कोरोना संकट से हांफता देश और सियासत में जुटी सरकारें

राजेश श्रीवास्तव

इन दिनों कोरोना का कहर पूरे देश में सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ा है, हजारों जानें उसमें समा गयी हैं लेकिन केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सियासत में पीछे नहीं हैं। पिछले एक महीने से कोरोना की दूसरी लहर ने देश में हाहाकार मचा रखा है। लेकिन मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी जन की नहीं सोचीं और पश्चिम बंगाल में पूरे देश को झोंक दिया। फिर कुंभ भी हुआ, उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव भी हुआ। पिछली बार जब कोरोना के चंद केस थ्ो तब प्रधानमंत्री ने देश में लॉक डाउन लगाया था, इसके चलते देश सुरक्षित रहा और कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई। लेकिन इस बार जैसे ही कोरोना खतरनाक हुआ और देश में लॉक डाउन की सुगबुगाहट हुई अनमोल अंबानी का एक वीड़ियो जारी हुआ जिसमें उसने लॉकडाउन को लेकर खासी खरी-खरी कही। उसके बाद सत्ताशीन सियासी दल ने इसकी संभावनाओं पर ही विराम लगा दिया। देश के कई शहरों में कोरोना का कहर बरपा है। हजारों परिवारों ने अपने लोगों को खोया है लेकिन सरकार सिर्फ बैठकें कर रही है। उत्तर प्रदेश के दस शहरों में कोरोना लोगों को लील रहा है। लखनऊ में हर 25वें घर में एक व्यक्ति की जान गयी है। हर जांच कराने वाला चौथा व्यक्ति कोरोना पाजिटिव है। लेकिन सरकार सिर्फ टीम-11 तक सीमित है। कई मंत्री, विधायक और भाजपा नेता भी पार्टी की नीतियों ने निगल लिये।
हम सब जानते हैं कि भीड़ से यह बीमारी और फैलती है। अमित शाह ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी ने लाखों मास्क वितरित किये हैं। परन्तु पश्चिम बंगाल की रैिलयों के वीडियो और चित्रों में कोई मास्क पहने नहीं दिखता। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का मखौल है। इसके साथ ही हमारे देश का सबसे बड़ा धार्मिक समागम कुम्भ उत्तराखंड में जोरशोर से चला। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिह रावत का मानना था कि मां गंगा देश को कोरोना से मुक्त कर देंगी। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। लाखों लोगों ने बिना मास्क और शरीर पर कम से कम कपड़ों के साथ नदी में डुबकियां लगाईं। दो शाही स्नान भी हुए। नतीजे में वहां कोरोना तेजी से फैलने लगा। अनेक साधुओं में इस रोग के लक्षण उभरने लगे। निर्वाणी अखाड़ा के प्रमुख कपिल देव दास (65) की कोरोना से मौत हो गयी। इसके बाद निरंजनी अखाड़े ने मेला छोड़ देने का निर्णय लिया। अखाड़े के प्रवक्ता ने कहा, ’’हरिद्बार में हमारे डेरे में अखाड़े के कई सदस्यों में कोविड-19 के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।’’
इसके बाद प्रधानमंत्री, जो पूरे देश और विशेषकर पश्चिमम बंगाल में रैलीयां करते घूम रहे थे, ने कुंभ को प्रतीकात्मक बनाने की अपील की। उन्होंने काफी देर कर दी। वे तब बोले जब कुंभ में भाग लेने वालों में से कई कोरोना से ग्रस्त हो चुके थे। अगले कुछ हफ़्तों में पता चलेगा कि चुनाव और कुंभ मेले के कारण कोरोना के फैलाव पर क्या प्रभाव पड़ा। इनके दुष्प्रभावों को कम करके बताने के प्रयास हो रहे हैं।
देश में जहां-जहां भाजपा नीत गठबंधन की सरकार नहीं हैं वहां पर लॉक डाउन लगाया गया है। चाहे महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड, राजस्थान और दिल्ली में कोरोना के केस कितने अधिक हों लेकिन वहां उत्तर प्रदेश जैसी संक्रमण गति नहीं हैं। वैसे भी लॉक डाउन विकल्प नहीं है लेकिन जब आप एक-एक सांस नहीं दे सकते हैं। लोगों सांसों के लिए तड़प रहे हैं तो कोरोना संक्रमण की चेन रोकने का विकल्प तो लॉक डाउन हो ही सकता है। उत्तर प्रदेश में लोग बिलख रहे हैं। आक्सीजन कंपनी को दोष दे रहे हैं। पर लोगों को समझना चाहिए कि हम अपना जनप्रतिनिधि क्यों चुनते हैं। हमें अपने विधायकों और सांसदों को फोन करना चाहिए और उनसे अपनी समस्या बतानी चाहिए। यह उनका एहसान नहीं हमारा अधिकार है कि जनप्रतिनिधि हमारी समस्या सुनें। उत्तर प्रदेश के हर नागरिक को अपने विधायक और सांसद को समस्या बतानी चाहिए। अगर वह आपकी समस्या का हल न करे तो आप उसको बता दीजिये और खुद भी याद रखिये अगली बार जब वह वोट मांगने आये तो आप उसे बताइये कि जब उसका परिवार संकट में था तो वह नहीं दिखायी पड़ा था। एक वर्ष बाद ही चुनाव है। हम अपना जनप्रतिनिधि इसीलिए चुनते हैं लेकिन हमें पूरे प्रदेश को कोई जनप्रतिनिधि नहीं दिखायी दे रहा सामने आते हुए। दो-चार ने जरूर अपनी निधि दी है। एक मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर और भाजपा विधायक बृजेश पाठक जरूर जनता के साथ खड़े हुए हैं। उनको छोड़कर अन्य कोई विधायक सामने नहीं आया। उत्तर प्रदेश में जब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा तब आक्सीजन की व्यवस्था पर ध्यान गया, अगर पहले हुआ होता तो इतने लोग नहीं मरते, जो मरे उनका जिम्मेदार कौन है सरकार या फिर कोरोना वॉयरस ।