राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विचाराधारा के आंगन में पले बढ़े मुलायम सिंह यादव देश के उन चुनिंदा नेताओं में एक थे, जो उत्तर प्रदेश की सियासत में किंग रहे तो केंद्र की राजनीति में किंगमेकर. मुलायम सिंह अपने 55 साल के सियासी सफर में साढ़े तीन दशक तक तो केंद्र की राजनीति से दूरी बनाए रखा, लेकिन बसपा से दोस्ती टूटते ही यूपी से दिल्ली की तरफ रुख किया और देश की राजनीतिक के धुरी बन गए.
सांसद बनने क साथ ही केंद्र में मंत्री बने
उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा से नाता टूटने के बाद मुलायम सिंह सत्ता से रूखसत हुए तो उनकी राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थी, लेकिन मुलायम ने उसी समय नया दांव खेल दिया था. इस बार मुलायम यूपी की जगह केंद्र की ओर रुख कर गए. मुलायम सिंह अपने सियासी जीवन में पहली बार 1996 में लोकसभा का चुनाव लड़ा. मैनपुरी सीट से जीतकर सांसद बने और उनके साथ पार्टी के 17 सांसद जीते थे. 13 दिन में अटल सरकार गिरने के बाद संयुक्त मोर्चा का गठन किया गया, जिसके बाद एक समय लगा कि मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे. ऐसे में भले ही किंग नहीं बने, लेकिन किंगमेकर जरूर रहे.
सोनिया के अरमानों पर मुलायम ने फेरा पानी
साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने पुरानी सरकार के गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस से कहा कि सरकार बनाने लिए वो उनका समर्थन करेंगे. मुलायम के आश्वसन पर सोनिया गांधी सरकार बनाने की कवायद में जुट गई थी. सपा के भरोसे सोनिया ने 272 सांसदों के समर्थन का दावा किया. कांग्रेस की सरकार बनना लगभग तय माना जा रहा था. ऐसे में मुलायम सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर ऐसा प्लान बनाया कि सोनिया गांधी के अरमानों पर पानी फेर दिया. मुलायम सिंह ने कांग्रेस को समर्थन देने से मुकर गए, जिसके चलते कांग्रेस केंद्र में सरकार नहीं बना सकी और सोनिया गांधी की जमकर फजीहत हुई थी. इसके बाद 1999 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें सपा सांसदों की संख्या बढ़ी और केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी.
कलाम का समर्थन कर मुलायम ने लेफ्ट को दी मात
2002 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में बीजेपी ने एपीजे अब्दुल कमाल का नाम आगे किया तो वामपंथी दलों ने उनके खिलाफ कैप्टन लक्ष्मी सहगल को उतारा. हालांकि, बीजेपी के पास अब्दुल कलाम को जिताने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं थी. ऐसे में विपक्षी काफी मजबूत स्थिति में था. ऐसे में लेफ्ट अपने उम्मीदवार के जीत की उम्मीद लगाए हुए था, लेकिन मुलायम ने आखिरी समय पर वामपंथियों का समर्थन छोड़ते हुए कलाम की उम्मीदवारी पर अपनी मोहर लगा दी. इस तरह मुलायम ने लक्ष्मी सहगल का सारा खेल बिगाड़ दिया.
कांग्रेस सरकार के लिए बने संकट मोचक
मुलायम सिंह यादव कभी सोनिया की राह में रोड़ा बने तो एक समय आया जब कांग्रेस सरकार बचाने के लिए सबसे बड़े संकट मोचक बनकर उभरे. अमरिका से न्यूक्लियर डील के चलते साल 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार संकट में आ गई थी जब वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया था. ऐसे वक्त पर मनमोहन सरकार को बचाने के लिए मुलायम सिंह यादव आगे आए थे. कांग्रेस की यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देकर बचाई थी. मनमोहन सरकार को बचाने के लिए अमर सिंह ने दूसरे दलों के सांसदों के समर्थन के लिए राजी किया था. मुलायम सिंह के इस कदम से वामपंथी दलों के साथ उनके रिश्ते खराब हो गए थे, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की.
मुलायम सिंह यादव केंद्र की राजनीति में भले ही एक बार सरकार में रहे, लेकिन किंगमेकर की भूमिका में जरूर रहे. 2014 चुनाव के बाद तीसरे मोर्चे के लिए कवायद हुई तो मुलायम सिंह के घर पर जनता दल पृष्ठभूमि वाले नेताओं की बैठक हुई थी. मुलायम सिंह यादव के अगुवाई में जनता दल परिवार एक साथ एक होने के रणनीति बनी थी, जिसके लिए लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, चौधरी अजित सिंह, ओम प्रकाश चौटाला, एचडी देवगौड़ा सहित तमाम नेता सहमत थे. बिहार में लालू यादव ने रैली की थी, जिसमें सभी नेताओं को निमंत्रण दिया था. मुलायम सिंह यादव ने आखिरी समय में तीसरे मोर्चे से खुद को अलग कर लिया था. जिसके बाद जनता दल परिवार के एक होने के मंसूबों पर पानी फिर गया था. इतना ही नहीं बिहार में महागठबंधन के खिलाफ सपा चुनाव लड़ी थी.
मुलायम सिंह यादव ने केंद्र की सियासत में रहते हुए महिला आरक्षण से लेकर प्रमोशन में रिजर्वेशन जैसे बिल को पास नहीं होने दिया. सोनिया गांधी महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देना चाहती थी. साल 2008 में तत्कालीन विधि मंत्री एचआर भारद्वाज राज्यसभा में ‘नया और बेहतर’ महिला आरक्षण विधेयक पेश करने वाले थे. बिल की मुखालिफत सपा के मुलायम सिंह यादव और आरजेडी के लालू प्रसाद यादव कर रहे थे. सपा के सदस्यों ने राज्यसभा में बिल पर चर्चा से पहले उसे छीनने और फाड़ने की कोशिश की. इसके चलते बिल पास नहीं हो सका. ऐसे ही दलित के प्रमोशन में रिजर्वेशन बिल का मुलायम सिंह यादव ने विरेध कर उसे संसद में पास नहीं होने दिया. मुलायम सिंह के विरोध के चलते ही यूपीए सरकार इन दोनों ही बिल को पास नहीं कर सकी.