नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले EWS आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि किसी वर्ग तक सरकारी नीतियों का लाभ पहुंचाने के लिए आर्थिक आधार पर नियम तय करने को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। दरअसल अदालत में आरक्षण को चुनौती देने वालों के वकील का कहना था कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। यह सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए व्यवस्था थी। इसका मकसद गरीबी हटाओ योजना चलाना नहीं है। इस पर अदालत ने यह अहम टिप्पणी की है। ऐसे में अदालत के रुख से यह माना जा रहा है कि शायद ईडब्लयूएस कोटा बरकरार रहेगा।
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा, ‘सरकार आर्थिक मानदंडों के आधार पर नीतियां बनाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी नीतियों का लाभ लोगों तक पहुंचे। आर्थिक मानदंड एक सही आधार है और वर्गीकरण के लिए एक सही तरीका है। यह (ऐसा करना) प्रतिबंधित नहीं है।’ शुरुआत में, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील रवि वर्मा कुमार ने आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का हवाला दिया और चंपकम दोरईराजन के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया, जिसके कारण संविधान में पहला संशोधन हुआ था।
5 फीसदी EWS को मिलेगा 10 फीसदी कोटा, वकील ने उठाया सवाल
आंकड़ों का जिक्र करते हुए वकील रवि वर्मा कुमार ने कहा कि ओबीसी, एससी और एसटी की आबादी 85 फीसदी है और उन्हें करीब 50 फीसदी कोटा दिया जा रहा है और पांच फीसदी ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी कोटा मिलेगा। एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा कि इसे एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। गौरतलब है कि 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा एससी, एसटी और ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त है।