अब सौरव गांगुली की करीबी MLA वैशाली डालमिया ने TMC की खोली पोल, लक्ष्मी रतन भी मंत्री पद से दे चुके हैं इस्तीफा

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले सौरव गांगुली की एक और करीबी व बल्ली विधानसभा से तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) विधायक वैशाली डालमिया ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। इससे पहले सौरव के खास लक्ष्मी रतन शुक्ला ने मंत्री पद से अपना इस्तीफा ममता सरकार को सौंपा था।

वैशाली डालमिया पूर्व क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर जगमोहन डालमिया के बेटी होने के साथ सौरव गांगुली की अच्छी फैमिली फ्रेंड भी हैं। ऐसे में उनकी नाराजगी को सौरव गांगुली से जोड़ कर देखा जा रहा है। हालाँकि, डालमिया का कहना है कि उन्हें तृणमूल कॉन्ग्रेस के शासन में राज्य की चिंता है। उन्होंने ने पार्टी के वर्क कल्चर पर सवाल उठाए हैं।

उन्होंने कहा कि पार्टी में कुछ लोग दूसरों को काम नहीं करने दे रहे। ऐसे लोग दीमक की तरह पार्टी को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं।उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों से अपने विधानसभा में हो रहे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज उठा रही हैं। उनकी मानें तो पार्टी के लोग ही एक-दूसरे को पिछले 3-4 साल से काम करने नहीं दे रहे हैं।

टीएमसी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में ममता सरकार के मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ने दुखी होकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अब उन्हें पार्टी के लोगों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये ऐसे लोग (TMC) हैं, जो दूसरी पार्टियों से ही नहीं, बल्कि अपनी पार्टी के अंदर ही लड़ते रहते हैं। इन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी कोई लगाव नहीं है।

वह कहती हैं कि उन्हें रतन शुक्ला के इस्तीफे के बाद बहुत बुरा लग रहा है। वह अच्छा काम कर रहे थे। वह पार्टी के कामकाज से नाराज नहीं हैं, लेकिन उनकी शिकायत है कि टीएमसी पार्टी के सदस्य ही काम के दौरान रोड़ा बनने का काम करते हैं।

तृणमूल कॉन्ग्रेस में ऐसे लोग हैं जिन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से कोई प्यार नहीं है, जो राज्य के लोगों से प्यार नहीं करते, वे सिर्फ खुद से प्यार करते हैं। वे दीमक हैं जो पार्टी को भीतर से खा रहे हैं। ये वे लोग हैं जो दूसरी पार्टियों से नहीं लड़ते बल्कि भीतर के लोगों से लड़ते हैं। उन्हें ममता बनर्जी से प्यार भी नहीं है।

क्या भाजपा में शामिल होंगी वैशाली?

वैशाली के बयान के बाद ये अटकलें लगाई गईं कि वह भाजपा में शामिल होने वालीं हैं। हालाँकि उन्होंने इस पर विराम लगाते हुए कहा कि फिलहाल उनकी भाजपा से जुड़ने की इच्छा नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं लोगों के लिए काम करना जारी रखूँगी। मुझे कई बार गैर-राजनीतिक कहा गया है। अब ऐसा ही होगा। मैं लोगों के साथ काम करना जारी रखूँगी, उनके साथ खड़ी रहूँगी। ”

दीदी बनाम दादा?

वैशाली की सौरव गांगुली से करीबियों के कारण भी उनके भाजपा में शामिल होने की बातें कहीं गई थी। हाल में लक्ष्मी रतन के पद से इस्तीफा देने पर भी यही अटकलें तेज हुई थीं। जिनके पीछे सबके बड़ा कारण सौरव गांगुली की भाजपा से करीबियाँ है।

गांगुली न केवल अमित शाह और उनके बेटे जय शाह के करीबी माने जाते हैं बल्कि हाल में उन्होंने राज्यपाल धनखड़ के साथ भी मुलाकात की थी। इसी प्रकार डोना गांगुली भी भाजपा महिला मोर्चा की दुर्गा पूजा में नृत्य प्रदर्शन करते देखी गई थीं। गांगुली की लोकप्रियता का ही नतीजा है कि आगामी विधानसभा लोग को दादा बनाम दीदी के नजरिए से देख रहे हैं।

वैशाली की भाँति लक्ष्मी रतन को भी अपने फैसले के बाद साफ करता पड़ा था कि चूँकि वह कुछ समय तक राजनीति से दूरी बनाना चाहते हैं इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है। उन्होंने किसी भी पार्टी में शामिल होने के कयासों को खारिज किया था। साथ ही कहा था कि अभी वह विधायक हैं और फिलहाल मंत्री पद से इस्तीफा देकर सिर्फ़ अपना ध्यान खेल पर लगाएँगे।