‘पोन्नियिन सेल्वन’ को तमिल भाषा में लिखा सबसे महान उपन्यास कहा जाता है. तमिल सिनेमा से जुड़े हर व्यक्ति का ये सपना रहा है कि उनके इतिहास और संस्कृति से इतनी गहराई से जुड़ी ये एपिक कहानी कभी तो स्क्रीन पर आए. खुद मणि रत्नम 90s से इस कहानी को स्क्रीन पर लाने की कई कोशिशें करते रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी अब मिली है.
मुद्दे पर आने से पहले दो बातें जरूरी हैं. पहली- ओरिजिनली तमिल में बनी ‘पोन्नियिन सेल्वन- 1’ को हिंदी, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम में भी डबिंग के साथ रिलीज किया गया है. तो हमने फिल्म हिंदी में देखी. दूसरी बात- अधिकतर उत्तर भारतीय दर्शकों की तरह हम भी ‘पोन्नियिन सेल्वन’ उपन्यास से दूर हैं, इसलिए हमने फिल्म को पूरी तरह एक ऑरिजिनल फिल्म की ही तरह देखा है. और इन दो बातों को ध्यान में रखते हुए कह रहे हैं- ‘पोन्नियिन सेल्वन- 1’ के लिए आप बिल्कुल भी तैयार नहीं हो सकते.
कहानी और किरदार
कहानी की शुरुआत होती है चोल सेना और राष्ट्र्कूटों के बीच युद्ध से. यहां आपको मिलते हैं कहानी के दो नायक आदित्य करिकालन (चियान विक्रम) और वल्लवैरायन वान्दियथेवन (कार्थी). आदित्य चोल युवराज है और ऐसा वीर योद्धा है कि दुश्मन युद्ध में उसका सामना करने भर के ख्याल से घबरा जाए. उसके पिता सुन्दर चोल बीमार हैं और उसे सत्ता सौंप देते हैं. लेकिन खुद उसकी बहन कुंदवई और कई लोगों का मानना है कि अगला राजा बनने के लिए सही व्यक्ति छोटा भाई यानी अरुलमोलीवर्मन है. अरुलमोलीवर्मन, जिसे ‘पोन्नियिन सेल्वन’ कहा जाता है आपको कहानी में इंटरवल के बाद मिलता है.
दूसरी तरफ, सुन्दर चोल के चचेरे भाई मधुरान्तक का दवा भी चोल साम्राज्य पर है और वो अपनी तरफ से सिंहासन पाने की तैयारियां शुरू कर चुका है. चोल साम्राज्य में एक और बड़ा खिलाड़ी है पर्वतेश्वर (आर. सरतकुमार), जिसके खेमे में बड़े खिलाड़ी हैं उसका छोटा भाई सेनापति छोटे पर्वतेश्वर (आर. पार्थिबन) और उसकी पत्नी नंदिनी (ऐश्वर्या राय बच्चन). आदित्य ने अपने दोस्त, वान्दियथेवन को ये जिम्मेदारी सौंपी है कि उसे पर्वतेश्वर खेमे की साजिश का पता लगाना है और उसकी जानकारी महाराज सुन्दर चोल और कुंदवई को देनी है.
जब अपने घोड़े पर सवार वान्दियथेवन सफर पर निकलता है तो उसके साथ ही जनता भी सफर पर निकलती है, जहां दिखने वाला एक एक फ्रेम मणि रत्नम ने अपनीसिनेमेटिक ब्रिलियंस से गढ़ा है. कहानी के बीच में पूरा षड्यंत्र बढ़ता हुआ दिखता है और वान्दियथेवन का सफर भी इसके साथ बढ़ता चला जाता है. और जो ‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ का क्लाइमेक्स है, वहां तक आप कहानी में इतने इन्वेस्ट हो चुके होते हैं कि लगता है ‘पोन्नियिन सेल्वन-2’ भी अब जल्दी से दिखा दी जाए. लेकिन इसके लिए थोड़ा इंतजार तो करना पड़ेगा.
हिंदी डायलॉग हैं दमदार
‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ का टिकट बुक करने से पहले अगर आप इस कन्फ्यूजन में हैं कि तमिल फिल्म को हिंदी डबिंग में देखा जाए या नहीं… तो बेफिक्र होकर जाएं, हिंदी डायलॉग्स लिखने पर जाने-माने राइटर दिव्य प्रकाश दुबे की मेहनत साफ दिखती है. उत्तर भारतीय दर्शक के तौर पर फिल्म देखते हुए कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि कैरेक्टर्स की बातचीत असल बातचीत से ज्यादा ट्रांसलेशन लग रही है. बल्कि नंदिनी-कुंदवई की बातचीत में इंटेंसिटी हो, या फिर कार्थी और मनोज जोशी के किरदारों की विट भरी बातचीत… हिंदी में भी डायलॉग्स के स्वाद, सीन के हिसाब से परफेक्ट बना रहता है.
फिल्म देखने से पहले आप चाहे चोल साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास जानते हों या न जानते हों. फिल्म से आपकी कुछ उम्मीदें रही हों या न रही हों. आप स्क्रीन पर एक भव्य-अद्भुत संसार देखने के लिए तैयार हों या न हों. लेकिन आप पूरी तरह इतने तैयार हैं ही नहीं कि ‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ देखते हुए ‘उफ्फ’ वाली फीलिंग न आ जाए. और इस बात पर यकीन करने या ना करने का फैसला फिल्म देखकर कीजिएगा.
पीरियड ड्रामा फिल्मों को देखकर अक्सर लोगों के मन में कुछ खयाल आते हैं. जब बिजली थी ही नहीं, तो ये महल रातों में भी इतने चमकते क्यों रहते थे? राजा-महाराजा हमेशा इतने सजे-धजे रहते थे तो भयानक युद्दों में कैसे लड़ते थे? और ये पीरियड फिल्म में हीरो-हीरोइन का रोमांटिक गाने गाना जरूरी है क्या? इन सारी शिकायतों का तोड़ है मणि रत्नम की फिल्म. एक बार के लिए आप सोच सकते हैं कि है तो ये भी पीरियड फिल्म ही, लेकिन अंतर क्या है, वो स्क्रीन पर दिखता है.
डिटेलिंग इतनी कि एक एक टेक्सचर, डिजाईन आपको स्क्रीन पर साफ दिखता है. सिनेमाटोग्राफर रवि वर्मन ने जिस तरह फिल्म को शूट किया है वो अद्भुत है. युद्ध और कॉम्बैट सीन्स में भी फिल्म का फील बहुत अनोखा है. टेक्निकली फिल्म बहुत ब्रिलियंट है और आपको एक ऐसा अनुभव देती है कि आप फिल्म खत्म होने पर थिएटर से तो बाहर आ जाएंगे, लेकिन फिल्म से बाहर नहीं आ पाएंगे.
म्यूजिक
ए आर रहमान ने फिल्म में सिर्फ बैकग्राउंड स्कोर नहीं दिया है, बल्कि उनके काम को साउंडस्कोप कहा जाना चाहिए, जो कहानी और विजुअल्स का ही एक एक्सटेंशन है. कहानी के पूरे डेवलपमेंट भी रहमान के म्यूजिक का एक बीट भी आपको गैरजरूरी नहीं लगेगा. गानों का प्लेसमेंट इतना खूबसूरत है कि वो नैरेटिव की स्पीड नहीं डिस्टर्ब करता. स्क्रीन पर विजुअल है और गाना बैकग्राउंड में. सीन्स की कोरियोग्राफी इतनी शानदार है कि नजर चूकते ही कुछ मिस हो सकता है. ‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ का एक-एक फ्रेम बहुत डिटेल लिए हुए है और ये स्टोरीटेलिंग को बहुत रिच बना देता है.
छोटी सी दिक्कत
दुनिया भर का सिनेमा खंगालने वाले फिलमची दर्शकों के लिए तो ‘पोन्नियिन सेल्वन’ एक खजाना है, जिसके फ्रेम को पॉज कर-करके वो खेलते नजर आएंगे. लेकिन थिएटर्स में पूरी तरह एक एस्केप खोजने के लिए घुसी ऑडियंस को एक शिकायत लगेगी वो है कहानी की स्पीड. लेकिन अगर आपको कहानी भा रही है, तो समझ जाएंगे कि मणि रत्नम ने ये समय अपनी कहानी को स्क्रीन पर करीने से उतारने के लिए लिया है.
कुल मिलाकर ‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ एक अद्भुत सिनेमेटिक अनुभव है जिससे हर सिनेमा फैन को जरूर गुजरना चाहिए. इसकी दिमाग को उलझाने वाली कहानी देखने के बाद आपको समझ आएगा कि स्क्रीन पर इसे लाने का सपना तमिल फिल्ममेकर्स क्यों लगातार देखते रहे.