चुनाव से पहले 400 दिन का शोर, यूपी पर है पूरा जोर

अनिल सिंह 

दिल्‍ली में भाजपा की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। इस साल नौ राज्‍यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें कर्नाटक, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश जैसे कई बड़े एवं महत्‍वपूर्ण राज्‍य शामिल हैं। पर, भाजपा की निगाह सर्वाधिक सीटों वाले उत्तर प्रदेश पर है। राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा कार्यकाल विस्‍तार के बाद अपना पहला कार्यक्रम 20 जनवरी को गाजीपुर में आयोजित सभा से करने जा रहे हैं।

बीते दिनों लखनऊ में राष्‍ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह, प्रदेश अध्‍यक्ष भूपेंद्र चौधरी एवं प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल के बीच बदलाव को लेकर चर्चा हो चुकी है। एक व्‍यक्ति एक पद के भाजपा के सिद्धांत के आधार पर तीन पदाधिकारियों की संगठन से विदायी तय है। प्रदेश उपाध्‍यक्ष दयाशंकर सिंह, अरविंद कुमार शर्मा तथा प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर योगी मंत्रिमंडल में मंत्री बन चुके हैं। इनके स्‍थान पर नये चेहरों को मौका मिलेगा। दूसरी तरफ लंबे समय से संगठन में दायित्‍व निभा रहे पदाधिकारी भी बाहर किये जायेंगे।

महिला मोर्चा के प्रदेश अध्‍यक्ष पद से भी गीता शाक्‍य का पत्‍ता कटना तय है। इन्‍हें प्रदेश संगठन में समायोजित किया जा सकता है। इन्‍हें राज्‍यसभा सदस्‍य बनाकर पार्टी ने पिछड़ों के साथ महिलाओं को भी साधा था, लेकिन मैनपुरी उपचुनाव में इसका असर नहीं दिखा। अब किसी नये चेहरे को यह जिम्‍मेदारी सौंपी जायेगी। कई क्षेत्रीय अध्‍यक्षों को बदला जाना संभावित है। खतौली और मैनपुरी उपचुनाव में हार के बाद पश्चिम एवं ब्रज दोनों क्षेत्रीय अध्‍यक्षों को बदले जाने की तैयारी है। ब्रज में रजनीकांत माहेश्‍वरी की जगह किसी पिछड़े चेहरे को स्‍थान मिल सकता है।

पश्चिम क्षेत्र में जाट समुदाय से आने वाले अध्‍यक्ष मोहित बेनीवाल का हटना तय है। मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा उपचुनाव में प्रदेश अध्‍यक्ष, क्षेत्रीय अध्‍यक्ष, स्‍थानीय सांसद के जाट होने के बावजूद जाट वोटर रालोद के साथ गया था। सोशल इंजीनियरिंग के तहत भाजपा अब जाट क्षेत्रीय अध्‍यक्ष को हटाकर किसी गुर्जर या त्‍यागी बिरादरी को क्षेत्रीय अध्‍यक्ष बना सकती है। अवध क्षेत्र के अध्‍यक्ष का पद भी शेष नारायण मिश्रा के निधन के बाद से खाली है। इस पर किसी ब्राह्मण चेहरे को ही महत्त्व दिया जायेगा। काशी क्षेत्र के अध्‍यक्ष पद पर भी बदलाव संभव है।

लोकसभा चुनाव में कई सांसदों के टिकट कटने हैं। कई की सीट बदले जानी हैं। शीर्ष नेतृत्‍व ने इसका ब्‍लूप्रिंट भी तैयार करा रखा है, लिहाजा कई जिलों एवं महानगरों के अध्‍यक्ष भी जातीय एवं क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से बदले जायेंगे। कई जिलाध्‍यक्षों पर भ्रष्‍टाचार, परिवारवाद, पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के आरोप लगे हैं, उनका हटना तय है। साथ ही जिलाध्‍यक्ष एवं महानगर अध्‍यक्ष पद पर दो कार्यकाल पूरा करने वाले चेहरे भी बदले जायेंगे। आतंरिक समीकरण के अलावा भाजपा बाहरी समीकरणों को भी ठीक करने में जुटी हुई है।

राजनीतिक रणनीतियों के साथ भाजपा उन सीटों पर अपना बूथ मजबूत कर रही है, जहां पिछली बार वह हार गई थी। यूपी भाजपा मोदी एवं योगी सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों का डाटा जुटा रही है। इसके लिये जिला स्‍तर पर कार्यकर्ताओं को डाटा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

भाजपा यूपी में 2014 के नतीजे को दोहराने का लक्ष्‍य लेकर चल रही है। यूपी को बिहार से हो सकने वाले नुकसान की भरपायी वाले राज्‍यों की सूची में रखा गया है। पार्टी यहां एक बार फिर 70 से ज्‍यादा सीटें जीतने के लक्ष्‍य के साथ काम कर रही है।

यूपी में भाजपा ने 2014 में अपना दल के साथ 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में यह आंकड़ा 64 रह गया था। आजमगढ़ एवं रामपुर उपचुनाव जीत के बाद भाजपा 66 तक पहुंच गई है। 2019 में यूपी-बिहार की 120 सीटों में भाजपा ने अपना दल, लोजपा तथा जदयू के साथ मिलकर 103 सीटें हासिल की थी। जदयू के अलग हो जाने के बाद भाजपा के लिये बिहार में मुश्किल बढ़ गई है। बिहार के मुकाबले भाजपा के सामने यूपी में आसान विपक्ष है, लिहाजा बिहार के नुकसान की भरपाई करने में उत्तर प्रदेश सबसे महत्‍वपूर्ण राज्‍य हो सकता है।