लखनऊ। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को 100 विधायक लाने पर सीएम बनाने का ऑफर देने के पीछे पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की आखिर कौन सी सियासी चाल है? इस बारे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव यूपी में पिछड़ों को पूरी तरह अपने पक्ष में गोलबंदी कराने के लिए अब नया दांव चल रहे हैं। अब वह भारतीय जनता पार्टी में अगड़ा बनाम पिछड़ा का सवाल खड़ा करने की कोशिश में हैं। केशव मौर्य को सीएम बनाने की मुहिम का राग उन्होंने शायद इसीलिए छेड़ा है। हालांकि इसका माकूल जवाब उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने दे दिया है लेकिन सपा मुखिया इस सवाल को और गहराने की तैयारी में हैं।
सपा जातिगत जनगणना करा कर आबादी के हिसाब से सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देने की मांग काफी समय से कर रही है। इसके साथ ही अब अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का मुद्दा गर्माया हुआ है। पर सपा को अहसास है इस मुद्दे पर शोर शराबा करने के बावजूद उससे पिछड़ों को साधने में शायद उतनी सफलता न मिले। भाजपा की पिछड़ों को लामबंद करने की कोशिशों के आगे सपा की रणनीति कितनी कामयाब रही है, यह पिछले कई चुनावों से साफ हो गया है। ऐसे में सपा एक खास रणनीति के तहत भाजपा के विधायकों में असंतोष की बात को उछाल रही है। इसी के साथ जब केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाने की बात उसने यूं ही नहीं उछाल दी। यह सपा भी जानती है कि सौ विधायक लेकर भाजपा छोड़ कर उसके साथ आने की बात महज शोशेबाजी ही है। पर इससे वह पिछड़ों में अपना मुख्यमंत्री होने की बात को बिठाने में लगी है। अखिलेश यादव खुद पिछड़े वर्ग से हैं।
पहले की रणनीति से सपा को उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ फायदा
अखिलेश ने पिछले पांच सालों में बड़ी तादाद में पिछड़े व दलित वर्ग में थोड़ा बहुत असर रखने वाले दो दर्जन बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कराया था। इस साल के विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी, दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर नेता भाजपा सरकार में मंत्री पद छोड़ कर सपा में आ गए थे। बसपा के बड़े चेहरे लालजी वर्मा, रामअचल राजभर ने सपा का दामन थामा।
ओम प्रकाश राजभर, केशव देव मौर्य, पल्लवी पटेल जैसे नेताओं को साथ लिया। माहौल ऐसा बना कि सपा की धूम मचने जा रही रही है, लेकिन नतीजों में भाजपा ने बहुत आगे निकलते हुए सरकार बना ली। रालोद को भी साथ लिया। हालांकि इस तरह की तगड़ी घेराबंदी से सपा को थोड़ा लाभ जरूर हुआ इसी कारण उसी सीटें 47 से बढ़कर 111 हो गईं। सपा को इस बार के विधानसभा चुनाव में पहली बार सर्वाधिक 32 प्रतिशत वोट मिला।