लखनऊ। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार ने कोटे के अंदर कोटा का फिर शिगूफा छोड़ दिया है. बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में गैर यादव ओबीसी समुदाय के वोट एक मुश्त बटोर कर सत्ता से 14 साल के वनवास को खत्म किया था.
योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अनिल राजभर की ओर से हाल ही में बलिया में दिए एक बयान को अहम माना जा रहा है. राजभर के मुताबिक सरकार जल्द ही कोटे के अंदर कोटा लागू करने जा रही है और उसके सभी विकल्पों पर विचार चल रहा है. यानी ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण को पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा, तीन भागों में बांट सकती है.
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री के इस बयान के बाद हालांकि कोई बड़ी सियासी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई लेकिन यह साफ हो गया कि अब यह मामला जल्द ही सूबे की राजनीति में एक बड़ा हथियार बनेगा. उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं.
ऐसे में हर अहम राजनीतिक दल की कोशिश पिछड़ी जातियों के वोटरों को लुभाने की है. लेकिन क्या पिछड़ों के आरक्षण को इस तरह बांटना आसान है और क्या जो पार्टियां दबंग और समृद्ध पिछड़ी जातियों की नुमाइंदगी करती हैं वो ‘कोटे के अंदर कोटा’ को आसानी से इसे मान जाएंगी.
बीजेपी ने ये मुद्दा ऐसे वक्त पर छेड़ा है, जब ज्यादातर दल इसके खिलाफ बोलकर या कोई आंदोलन छेड़कर, दूसरी पिछड़ी जातियों की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठा सकते. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर जब बीजेपी के साथ सत्ता में थे और योगी सरकार में मंत्री थे, तब इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया करते थे.
ओबीसी के आरक्षण में पिछड़ों का आरक्षण बांटने की अपनी मांग पर बीजेपी को धमकाते धमकाते वह मंत्रिमंडल से बाहर भी हो गए. लेकिन अब बीजेपी को ये वक्त मुफीद लग रहा है कि वो आरक्षण के भीतर आरक्षण के मामले को तूल दे. उसे लगता है कि कई पार्टियां और बड़े नेता अब इसके खिलाफ बोलने से कतराएंगे क्योंकि 45 चुनिंदा पिछड़ी जातियों को छोड़कर ज्यादातर जातियां चाहती हैं आरक्षण के भीतर आरक्षण का फार्मूला लागू हो, ताकि इसका फायदा उन जातियों तक भी पहुंच सके जिन्हें अब तक यह नहीं मिल पा रहा.
देखा जाए तो सियासी तौर पर बीजेपी भी इस मामले में दोधारी तलवार पर चल रही है. बीजेपी की पूरी सियासी रणनीति यादवों के अलावा दूसरी पिछड़ी जातियों पर है. पटेल, सोनार और जाट जैसी जातियों ने हाल फिलहाल के चुनावों में बीजेपी को जमकर वोट किया है. यह वह जातियां हैं जिन्हें सबसे ज्यादा नुकसान ‘कोटे में कोटा’ लागू होने से होगा.