जिन्हें राकेश टिकैत के आंसू दिख रहे हैं उन्हें घायल 300 जवानों के आंसू क्यों नहीं दिख रहे? जवानों के परिवार वालों के आंसू नहीं दिख रहे?

नई दिल्ली। गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहा है तथाकथित किसान आंदोलन एकाएक जातिवाद के सिक्कों के नाम पर खनकने लगा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जाट बहुल गांवों में  यह बात फैलाई जा रही है कि सरकार दिल्ली में राकेश टिकैत को जान से मार देगी ऐसे में महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे को बचाने के लिए गाजीपुर बॉर्डर चलो और इस संदेश के फैलते ही कई जाट युवक भावनाओं में बहकर  टिकैत के समर्थन में निकल रहे हैं मगर हम यहां पर यह पूछना चाहते हैं कि जिन लोगों को राकेश टिकैत के आंसू दिख रहे हैं.. क्या उन्हें दिल्ली पुलिस के 300 से ज्यादा जवानों और उनके परिवारों का दर्द और आंसू क्यों नहीं दिखता…?

उनमें से कई तो जीवन भर चल-फिर भी नहीं पाएंगे।देश हित में क्या सही है, ये आपको तय करना है।देश में एक तबका ऐसा है जो आंसू बहने पर बड़ा भावुक हो जाता है, पर किसी का खून बहना उन्हें रोमांचित करता है ! गौरतलब है कि राकेश टिकैत के आदेश पर जिस भीड़ में बेदर्दी से दिल्ली पुलिस के जवानों की पिटाई की उनमें से कई जवान अभी तक ट्रॉमा सेंटर में भर्ती है और आने वाले दो-तीन साल तक वह जवान अपनी ड्यूटी को ज्वाइन भी नहीं कर पाएंगे। कई जवानों को पक्का प्लास्टर चढ़ा है , किसी को रोड चढ़ी है तो किसी की गर्दन पर तलवार और फरसे से घायल होने के जख्म बाकी है। ऐसे में अब हम देश से पूछना चाहते हैं कि जिन्हें राकेश टिकैत के आंसू दिख रहे हैं उन्हें इन जवानों की बुरी दशा क्यों नहीं दिख रही? उन्हें इन जवानों के परिवार वालों के आंसू क्यों नहीं दिख रहे।