मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का आज (10 अक्टूबर 2022) इंतकाल हो गया। इसकी पुष्टि उनके उस बेटे (अखिलेश यादव) ने भी की है, जिन पर राजनीतिक विरासत को हड़पने के लिए पिता को मुगलों वाले तरीके से बेदखल करने के आरोप लगते हैं। हमारे यहाँ सामाजिक परिपाटी है कि किसी की मौत हो जाए तो गाँधी जी का बंदर बन जाना है। न उसके बारे में बुरा कहना है। न उसके बारे में बुरा सुनना है। उसके बुरे कर्म आँखों में तैरने लगे तो आँख ही बंद कर लेनी है। सो, मुलायम सिंह के इंतकाल के बाद भी शोक संदेशों का आना स्वभाविक है। साइकिल सवार सपाई तो आँसुओं से बाढ़ भी ला सकते हैं। आखिर उनके कुल के धृतराष्ट्र जो चले गए, जो भरे मंच से कहते थे- लड़के हैं, गलती हो जाती है।
मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे – श्री अखिलेश यादव
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) October 10, 2022
मुलायम सिंह यादव ने यह बात उस देश में बलात्कार के अपराध को हल्का दिखाने के लिए कही, जिसकी परंपरा स्त्री सम्मान के लिए लंका दहन और महाभारत की रही है। यह सत्य है कि मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति को उभार दिया। हिंदुत्व को समर्पित पिछड़ों के लिए राजनीति में मजबूत जगह बनाई। लेकिन, जिनकी भावनाओं के ज्वार ने उन्हें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया, देश का रक्षा मंत्री बनाया, आगे चलकर ‘वोट बैंक’ के लिए उन्होंने उनके ही अराध्य राम के भक्तों के रक्त से अयोध्या को लाल कर दिया। पिछड़ों की पीठ पर सवार हो मुलायम ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ में ऐसे डूबे कि उनके बगलगीर आजम खान अभिनेत्री से नेत्री बने जयाप्रदा की चड्डी का रंग बताने लगे।
खुद मुलायम सिंह पर ‘मुल्ला मुलायम’, ‘मौलाना मुलायम’ की सनक सवार हो गई। इसी सनक में उनके रहते 2 नवंबर को अयोध्या में रामधुन में रमे भक्तों पर फायरिंग हुई। अयोध्या की गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया। 3 नवंबर 1990 को जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट में लिखा गया, “राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।”
2 नवंबर 1990 को ही कोठारी बंधुओं की हत्या हुई थी। 20 साल के शरद कोठारी को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया गया और उनके सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख 22 साल के रामकुमार कोठारी भी कूद पड़े। एक गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। उस दिन अयोध्या में किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई थी। सबके सिर और सीने में गोली लगी थी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया था। राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था तो उन्हें पीछे से गोली मारी गई।
इस सबकी शुरुआत से पहले तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने मातहतों से कहा था, “लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं बैठेगी।” अब सवाल है कि उस समय लखनऊ की कुर्सी पर कौन बैठा था। जवाब है- मुलायम सिंह यादव।
उस दिन मरने वाले कारसेवकों की संख्या को लेकर अलग-अलग आँकड़े दिए जाते हैं। कारसेवकों द्वारा जारी की गई सूची में 40 कारसेवकों के मारे जाने की बात कही गई थी और उनके नामों की सूची भी प्रकाशित की गई थी। मुलायम ने बताया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे 56 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी क़िताब ‘युद्ध में अयोध्या‘ में लिखा है कि उन्होंने 25 लाशें देखी थी। केंद्र सरकार ने 15 कारसेवकों के मारे जाने का आँकड़ा दिया था, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 59 लोगों के मारे जाने की बात कही थी।
राम भक्तों के इस नरसंहार के बाद मुलायम को ‘मौलाना मुलायम’ का तमगा हासिल हुआ। वे जीवनपर्यंत अपने इस कृत्य को जायज ठहराते रहे। ऐसा ही मौका नवंबर 2017 में मुलायम सिंह के 79वें जन्मदिन पर आया था। तब मुलायम ने कहा था कि अगर और भी लोगों को मारना पड़ता तो जरूर मारते। मुलायम ने तब गर्व के साथ आँकड़े गिनाते हुए कहा था कि उस गोलीकांड में 28 कारसेवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
उत्तर प्रदेश में मुलायम ने कांशीराम से हाथ मिलाया तो नारे लगे- मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम। क्या हिंदुत्व को समर्पित, राम के लिए अपना जीवन खपाने वाले दलित-पिछड़े ऐसे मुलायम को उनके इंतकाल के बाद भी माफ कर पाएँगे?
अपनी गति को पा चुके मुलायम के लिए तो बाबा तुलसीदास का लिखा यह भी नहीं कहा जा सकता कि ‘सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। हानि लाभु जीवन मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।’ क्योंकि बिधि ने मुलायम को ‘राम भक्त’ बनने का मौका दिया था, उन्होंने राजनीति के लिए ‘मौलाना मुलायम’ होना खुद लिखा।
सभार : अजीत झा …………….