एलिजाबेथ डब्ल्यू एंड्रयू और कैथरीन सी बुशनेल ने 1898 में एक किताब लिखी। उसका नाम था ‘द क्वीन्स डॉटर्स इन इंडिया‘। ये किताब भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान की दु:खद, लेकिन कड़वी सच्चाई को बयाँ करती है। इसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि अंग्रेजों के जमाने में ब्रिटिश सेना के सैनिकों के लिए भारतीय महिलाओं का इस्तेमाल ‘सेक्स स्लेव’ (यौन आनंद के लिए किसी को गुलाम बनाना) के तौर पर किया जाता था।
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The British Empire’s long list of crimes against Bharat includes slavery, racism, religious intolerance, plunder, & more. But did you know that the British systematically forced 1000s of Indian women to become sex slaves under the guise of “prostitution” for their soldiers? pic.twitter.com/kPtFaXkwOj— Savitri Mumukshu – सावित्री मुमुक्षु (@MumukshuSavitri) September 18, 2021
किताब में बताया गया है कि भारत पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद अंग्रेजों ने यहाँ पर छावनियाँ बनाईं। ये “छावनी” अंग्रेजों के रहने वाले वो विशेष निवास स्थान थे, जहाँ पर भारत पर शासन करने वाले नागरिक कानून मान्य नहीं थे। लेकिन अंग्रेजों के कुछ मनमाने कानून जरूर चलते थे। ऐसी करीब 100 छावनी स्थापित की गई थीं। इन छावनियों को बनाने का एकमात्र उद्देश्य किसी भी विद्रोहियों से ब्रिटिश सैनिकों की रक्षा करना था।
1864 के छावनी अधिनियमों ने इन छावनियों में वेश्यावृत्ति विनियमित किया गया था। यहाँ गरीब भारतीय महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देने के नाम पर वेश्यावृति में ढकेल दिया गया और उसे लीगलाइज करने के बाद चकला नाम दिया। भारतीय महिलाओं के अधिकारों का खुलेआम हनन किया गया। जाहिर है, केवल 12-15 भारतीय महिलाओं ने 1000 ब्रिटिश सैनिकों की पूरी रेजिमेंट को अपनी सेवाएँ दीं। ब्रिटिश सेना को समलैंगिकता में फंसने से बचाने के लिए एहतियातन अंग्रेजों ने वेश्यावृत्ति को सही ठहराया।
किताब में बताया गया है, “राज को यह पता था कि अगर ब्रिटिश आर्मी महिलाओं से सेक्स नहीं करेगी तो उसकी हालत ‘सदोम और अमोरा’ बन जाएगी।” 1860 में धारा 377 को लागू किया गया था। इस कानून के तहत समलैंगिकता, अप्राकृतिक यौन संबंध व वहशीपना को दंडनीय अपराध घोषित किया गया। हालाँकि यह पर्याप्त नहीं था। रिपोर्टों के मुताबिक, ब्रिटिश सेना के पुरुष चाहते थे कि युवा लड़कों के लिए इस तरह का एक अलग बाजार होना चाहिए, शायद महिलाएँ आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती थीं। 1894 में वायसराय ने इस बात को लेकर घोषणा की थी कि वेश्याओं की कमी के कारण यह और अधिक निंदनीय ‘प्राच्य’ और अप्राकृतिक बुराइयों को जन्म देगा। समलैंगिकता का खतरा न केवल दोष के रूप में हैं, बल्कि साम्राज्य की प्रतिष्ठा को संभावित नुकसान भी पहुँचाता है। इसी कारण सशस्त्र बलों को वेश्याओं को उपलब्ध कराने को सही ठहराया गया है।
भारतीय महिलाओं के हर अंग की होती थी जाँच
इतना ही नहीं उसी दौरान अंग्रेजों ने एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) को लेकर एक ज्ञापन जारी किया था, जिसमें ब्रिटिश सैनिकों को भारतीय महिलाओं में यौन रोगों के प्रति आगाह किया गया था। इसके तहत वेश्याओं के साथ सेक्स करने वाले अंग्रेज सैनिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारतीय महिलाओं का प्रतिदिन टेस्ट किया जाता था। जेल के अस्पतालों में होने वाले इन टेस्ट को सर्जिकल रेप माना जाता था, जहाँ संक्रमण की दृष्टि से संभावित शरीर के हर हिस्से की जाँच की जाती थी।
वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सैनिकों को इस तरह की जाँच से छूट दी गई थी। वह भी तब जब इन सैनिकों के द्वारा इंग्लैंड में बीमारी फैलने का वास्तविक जोखिम था। बावजूद इसके ब्रिटिश अधिकारियों ने पुरुषों के लिए इस तरह के परीक्षणों को ‘क्रूर और अपमानजनक’ बताया था।
पुस्तक में लिखा था, “यौन रोगों को लेकर अंग्रेजों ने एक आदेश जारी किया, जिसमें सैनिकों को स्थानीय महिलाओं के भीतर छिपी ‘गंदगी’ को लेकर चेतावनी दी गई। साथ ही ये भी दावा किया गया कि उष्ण कटिबंधों (कर्क व मकर रेखा के बीच का क्षेत्र) में होने वाले रोग उन रोगों से ज्यादा भयानक हैं, जो उत्तरी यूरोप के ‘अच्छे’ वातावरण में आते हैं। उन्होंने उष्ण कटिबंधों में होने वाले संक्रामक रोगों को ज्यादा से ज्यादा विनाशकारी बताते हुए पेश किया, जो उन पर ज्यादा दुष्प्रभाव डाल रहा था।”
सामाजिक तौर पर गढ़े हुए मिथकों सती प्रथा और बाल विवाह को दूर करने का दिखावा करने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को लेकर ‘द क्वीन्स डॉटर्स इन इंडिया’ किताब ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि अंग्रेजों ने भारतीय महिलाओं को जबरन प्रताड़ित किया और उन्हें वेश्यावृत्ति में ढकेलने के साथ ही, यौन गुलाम बनाया था।