नई दिल्ली। गुजराती कारोबारी अभिजात्यों के बीच वड़ोदरा के संदेसरा बंधु (नितिन और चेतन संदेसरा) हमेशा पराये ही रहे हैं.
1980 के दशक में पहली पीढ़ी के एक उद्यमी के तौर पर इन भाइयों की गुजरात की पुरानी दुनिया के उद्योगपतियों: निरमा समूह के पटेल, कपड़ा क्षेत्र के बड़े खिलाड़ीलाल भाई, टॉरेंट के मेहता या बकरी रियल एस्टेट के मालिकों, से शायद ही कोई समानता थी.
ये सब मिलकर कारोबारियों के एक ऐसे समूह का निर्माण करते थे, जो एक बाजार से चिपके रहने में गर्व महसूस करते थे और सामान्यतः इनमें कारोबारों का हस्तांतरण बाप से बेटों को होता था.
संदेसरा बंधु की महत्वाकांक्षा उनकी योजनाओं को जमीन पर उतारने की क्षमता से भी कभी मेल नहीं खा सकी: अंबानियों या मफतलाल परिवार की तेज धार वाली चपल कारोबारी बुद्धि भी इनके हिस्से नहीं आई थी.
इनके बजाय इनका उदय गौतम अडानी के उभार से मिलता-जुलता था. जिस समय संदेसरा बंधु पंख फैलाना शुरू कर रहे थे, वे (अडानी) बस एक सामान्य से छोटे कारोबारी थे और अपनी जगह तलाश कर रहे थे.
अडानी की तरह नितिन और चेतन संदेसरा पहली पीढ़ी के उद्यमी थे, जिन्होंने बॉम्बे से गुजरात वापस आकर बड़े मगर अक्सर असफल रहे कारोबारी समूह की शुरुआत की.
उनके कारोबारी समूह की फार्मास्यूटिकल्स से लेकर बुनियादी ढांचे और तेल और गैस की खोज तक के क्षेत्र में रुचि रही. लेकिन चर्चाओं से दूर रहनेवाले ज्यादातर गुजराती कारोबारियों के विपरीत वे राजशाही जिंदगी जीने में यकीन करते थे और वे इस बात का खास ध्यान रखते थे कि लोग उनके बारे में जानें.
इसके लिए उन्होंने बॉलीवुड में अपने संपर्कों, प्राइवेट जेट और लंबी वीकेंड पार्टियों को रास्ता बनाया.
स्टर्लिंग के एक पूर्व वरिष्ठ एक्जीक्यूटिव ने अपनी पहचान न उजागर करने की शर्त पर बताया कि कि जब चेतन ने एक गल्फस्ट्रीम जेट को 100करोड़ से ज्यादा में खरीदा, तब उन्होंने कीमत को लेकर शेखी बघारने के लिए व्यक्तिगत तौर पर पत्रकारों को बुलाया.
वे दूसरे कारोबारियों को भी थोड़ा नीचा दिखाना चाहते थे. और जैसा कि स्वाभाविक था, उनके जेट खरीदने के बाद अडानी ने भी एक चैलेंजर खरीदा. और उसके दो साल के बाद कैडिला के पंकज पटेल ने भी ऐसा ही किया.
किसी जमाने में वड़ोदरा के कारोबारी समुदाय के बीच चर्चा के केंद्र रहे, संदेसरा भाइयों को अब करीब 5000 करोड़ के कर्ज को जानबूझकर न चुकानेवाला (विलफुल डिफॉल्टर) माना जाता है और उन्हें आर्थिक भगोड़ा घोषित कर दिया गया है.
उनकी संपत्ति को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कुर्क किया जा चुका है और उसे सील किया जा चुका है. उनके कारोबारों को बैंक अधिकारियों ने अपने हाथों में ले लिया है.
दोनों भाई पिछले साल देश से कथित तौर पर नाइजीरिया भाग गए, जहां उनके किसी जमाने के संभावनाशील तेल कारोबार का एक हिस्सा अभी भी बचा हुआ है.
यूं तो यही एक तथ्य उन्हें नीरव मोदी और विजय माल्या जैसों के क्लब में दाखिला दिला देता है, मगर जांच एजेंसियों के बड़े अधिकारियों और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के परिवार के साथ उनके संबंध और उन्हें कथित तौर पर रिश्वत देने का आरोप, उन्हें कई घोटालों के केंद्र में ले आता है, जिनकी ठीक तरह से जांच होनी अभी बाकी है.
फिलहाल ये दोनों सीबीआई के अधिकारी राकेश अस्थाना के साथ अपने संबंधों के कारण चर्चा में हैं. इस मामले के बारे में जानकारी रखनेवाले कम से कम तीन लोगों ने उनके बीच की दोस्ती के बारे में द वायर से बात की.
यह दोस्ती अस्थाना के वड़ोदरा के पुलिस कमिश्नर रहने के दौरान परवान चढ़ी. फिलहाल अस्थाना सीबीआई की साख को संकट में डालनेवाले तूफान के केंद्र में हैं.
जिलेटिन से सोना बनाने वाले
1980 के दशक में मुंबई से ग्रैजुएशन करने के बाद संदेसरा भाइयों ने शुरू में यहां वहां हाथ-पांव मारे, मगर उन्हें कहीं सफलता नहीं मिली.
प्लूटो एक्सपर्ट्स एंड कंसल्टेंट्स नाम की एक कारोबारी कंपनी और उसके बाद उत्तर-पूर्व में कुछ चाय बागानों की खरीद के द्वारा चाय उद्योग में प्रवेश करके इन्होंने अपनी किस्मत को आजमाया.
शुरुआती सालों में कहीं भी सफलता नहीं मिलने के बाद, 1990 के दशक में दवाइयों के लायक (फार्मा ग्रेड) जिलेटिन (एक चिपचिपा रंगहीन पदार्श, जो ठोस होकर क्रिस्टल की परत का रूप ले लेता है) के उत्पादन का फैसले ने उनके लिए खजाने का ताला खोल दिया.
उनकी योजना कितनी शानदार थी, इसे एक सेकंड में समझा जा सकता है. फार्मा ग्रेड जिलेटिन जेनेरिक दवा उद्योग, जो उस समय काफी तेजी से बढ़ रहा था, के लगभग सभी आखिरी उत्पादों में जेलिंग एजेंट के तौर पर काम में लाया जाता है: चाहे कठोर कैप्सूल हो या मुलायम कैप्सूल, यहां तक कि गैर-कैप्सूल टैबलेट को बांधने में भी इसका इस्तेमाल होता है.
मांग के बावजूद भारत की सबसे बड़ी फामॉस्यूटिकल्स कंपनियों में से कोई भी उस समय इसका उत्पादन नहीं करना चाहती थी. आप पूछ सकते हैं क्यों?
इसका एक कारण तो यह है कि जेनेरिक दवाइयों के उत्पादन में पैसा ज्यादा है. लेकिन एक दूसरा कारण जिसका जिक्र कम किया जाता है,
यह है कि जिलेटिन बनाने के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले प्राथमिक पदार्थों में से एक पदार्थ पशुओं की हड्डियां हैं, जो सामान्य तौर पर पहले से ही मृत भैंस से प्राप्त की जाती हैं. ज्यादातर परंपरागत गुजराती कारोबारियों के लिए यह एक सख्ती से वर्जित प्रदेश था.
दूसरी तरफ संदेसरा बंधुओं के लिए यह एक मौका था. और इस तरह से स्टर्लिंग बायोटेक का जन्म हुआ. जैसा कि बजाज कैपिटल के मार्केट एनालिस्ट अभिषेक गुप्ता ने 2008 में कंपनी के कारोबारी मॉडल पर लिखा था:
जिलेटिन का उत्पादन में प्रयोग में लाया जानेवाला प्राथमिक कच्चा माल भैंस की हड्डियां, चूना और हाइड्रोक्लोरिक एसिड हैं. ये कच्चा माल भारत में बहुतायत में मौजूद है, क्योंक भारत दुनिया में भैंस के मांस के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. कच्चे माल की कम कीमत के कारण स्टर्लिंग दुनियाभर में जिलेटिन का सबसे कम लागत पर उत्पादन करनेवाला बन गया है. 100 फीसदी से ज्यादा क्षमता का इस्तेमाल स्टर्लिंग को अपने प्रतियोगियों की तुलना में एक प्रकट लागत लाभ देता है.’
संदेसरा बंधुओं ने जिलेटिन उत्पादन की पहली इकाई 1990 के दशक के मध्य में करखाड़ी जिले में शुरू की, जो वड़ोदरा नगर से करीब 35किलोमीटर दूर और उनके द्वारा बाद में अमपाद गांव में बनाए गए फार्महाउस से करीब 20 किलोमीटर दूर है.
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. करखाड़ी में अपनी इकाई खोलने के लगभग एक दशक से ज्यादा समय के बाद, उन्होंने फार्मा कारोबार में अच्छा प्रदर्शन किया था.
उनकी कंपनी की बाजार पूंजी करीब 4,000 करोड़ रुपए की थी और राजस्व करीब 1,000 करोड़ रुपये का था; इसके साथ ही घरेलू बाजार में इसकी हिस्सेदारी 85 फीसदी और विश्व बाजार में हिस्सेदारी 6 प्रतिशत थी.
इसके साथ ही वे दुनियाभर में जिलेटिन के शीर्ष पांच उत्पादकों में थे. शुरुआती सफलता के बाद संदेसरा बंधुओं ने जल्दी ही दूसरे क्षेत्रों में पांव पसारने के बारे में सोचना शुरू कर दिया.
2003 के बाद के ‘वाइब्रेंट गुजरात’ सम्मेलनों में इनके द्वारा बड़ी संख्या में दूसरे नए कारोबारों की घोषणा की जाती थी, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण दाहेज पत्तन पर एक ग्रीनफील्ड (नई) परियोजना और जंबुसर में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) परियोजना थी.
आखिरकार ये दोनों परियोजनाएं बुरी तरह से असफल रहीं और इस प्रक्रिया में इन पर सैकड़ों करोड़ का कर्ज जमा हो गया.
इसी साल दाहेज और जंबुसर में निवेश के पीछे की समूह की कंपनियों को, इसके कर्जदाताओं द्वारा दिवालिया कार्यवाहियों के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल लेकर जाया गया.
अहमदाबाद आधारित एक बड़ी कंपनी के एक सीनियर एक्जीक्यूटिव का कहना है,
‘2000 के दशक के शुरुआती वर्ष इन गुजराती कारोबारियों के लिए शानदार रहे. 2002 के दंगों के बाद मोदी और प्रमुख कारोबारियों के बीच के संबंध बिगड़ गए, इसलिए राज्य की औद्योगिक लहर पर सवारी करने के इच्छुक स्थानीय कारोबारी परियोजनाएं हासिल करने और आसान फंडिंग पाने में कामयाब हो गए.’
लेकिन जिसे संदेसरा समूह के मुकुट का अगला हीरा कहा जानेवाला था, वह था इसका तेल खोज और उत्पादन का कारोबार. इस कंपनी को स्टर्लिंग ग्लोबल का नाम दिया गया.
नवंबर, 2011 में मिंट को दिए गए एक इंटरव्यू में नितिन संदेसरा ने कहा, ‘2001-02 की शुरुआत में जब हमने तेल के कारोबार में उतरने का फैसला किया, उस समय हम इसे बड़ा बनाना चाहते थे और बस छोटा खिलाड़ी बनकर नहीं रहना चाहते थे.’
नितिन संदेसरा इस समय समूह के अध्यक्ष थे. और यह पैमाना कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2004 के आखिरी हिस्से में जब कंपनी को चार ऑनशोर (तटीय) ब्लॉकों से कच्चा तेल का पता लगाने और निकालने का लाइसेंस मिला, उस समय नाइजीरिया के कारोबार में 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया.
अभिजात्य जीवनशैली
वड़ोदरा में रहना संदेसरा बंधुओं, खासकर चेतन के दक्षिण मुंबई की जीवन शैली जीने की राह में रोड़ा नहीं बना.
राजनीति, व्यापार और बॉलीवुड का अनोखा गठजोड़ अमपाद गांव में परिवार के 60,000 वर्ग फीट आकार के फार्महाउस में उतर आया जो शहर के ठीक बाहरी इलाके में स्थित था.
चेतन की पत्नी दीप्ति संदेसरा, खासतौर पर इसका हिस्सा थीं: उनकी सोशलाइट मित्रों में नीतू कपूर (अभिनेत्री और ऋषि कपूर की पत्नी) नीलम कोठारी (अभिनेत्री और डिजाइनर) और सुनीता कपूर (डिजाइनर और अनिल कपूर की पत्नी) शामिल थीं.
संदेसरा बंधु के परिवार सहित देश से भाग जाने के बाद वर्षों से दीप्ति की जन्मदिन की पर्टियों को छापते रहनेवाले मुंबई के टैबलॉयड प्रेस ने परिवार की किस्मत पर टिप्पणी की.
2018 के मुंबई मिरर की एक रिपोर्ट में कहा गया,
‘ऐसा लगता है कि सेलेब्रिटियों और घोटालों के बीच अटूट रिश्ता है. दिल्ली की एक अदालत द्वारा बरौदा और मुंबई की दीप्ति संदेसरा, जिन्हें नीतू कपूर, महीप और सुनीता कपूर और नंदिता महतानी, सुरीली गोयल, सीमा खान और नीलम कोठारी जैसी कई अन्य नामी-गिरामी औरतों की गहरी मित्र के तौर पर भी जाना जाता है, के खिलाफ गैर-जमानती वारंट के निकले कुछ ही दिन हुए हैं.’
लेकिन जब मुश्किलें खड़ी होनी शुरू हुईं, तब भी संदेसरा परिवार ने अपनी भड़कीली जीवन शैली से बाज आने की कोई जहमत नहीं उठाई.
आयकर विभाग द्वारा बिना हिसाब वाले पैसे को लेकर सवाल पूछने के लिए वड़ोदरा का नियमित दौरा शुरू करने (2011)– यही वह साल था जब ईडी उनके दरवाजे तक पहुंची और विवादास्पद ‘डायरी 2011’ को जब्त किया- के दो साल बाद और बैंकों द्वारा समूह के कर्ज के डूब जाने का खतरा जताने (2012) के एक साल बाद भी वे राजशाही जीवन जी रहे थे.
उदाहरण के लिए, 2013 में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में चेतन संदेसरा ने इस बारे में बात की कि किस तरह से शहर के बाहर बना उनके बंगले को किस तरह शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान और ऋतिक रोशन की पत्नी सुजैन, द्वारा फिर से डिजाइन करते हुए उसे नया रूप दिया जा रहा है.
उन्होंने बताया, ‘मेरी पत्नी गौरी और सुजैन से पार्टियों में मिली और उनके बीच दोस्ती है. हम लोग अपने नए बंगले के लिए पेशेवर इंटीरियर डिजाइनर की तलाश कर रहे थे और हमें पता था कि गौरी और सुजैन इंटीरियर डिजाइनिंग करती हैं. उन्होंने हमें कुछ डिजाइनों की प्रेजेंटेशन दी और हमें वे पसंद आईं.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘यह बंगला, दिसंबर (2013) तक तैयार हो जाएगा, जिसके बाद हम वहां चले जाएंगे. उस मौके पर हम एक दावत रखेंगे, जिसमें गौरी, सुज़ैन और बॉलीवुड के बड़े सितारे आमंत्रित होंगे.’
लेकिन ऐसा लगता है कि यह संदेसरा का तरीका था, जिसमें वड़ोदरा शहर पर अपनी छाप छोड़ना शामिल शामिल था.
अस्थाना से मुलाकात
लेकिन इस समय तक ये दोनों भी खुलकर अपनी राजनीतिक वफादारी दिखाने के मामले में ज्यादातर शांत रहते थे, जबकि उस वक्त अधिकतर गुजराती उद्योगपतियों को इसका प्रदर्शन करने में कोई परेशानी नहीं थी.
यूं तो, संदेसरा बंधु ‘रीसर्जेंट ग्रुप ऑफ गुजरात’ का हिस्सा थे- यह नाम 2002 के गुजरात दंगे के बाद कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के कुछ सदस्यों के खिलाफ तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का पक्ष लेने वाले सौ से ज्यादा स्थानीय औद्योगिक नेताओं द्वारा अपनाया गया था- लेकिन वे इस संगठन का प्रमुख चेहरा नहीं थे.
यह काम मोदी के ज्यादा करीब माने जानेवाले उद्योगपतियों: अडानी समूह के गौतम अडानी, टॉरेंट समूह के सुधीर मेहता, निरमा के कर्सन पटेल और बकरी इंजीनियर्स के अनिल बकरी के लिए छोड़ दिया गया था.
लेकिन संदेसरा बंधु वड़ोदरा को कुछ वापस लौटाने और वो शहर, जिसे उन्होंने अपना घर बनाया था, को बेहतर बनाने में यकीन करते थे, जिसके चलते उनका परिचय ‘सुपर कॉप’ राकेश अस्थाना से हुआ.
2008 में अस्थाना को वड़ोदरा का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया. उस समय तक गोधरा ट्रेन आगजनी मामले की जांच के लिए बने विशेष जांच दल, जिसने इस मामले के घटनाक्रम में महत्वपूर्ण बदलाव किए थे, के प्रमुख के तौर पर उनकी एक पहचान बन गई थी.
संदेसरा परिवार और वड़ोदरा के पुलिस प्रमुख के बीच परिचय और बाद में इस परिचय के घनिष्ठ दोस्ती में बदलने के जितने मुंह उतने किस्से है.
ऐसी ही एक कहानी के मुताबिक, 2008 में अस्थाना के पुलिस कमिश्नर बनने के बाद (इससे पहले उन्होंने इंस्पेक्टर जनरल के तौर पर पांच साल काम किया), नितिन संदेसरा ने यह फैसला किया कि वे निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत पुलिस मुख्यालय के नवीकरण को प्रायोजित करना चाहते हैं.
यह वह दौर था जब देश भर में ज्यादातर राज्य सरकारों के विभागों में निजी-सार्वजनिक भागीदारी आम हो चली थी. इस नवीकरण की प्रक्रिया के दौरान ही अस्थाना और संदेसरा के बीच नजदीकियां बढ़ीं.
कम से कम एक स्रोत ने पुलिस मुख्यालय के जीर्णोद्धार के लिए परिवार द्वारा पैसे दिए जाने के बारे में बताया और कहा कि पुलिस मुख्यालय में इस बारे में एक तख्ती भी लगाई गई थी, जिसमें संदेसरा समूह को वित्तीय योगदान देने का श्रेय दिया गया था. लेकिन वड़ोदरा नगर पुलिस की वेबसाइट पर इसका कोई जिक्र नहीं मिलता.
एक दूसरी कहानी के मुताबिक अस्थाना की चेतन संदेसरा से मुलाकात तब हुई, जब वे एक बार स्टर्लिंग हेल्थकेयर मॉल गए थे. यह संदेसरा परिवार द्वारा शहर में खोला गया एक विशालयकाय तीन मंजिला जिम और हेल्थकेयर सेंटर था.
दोनों के बीच रिश्ता यहीं से आगे बढ़ा. इस शुरुआती दोस्ती के कारण ही संदेसरा परिवार ने वड़ोदरा पुलिस भवन के पुनरुद्धार में दिलचस्पी दिखाई.
संदेसरा के सामाजिक दायरे में आनेवाले दूसरे लोग नितिन ‘गरबा’ या धार्मिक संगीत के लिए संदेसरा और और अस्थाना दोनों के साझे प्रेम के बारे में बात करते हैं, जिसके कारण कंपनी ने वड़ोदरा में 2010 की नवरात्रि में ‘मां-आरकी’ गरबा को फिर से शुरू करने के लिए पैसा दिया. बताया जाता है कि अस्थाना ने इस कार्यक्रम में कई बार शिरकत की.
उस समय के टाइम्स ऑफ इंडिया के एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि इस गरबा से जमा होनेवाला सारा पैसा वड़ोदरा ट्रैफिक एजुकेशन ट्रस्ट (वीटीईटी) को दिया जाएगा.
इस रिपोर्ट में शहर के स्टॉक एक्सचेंज के उपाध्यक्ष सुधीर शाह के हवाले से कहा गया है, ‘शुक्रवार रात को शहर के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की अध्यक्षता में हुई वीटीईटी की बैठक में हमने यह ऐलान किया कि गरबा द्वारा इकट्ठा किया गया पैसा सीधे वीटीईटी को दान किया जाएगा.’
2010-12 के बीच यह वह समय था, जब बताया जाता है कि अस्थाना के बेटे अंकुश अस्थाना बतौर इंटर्न स्टर्लिंग बायोटेक में शामिल हुए और यहां दो साल तक काम किया- यह आरोप कॉमन कॉज़ एनजीओ द्वारा पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में लगाया गया है.
हाल के महीनों में अस्थाना की बेटी की शादी भी सीबीआई की जांच के दायरे में आई है, जिसके कुछ समारोह कथित तौर पर वड़ोदरा के ठीक बाहर अमपाद में संदेसरा के फार्म हाउस में हुए.
सवाल उठता है कि क्या अस्थाना और संदेसरा के बीच संबंध आपसी लेन-देन वाले थे? सीबीआई के भीतर कम से कम पांच लोगों के संदिग्ध होने को लेकर पर्याप्त सबूत हैं, लेकिन अभी तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है.
गुजरात की एक बड़ी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के सीनियर एग्जीक्यूटिव बताते हैं, ‘आप किसी से भी पूछिए, वह आपको बताएगा कि किसी खास शहर से रिश्ता रखने वाले कारोबारियों का स्थानीय अधिकारियों के साथ दोस्ताना संबंध होता है. यह अनिवार्य तौर पर रिश्वत का मामला नहीं है, बल्कि एक दूसरे से पहचान का मामला है. क्या आयकर विभाग द्वारा छापा मारने की स्थिति में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के आपके पक्ष में होने से मदद मिलती है? निश्चित तौर पर हां, लेकिन आखिरकार यह आपको बचा नहीं पाएगा.’
2011 में ईडी द्वारा जब्त की गई कुख्यात ‘डायरी 2011’, जिसमें कंपनी के रिकॉर्ड्स हैं, से ऐसा लगता है कि अब भी काफी कुछ छिपा हुआ है.
2017 के आखिर में सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह आरोप लगाया था कि डायरी की एंट्रियों से यह खुलासा होता है कि अस्थाना ने स्टर्लिंग बायोटेक से करीब 3.5 करोड़ रुपए दिए थे, हालांकि इस बात को लेकर एक राय नहीं है कि रिकॉर्ड में दर्ज आरए का मतलब राकेश अस्थाना है या इसका प्रयोग रनिंग एकाउंट के लिए किया गया है.
अभी हाल में, सीबीआई के तीसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी (एके शर्मा) के नेतृत्व में सीबीआई की आंतरिक जांच इस बात का पता लगाने के लिए शुरू हुई कि क्या अस्थाना ने सीबीआई के भीतर अपने प्रभाव का इस्तेमाल संदेसरा और स्टर्लिंग बायोटेक के दूसरे निदेशकों के खिलाफ आयकर कार्यवाहियों को टालने और उनमें रोकने के लिए किया?
संदेसरा समूह का पतन
संदेसरा साम्राज्य में दरार दो चरणों में आई और जांच एजेंसियां का मानना है कि दोनों एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं.
इसमें पहला था इसके सर्वप्रमुख जिलेटिन कारोबार स्टर्लिंग बायोटेक का पतन. प्रदूषण से जुड़े अनेक मसलों के कारण वड़ोदरा के बाहर की इसकी फैक्टरी को लगभग एक साल तक बंद रही.
इस झटके से यह कंपनी कभी उबर नहीं पाई. अगस्त, 2008 में कंपनी के शेयरों का मूल्य 196.50 रुपये प्रति शेयर था, जहां से यह यह लुढ़ककर करीब एक साल से थोड़े ज्यादा समय में अक्टूबर, 2009 में 90.20 रुपये पर चला आया और 2012 तक इसकी कीमत कौड़ियों के बराबर रह गई.
इसी समय के आसपास से (2006) से संदेसरा बंधुओं ने बड़े कर्ज लेने शुरू कर दिए. इसमें से ज्यादातर कर्ज आंध्रा बैंक के नेतृत्व वाले कर्जदाताओं के एक समूह के द्वारा दिया गया.
आंध्रा बैंक के अनूप प्रकाश गर्ग पर ईडी द्वारा संदेसरा बंधुओं से नकद पैसे लेने के आरोपों में मामला दर्ज किया गया है.
इस बात को लेकर कई सार्वजनिक अनुमान हैं कि उन्होंने कितना कर्ज लिया और इसका कितना प्रतिशत समूह की किस कंपनी को गया.
लेकिन अगर मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाए, तो संदेसरा समूह ने 2006-2011 के बीच लगभग 6,000 करोड़ रुपए कर्ज के तौर पर लिए.
इसका एक बड़ा भाग (3,000 करोड़ रुपये) स्टर्लिंग बायोटेक को गया, लेकिन बाकी पैसा प्रकट तौर पर दूसरे कारोबारों का विस्तार करने में खर्च किया गया- जिनमें स्टर्लिंग सेज़ (900 करोड़ रुपये) नाइजीरिया में स्टर्लिंग ऑयल (1500 करोड़ रुपये) और पीएमटी मशीन्स (300 करोड़ रुपये) शामिल है.
इनमें से कितना कर्ज गलत कारोबारी फैसले की भेंट चढ़ गया और कितने का नुकसान, जैसा सीबीआई और ईडी को शक है, पैसे को दूसरी तरफ मोड़ देने के कारण हुआ? उम्मीद की जा सकती है कि चल रही जांच से इसके बारे मे पता चलेगा.
2012 आते-आते तक समूह का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा. मई, 2012 में संस्थागत निवेशकों के एक समूह ने स्टर्लिंग बायोटेक द्वारा 2007 में बेचे गए एक पांच साल के विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्डों (कनर्विटल बॉन्ड्स) का पुनर्भुगतान तय समय पर करने में नाकाम रहने के कारण संदेसरा समूह को लंदन के कोर्ट में घसीटा.
उस समय नितिन संदेसरा ने मीडिया के सामने इसे ‘तरलता की अस्थायी गड़बड़ी’ करार देते हुए इस बात से पूरी तरह से इनकार कर दिया था कि कंपनी कर्ज न चुका पाने के किसी तरह के संकट का सामना कर रही है.
दूसरे लोग इतने आशावादी नहीं थे. स्टर्लिंग बायोटेक पर कर्ज के बोझ पर लिखते हुए बाजार विश्लेषक दीपक शिनॉय ने लिखा था,
‘करीब 184 मिलियन (18.4 करोड़) डॉलर की आज (16 मई 2012) पुनअर्दायगी की तारीख है- कुल कर्ज 993.6 करोड़ रुपए (9.936 अरब) है.
ऐसा लगता है कि पैसा स्टर्लिंग बायोटेक को नहीं मिला है. हाल के परिणाम सिर्फ जनवरी, फरवरी, मार्च की तिमाही में 92 करोड़ रुपए का कर्ज दिखाते हैं, यहां तक कि दिसंबर की तिमाही में भी घाटा दिखाया जा रहा है. उनका जिलेटिन का मुख्य धंधा प्रदूषण-विरोधी नियमों के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और उनका उत्पादों को सस्ती चीनी प्रतियोगिता ने काफी नुकसान पहुंचाया है.
हम भले स्टर्लिंग बायोटेक के जहाज को डूबा हुआ मान चुके हैं, लेकिन इसके द्वारा कर्ज न चुकाना बड़े तूफान को जन्म दे सकता है.
2017 तक यह स्पष्ट हो गया कि दूसरे कारोबारों में पांव पसारने की समूह की कोशिशें असफल हो गई थीं- खासकर दाहेज पत्तन और जंबुसर सेज़ परियोजना.
इनके नाइजीरिया तेल कारोबार को लेकर खतरे के संकेत 2015 से मिलने लगे थे. उस साल कंपनी ने साहसी चेहरा पेश करते हुए कहा कि उसकी तेज खोज गतिविधियों में 3 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश करने और 2017 तक प्रतिदिन 1 लाख बैरल तेल तक पहुंच जाने की योजना है.
2016 के जून में तेल उद्योग की एक वेबसाइट पेट्रो वॉच ने यह खबर दी कि किस तरह से नाइजीरिया में कंपनी के कई कर्मचारियों ने, जिनका आरोप था कि उन्हें महीनों से पैसे नहीं मिलते हैं, ने ट्विटर के माध्यम से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद की गुहार लगाई.
उस खबर में कहा गया,
‘अरबपति नितिन संदेसरा के स्वामित्व वाली स्टर्लिंग ऑयल एक्सप्लोरेशन एंड एनर्जी द्वारा कथित तौर पर डराए-धमकाए जाने ने नाइजीरिया में कंपनी के मुलाजिमों को भारत सरकार से मदद मांगने के लिए मजबूर कर दिया है.
सात महीनों तक वेतन नहीं मिलने के बाद, स्टर्लिंग के कर्मचारियों ने विदेश राज्यमंत्री जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह से ट्विटर पर संपर्क किया.
15 जून को सिंह ने जवाब दिया, ‘(भारतीय) दूतावास पूरी कोशिश कर रहा है और आपकी समस्या का समाधान करेगा.’ एक दिन पहले वायरलाइन लॉगिंग इंजीनियर महावीर दीवान, जिन्हें स्टर्लिंग के लागोस ऑफिस के बर्खास्त कर दिया गया था, ने ट्विटर पर लिखा कि कंपनी के प्रमुख दीपक बरोट ने उन्हें धमकी दी और उनसे तुरंत भारत चले जाने के लिए कहा.
12 जून को पार्थ कुमार ने विदेशमंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट किया: हम 6-7 महीने से गुलामों की तरह सप्ताह में सात-सात दिन बिना वेतन के काम कर रहे हैं. अब वे हमारे वेतन और बकाया नहीं दे रहे हैं. अगर कोई शिकायत करता है, तो कंपनी के प्रबंधन द्वारा उसे और उसके परिवार को धमकी दी जाती है.’
अक्टूबर 2017 में संदेसरा समूह के प्रबंधन, इसके दोनों भाइयों, दीप्ति संदेसरा और अज्ञात निजी व्यक्तियों और लोक सेवकों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत सीबीआई द्वारा दो मामले दर्ज करने के साथ ही संदेसरा समूह पर आखिरी हथौड़ा चला.
तब दर्ज हुई एक एफआईआर में कहा गया, ‘एक विश्वस्त स्रोत से यह सूचना मिली है कि स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड, इसके ऊपर लिखित निदेशक और अन्यों ने मिलकर बेईमान इरादे के साथ आंध्रा बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैकों को धोखा देने के लिए आपराधिक साजिश रची.’
इसमें आगे कहा गया है, स्टर्लिंग बायोटेक ने 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज का उपयोग किया है, जो कि गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में बदल गए हैं.
पिछले महीने दर्ज की गई ईडी की एफआईआर और भी स्पष्ट है. इसके अनुसार कुल लिया गया कर्ज और ज्यादा (8,000 करोड़) है. और इसमें यह ब्यौरेवार ढंग से यह बताया गया हे कि बैंकों को धोखा देने के लिए आपराधिक साजिश रची गई.
ईडी ने एक बयान में कहा, ‘उन्होंने बैंकों से कर्ज लेने के लिए अपनी प्रमुख कंपनियों की बैलेंस शीट में आंकड़ों की हेराफेरी की. कर्ज पा लेने के बाद उन्होंने कर्ज के पैसे को विभिन्न शेल कंपनियों के जरिए उन उद्देश्यों में लगा दिया, जिनके लिए ये कर्ज नहीं दिए गए थे.’
लेकिन जब तक सीबीआई पहला मामला दर्ज कर पाती, काफी देर हो चुकी थी. संदेसरा परिवार देश से बाहर भाग चुका था- पहले कथित तौर पर दुबई और अब नाइजीरिया.
क्या उनके संपर्कों और उनके द्वारा दिए गए रिश्वतों ने उन पर शिकंजा कसने से पहले ही उन्हें बच कर निकल जाने में मदद की?
इसका जवाब समय देगा, लेकिन जनवरी, 2018 में स्टर्लिंग मामले से जुड़े छोटे कारोबारियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायालय सिद्धार्थ शर्मा ने यही सवाल ईडी से पूछा.
शर्मा के शब्द थे, ‘पूरी व्यवस्था ही भ्रष्ट है. आप (ईडी) सिर्फ छोटी मछलियों को पकड़ रहे हैं. मैं इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हूं कि आखिर आज तक आरोपी कंपनी (गुजरात की फार्मा कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक) के किसी अधिकारी, चार्टर्ड अकाउंटेंटों और अन्यों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है. अपनी पसंद के हिसाब से लोगों को मत चुनिए.’