लखनऊ। समाजवादी पार्टी से नाता तोड़कर अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर अपने भतीजे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से गलबहियां करने के लिए बेताब हैं. मैनपुरी के चुनावी मंचों से रोज अखिलेश-शिवपाल एकता के वादे किए जा रहे हैं. शिवपाल के मन में उम्मीदें हिलोरें मार रही हैं. उन्हें लगता है कि जैसे बिगड़ी बात बन गई है. अपना और अपने पुत्र आदित्य यादव का भविष्य सुरक्षित कर लिया है. हालांकि सब कुछ इतना आसान नहीं है. सपा से दूरियों का जो लाभ भाजपा सरकार ने इन्हें दिया था, अब वह धीरे-धीरे वापस लिया जाने लगा है. शिवपाल के आगे अब बड़ी चुनौतियां आने वाली हैं, जिनकी आहट साफ सुनाई दे रही है.
एक कहावत है कि ‘दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.’ समाजवादी पार्टी खासतौर पर अखिलेश यादव से बैर होने के बाद जब 2018 में शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के रूप में अपना नया राजनीतिक दल बनाया, तो भाजपा को लगा कि शिवपाल से दोस्ती उसके लिए फायदे का सौदा है. भाजपा ने शिवपाल से सीधे गठबंधन करने के बजाए पर्दे के पीछे से हाथ मिलाया. आवास के नाम पर उन्हें बड़ा बंगला दिया, जिसमें वह अपनी पार्टी का कार्यालय भी चला सकें. उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को भी सुरक्षा दिलाई और इन सबसे बढ़कर गोमती रिवर फ्रंट (Gomti River Front) घोटाले में जांच की आंच से बचाए रखा. इस घोटाले में कई अभियंता अभी सलाखों के पीछे हैं.
2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने जो योजनाएं आरंभ की थीं, उनमें से एक थी गोमती रिवर फ्रंट योजना. इस योजना के तहत गोमती नदी के तटों पर सौंदर्यीकरण के काम होने थे. अखिलेश सरकार में उस समय शिवपाल सिंचाई मंत्री थे और यह काम उन्हीं के विभाग के तहत होने थे. 2017 में योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभालते ही गोमती रिवर फ्रंट (Gomti River Front) के विकास में हुए घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपी थी. इस मामले में जांच के दौरान कई अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई. कुछ आज भी जेल में हैं. स्वाभाविक है कि बड़ी मछलियों तक भी जांच की आंच पहुंचनी चाहिए थी. इतने वर्षों से ठंडी पड़ी जांच में अब तेजी आने वाली है. कहा जा रहा है कि तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव व तीन आईएएस अधिकारियों से सीबीआई कभी भी पूछताछ कर सकती है. स्वाभाविक है कि यह समाचार शिवपाल को परेशान करने वाला हो सकता है.