दयानंद पांडेय
मायावती लोगों की हवा निकालने में सर्वदा से ही पारंगत हैं। आज अपने जन्म-दिन पर राहुल गांधी और उन के भारत जोड़ो यात्रा की हवा निकाल दी है। राहुल गांधी ने भी गलती की। आज सुबह ही उन्हें मायावती को जन्म-दिन की बधाई थमा दी होती तो शायद मायावती कुछ मुलायम होतीं। वैसे मायावती की परंपरा है कि आप अपना सिर भी काट कर उन के चरणों में रख दें , वह अपने स्वार्थ के आगे कुछ नहीं देखतीं। लोकलाज भी नहीं।
मायावती का मुंगेरी लाल होना भी मजा देता है । असल में लोगों की याददाश्त बड़ी कमज़ोर होती है । 2019 की एक साझा प्रेस कांफ्रेंस में अखिलेश यादव ने मायावती के प्रधान मंत्री पद के सवाल पर दाएं , बाएं होते हुए, बात टालते हुए कहा कि प्रधान मंत्री उत्तर प्रदेश से ही होगा। मायावती अखिलेश के इस जवाब पर तब हंस कर रह गई थीं । लेकिन मायावती के जन्म-दिन पर उन के कार्यकर्ताओं ने उन्हें प्रधान मंत्री बनाने की तमन्ना करते हुए बधाई दे दी थी। उन्हों ने खुद भी यह गिफ्ट मांगा था कि मुझे सरकार दे दो । अच्छी बात है । लेकिन याद कीजिए 2004 के लोकसभा चुनाव । मायावती ने 2004 में भी अपने को प्रधान मंत्री पद के लिए बड़े जोर-शोर से प्रोजेक्ट किया था । क्या तो वह दलित की बेटी हैं ।
लेकिन दौलत की यह बेटी तब कहीं की नहीं रहीं और 2014 आते-आते लोकसभा में शून्य की स्थिति में आ गईं । बीते विधान सभा चुनाव में भी उन के तोते उड़े रहे । बीच-बीच में मायावती का प्रधान मंत्री बनने का सपना जागता रहा है । मुस्लिम आरक्षण का कार्ड खेल कर वह यह सपना बुन चुकी है । अखिलेश यादव से गठबंधन कर वह यह सपना बुन चुकी हैं । कांग्रेस से भी। वह मायावती जो अपना जनाधार और राजनीतिक ज़मीन पूरी तरह गंवा चुकी हैं । अखिलेश यादव से गठबंधन मायावती ने यह सोच कर किया था कि अखिलेश पिछड़ों के नेता हैं ।
तमाम लोगों की तरह मायावती भी भूल गई थीं कि देश में पिछड़ों के नेता जैसे कभी चरण सिंह होते थे , मुलायम सिंह यादव होते थे , उसी तरह अब पिछड़ों के नेता नरेंद्र मोदी हैं । पिछड़ों के नाम पर अखिलेश की समाजवादी पार्टी ने सिर्फ़ यादवों तक ही अपने को सीमित कर लिया है । और इस यादव में , शिवपाल यादव भी एक साझीदार हैं । गठबंधन के बावजूद 38 सीटों पर लड़ने वाली मायावती का क्या हश्र हुआ था 2019 में सर्वविदित है । 2023 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में एक सीट पर सिकुड़ कर शेष रह गई हैं। बाक़ी सपनों का क्या है , कोई भी देख सकता है , सोच सकता है । मैं भी सोचता हूं कि काश कभी मुझे भी साहित्य का नोबुल या बुकर पुरस्कार मिल जाए । मिल जाएगा क्या ? तो मायावती को भी एक बार फिर मुंगेरीलाल बन लेने में कोई नुकसान तो है नहीं ।
हां , लोगों की हवा निकालने में मायावती निपुण हैं। कभी मुलायम की निकाली थी। इतना कि मुलायम बौखला कर गेस्ट हाऊस कांड करवा बैठे। वह तो भाजपा के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी तब के समय मौक़े पर न रहे होते तो मुलायम के यादव गुंडे , मायावती की हत्या कर दिए होते। मायावती को फिजिकली बचा कर कमरे में धकेल कर बंद कर दिया था और गुंडों को भगा दिया था। अकेले दम पर। वह पहलवान थे , गुंडे नहीं। सो गुंडे , ब्रह्मदत्त द्विवेदी का मुक़ाबला नहीं कर पाए।
कभी अटल बिहारी वाजपेयी की भी हवा निकाली थी मायावती ने । वह अटल बिहारी वाजपेयी जिस ने न सिर्फ़ लोकसभा में उसी दिन मामला उठा कर , क़ानूनी सुरक्षा दिला कर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम के गुंडों से उन की जान बचाई थी बल्कि उन्हें भाजपा में भारी विरोध के बावजूद समर्थन दे कर मुख्यमंत्री बनवाया था। उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में समर्थन का वादा कर के भी समर्थन देने से भाग गई थीं मायावती। अटल जी की सरकार गिर गई थी।
और आज फोकट में लतीफ़ा गांधी की भी हवा निकाल दी है , यह कह कर कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव वह अकेले लड़ेंगी। एक बात यह भी है कि जब तक नरेंद्र मोदी , उन की सी बी आई और ई डी है , कोई भी भ्रष्ट नेता राहुल गांधी के भारत जोड़ो के लतीफ़े पर हंसता ही रहेगा , उन की हवा निकालता ही रहेगा। साथ नहीं जाएगा। गैर राजनीतिक लोग ही उन की यात्रा में उन के साथ फ़ोटो खिंचवाते रहेंगे। लेकिन उन के साथ उतना चल नहीं पाएंगे।
क्यों कि शारीरिक रुप से राहुल जितना फिट हैं , यह लोग नहीं हैं। चाहे रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे रघुराम राजन हों , एन डी टी वी वाले रवीश कुमार या फ़िल्म अभिनेता कमल हासन आदि-इत्यादि। पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि शारीरिक रुप से फिट राहुल गांधी , मानसिक रुप से भी कब फिट होंगे ? टी शर्ट ब्वाय कब तक बने रहेंगे ? ताकि कांग्रेस के अलावा और लोग भी , ख़ास कर जनता-जनार्दन भी उन्हें प्रधानमंत्री मानने के लिए सहमत हो जाए। अभी तो उन की मानसिक दशा , उन्हें लतीफ़ा ही घोषित करती जा रही है। निरंतर !