‘सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो’: मुनव्वर राणा ने किसानों के नाम पर संसद गिराने और आगजनी के लिए उकसाया

लखनऊ। उर्दू शायर मुनव्वर राणा ने रविवार (जनवरी 10, 2021) को सोशल मीडिया पर अपने कविता के माध्यम से भीड़ को उकसाने का प्रयास किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लोगों से संसद भवन गिराने और गोदामों को जला देने का आह्वान किया। हालाँकि अब उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दिया है।

मुनव्वर राणा ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी, संसद को गिरा कर वहाँ कुछ खेत बना दो। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो। मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ, गर्दन को उड़ाओ, मुझे या जिंदा जला दो।”

इससे पहले राणा ने अपने बयान के जरिए पेरिस में शिक्षक का गला रेतने वाले आतंकी का बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि अगर उस लड़के की जगह वह होते तो भी यही करते। विवादित शायर मुनव्वर राणा के इस बयान को लेकर काफी बवाल हुआ था। बता दें कि पिछले दिनों पेरिस में शिक्षक सैमुअल पैटी ने अपनी कक्षा में छात्रों के सामने पैगंबर मोहम्मद का विवादित कैरिकेचर दिखा दिया था। इसके बाद एक कट्टरपंथी छात्र ने उन्हें दिनदहाड़े बेरहमी से मार डाला था।

अब कोई यह तर्क दे सकता है कि एक कवि के रूप में राणा उपमा या अलंकारों की बात कर सकते हैं। उनके कहने का मतलब वाकई में यह नहीं हो सकता कि गोदाम को आग लगा देना चाहिए, संसद को गिरा देना चाहिए। तो अब यह तर्क देने का कोई मतलब नहीं रहता है, क्योंकि उपमाओं के प्रयोग करने की क्रिएटिव लिबर्टी को पहले ही दरकिनार कर दिया गया है। 2013 में एक अन्य कवि और गीतकार जावेद अख्तर ने आजाद मैदान दंगों पर कविता लिखने के लिए एक महिला पुलिस अधिकारी को बर्खास्त करने की माँग की थी।

आजाद मैदान दंगा

11 अगस्त 2012 को, रजा अकादमी के नेतृत्व में मुस्लिम संगठनों ने असम और म्यांमार में मुसलमानों पर कथित अत्याचारों के विरोध में आजाद मैदान मैदान में हिंसा की थी। आजाद मैदान में मुस्लिम संगठनों द्वारा रखाइन दंगों और असम दंगों की निंदा करने के लिए विरोध-प्रदर्शन किया गया, जो बाद में दंगे में बदल गया।

असम और राखाइन दंगों की निंदा करने के लिए, रज़ा अकादमी ने विरोध रैली का आयोजन किया था। हालाँकि, एक कुख्यात समूह के पुलिसकर्मियों पर हमला करने के बाद विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए और 58 पुलिसकर्मियों सहित 63 लोग घायल हो गए।

दंगों के दौरान मौजूद पुलिस अधिकारी सुजाता पाटिल ने इस पर एक कविता लिखी थी। इसमें सुजाता ने उन चीजों का जिक्र किया था, जो उन्होंने वहाँ पर देखा था।


Article on Sujata Patil’s poem

जावेद अख्तर उनकी कविता से बेहद निराश हो गए और उन्होंने उनकी कविता को ‘सांप्रदायिक’ कहा।

इसके बाद सुजाता पाटिल को माफी माँगनी पड़ी, तब जाकर उनकी नौकरी बची। इस तरह सभी के लिए एक ही तरह का व्यवहार होना चाहिए। राणा को भी उनकी तथाकथित रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।