपन्यास बिछोह भरे अंत को प्राप्त होता है किन्तु इससे बेहतर समाप्ति और हो भी नही सकती थी। गुनाहों का देवता के बाद हिंदी साहित्य को एक और कालजयी प्रेम कहानी मिलने जा रही है इसमें कोई संदेह नही है।