शिव के शिष्य हैं शनि देव, सावन में जरुर करें ये काम, साढेसाती और ढैय्या का प्रकोप होगा कम

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि के वक्री होते मकर राशि में गोचर धनु और कुंभ राशि के जातकों की साढेसाती और ढैय्या शुरु हो चुका है, शनि के प्रभावों से हर कोई बचना चाहता है, शनि के कुप्रभावों से बचने के लिये हर कोई कुछ उपाय करता है, ताकि शनि से होने वाली समस्याओं से बचा जा सके, व्यक्ति पर शनि की साढेसाती, और ढैय्या का बहुत ज्यादा प्रभाव रहता है, ऐसे में अगर आप भी शनि के कुप्रभावों से खुद को बचाये रखना चाहते हैं कि सावन का महीना बेहद खास है।

शिव के शिष्य शनिदेव

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है, इस महीने में की गई शिव की अराधना का फल बहुत जल्द मिलता है, पौराणिक कथा के मुताबिक शनिदेव भगवान शिव के शिष्य हैं, ऐसे में शिव भक्तों पर शनि अपनी कुदृष्टि नहीं डालते, वो शनि दशा के दौरान भी शनि प्रकोप से बचे रहते हैं, सावन महीने में भगवान शिव का चालीसा करने मात्र से ही शिव खुश हो जाते हैं, तथा शनिदेव के बुरे प्रभावों से बचा जा सकता है।

शिव चालीसा

दोहा
जय गणेश गिरिज सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
चौपाई
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करता सन्तन प्रतिपाला।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के।।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन क्षार लगाये।।
व्सत्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे।।
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणरऊ। या छवि को कहि जात ना काऊ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन महं तुम सम कोऊ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला।।
कीन्ही दया तहां करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिये इच्छित वर।।
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन ना आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो।।
मात-पिता, भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी।।

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विध्न विनाशन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार ना पाय।।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई।।
ऋनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करो सो पावन हारी।।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यानपूर्वक होम करावे।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे।।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।
मगसर छठि हेमंत ऋतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।