महाराष्ट्र में बीजेपी का ‘मायाजाल’, कैसे बिना सामने आए उद्धव-पवार को दे दी पटखनी

मुंबई। महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट से पहले उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. सूबे में जो महा विकास अघाड़ी बहुमत का दावा कर रही थी, उसने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के चंद मिनटों के अंदर ही हथियार डाल दिए. इस तरह ढाई साल पहले बनी महा विकास अघाड़ी सरकार का अंत हो गया है और अब बीजेपी 31 महीने के बाद फिर से महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी करने जा रही है.

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर 2019 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना ने पाला बदला और एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया. ऐसे में बीजेपी ने पवार परिवार के अजित पवार को तोड़ने की कोशिश की. देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली थी, लेकिन चंद घंटों में पासा पलट गया. शिवसेना ने बीजेपी का तख्तापलट कर दिया. इस तरह शिवसेना की परिपाटी बदल कर उद्धव ठाकरे अपने परिवार से पहले मुख्यमंत्री बने.

MVA की सरकार बनते ही सक्रिय हुई BJP

महा विकास अघाड़ी की सरकार बनने के साथ ही बीजेपी खेमा उनकी कुर्सी खींचने में लगा हुआ था. लेकिन उसे अमली जामा अब पहनाया गया. बीजेपी ने महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति बनाई और हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना में असंतोष भड़कने का इंतजार किया गया. एक तरफ केंद्र की सरकारी जांच एजेंसियों ने अवैध कमाई करने वाले नेताओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई की तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर असहज किया.

बीजेपी लगातार कोशिश करती रही कि शिवसेना में अंतर्विरोध पैदा हो सके. उद्धव सरकार ढाई साल का सफर ही तय कर सकी थी कि एकनाथ शिंदे ने बगावत का बिगुल फूंक दिया. एकनाथ शिंदे शिवसेना के विधायकों को लेकर पहले  सूरत चले गए और फिर वहां से बीजेपी की सरकार वाले असम के गुवाहाटी में पहुंच गए. दिन बीतते गए और एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के विधायकों की संख्या बढ़ती गई.

शिवसेना के जब दो तिहाई विधायक उद्धव खेमे को छोड़कर शिंदे के साथ आए गए. शिंदे ने आरोप लगाया कि शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे भटक गई है, उद्धव मिलने तक का समय नहीं देते. उद्धव ठाकरे की मुश्किल तब और बढ़ गई जब सियासी जोर आजमाइश के बीच महा विकास आघाड़ी को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीयों ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया. शिवसेना की ओर से बागियों को डराया और धमकाया गया तो उद्धव ठाकरे ने इमोशन दिखाया, लेकिन बात नहीं बनी.

जब भरोसा हुआ तब मैदान में उतरी बीजेपी

शिवसेना के बागी विधायकों को बीजेपी ने अपने शासित राज्यों में ठहरने की व्यवस्था की, लेकिन सरकार बनाने की दिशा में किसी तरह कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. बीजेपी वेट एंड वाच के मोड में रही है और बस यही कहती रही कि यह शिवसेना का आंतरिक मामला है बीजेपी का इससे कोई लेना देना नहीं है. लेकिन, जैसे ही संख्या बल की दृष्टि से भाजपा अपने और निर्दलीय, छोटे दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई तब खुलकर मैदान में उतरी.

दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो साल में जितनी बार भी उद्धव सरकार पर संकट आया, मराठा क्षत्रप शरद पवार संकट मोचक बनकर खड़े हुए, लेकिन इस बार ऐसा लगा कि उन्होंने भी हथियार डाल दिए. शिंदे की बगावत के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने कह दिया कि ये शिवसेना का आंतरिक मामला है, एनसीपी विपक्ष में बैठने को तैयार है. शरद पवार के पावरलेस हो जाने के पीछे वजह ये है कि उन्होंने मौके की नजाकत को समझा. कांग्रेस ने सिर्फ उद्धव ठाकरे को मरहम लगाने तक खुद की सीमित रखा, लेकिन कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई.

नाकाम रही बगावत डालने की कोशिश

हालांकि, उद्धव ठाकरे की सरकार बचाने के लिए शिवसेना ने अंत समय तक बगावती गुट में फूट डालने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे के साथ मजबूती से खड़े रहे. शिवसेना ने फूट डालने के लिए इनमें से महज 16 विधायकों को नोटिस भेजा गया, लेकिन इससे उलट महा विकास अघाड़ी सरकार को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने भी उससे किनारा कर लिया. ऐसे में शिवसेना सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे पहले ही मुख्यमंत्री आवास छोड़कर मातोश्री आ गए थे.

महाराष्ट्र में दस दिन से जारी सियासी संग्राम अदालत के दहलीज तक पहुंच गया. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी कोरोना से ठीक हो गए थे. अबतक के घटनाक्रम के बाद बीजेपी यह समझ चुकी थी कि अब सियासी बाजी उद्धव ठाकरे के हाथों से निकल चुकी है तो पार्टी सक्रिय हो गई. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस राजभवन पहुंचे और राज्यपाल से मांग की कि उद्धव ठाकरे बहुमत साबित करें. राज्यपाल ने भी फौरन उद्धव सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए नोटिस जारी कर दी और महज एक दिन का का वक्त तय कर दिया.

राज्यपाल के फ्लोट टेस्ट के फैसले को रुकवाने के लिए शिवसेना अदालत तक पहुंची, लेकिन उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इन्कार कर दिया है. ऐसे में नंबर गेम हाथ में न होने से उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उद्धव ठाकरे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसे मानना पड़ेगा. मुझे मुख्यमंत्री पद छोड़ने की कोई चिंता, दुख नहीं है. इसके बाद बीजेपी ढाई साल के बाद फिर से सत्ता में वापसी कर रही है.