रूस से भारत को दूर करने के लिए अमेरिका ने उठाया बड़ा कदम

नई दिल्ली। चीन से मुकाबला करने के लिए भारत और अमेरिका ने महत्वाकांक्षी तकनीक और रक्षा पहल शुरू की है. भारत-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने और हथियारों के लिए रूस पर से निर्भरता कम करने के लिए अमेरिका और भारत उन्नत रक्षा और कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी साझा करने की योजना बना रहे हैं. अमेरिका कई बार कह चुका है कि हथियारों के लिए रूस पर अपनी निर्भरता की वजह से भारत उसके ज्यादा करीब है इसलिए अमेरिका भी भारत को आधुनिक तकनीक मुहैया कराने में सहयोग करेगा.

इस रक्षा पहल को ‘यूएस-इंडिया इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज’ नाम दिया गया है. सेना और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के व्यापक एजेंडे के साथ भारत और अमेरिका ने मंगलवार को इस योजना की जानकारी दी.

‘द इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज’ चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए उठाया गया कदम है.

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, “भू-राजनीतिक चुनौतियों का फ्रेमवर्क केवल रूस या चीन की ओर से ही नहीं बनाया जाएगा. क्योंकि चीन की आक्रामक सैन्य रणनीति और आर्थिक ताकत का गहरा असर भारत की राजधानी दिल्ली के अलावा दुनिया भर की राजधानियों पर पड़ा है.”

चीन से मुकाबला करने के लिए भारत और अमेरिका के बीच कई अहम समझौते

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मंगलवार को वॉशिंगटन में मुलाकात की.  इस दौरान दोनों देशों ने संयुक्त हथियार उत्पादन को सुविधाजनक बनाने के लिए मैकेनिज्म बनाने के अलावा क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5G वायरलेस नेटवर्क और सेमीकंडक्टर्स सहित कई क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमत हुए.

मई 2022 में जापान की राजधानी टोक्यो में मुलाकात के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इस समझौते के लिए सहमत हुए थे.

सुलिवन ने कहा, “यह वास्तव में दोनों नेताओं द्वारा एक रणनीतिक दांव है. अमेरिका और भारत के बीच एक मजबूत तंत्र बनाने से दोनों देशों के रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी हितों की पूर्ति होगी.”

रणनीतिक तौर पर बड़ा कदमः अमेरिका

सुलिवन ने कहा, “यह पहल अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के इंडो-पैसिफिक रीजन में सहयोगियों और भागीदार देशों के साथ संबंध बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है. ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ औकस पनडुब्बी समझौते और क्वाड देशों में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ भी संबंध बढ़ाना इसी रणनीति का हिस्सा है.”

सुलविन ने आगे कहा कि लोकतांत्रिक देशों को इंडो-पैसिफिक रीजन में ताकत की स्थिति में लाने के लिए रणनीतिक तौर पर यह एक बड़ा कदम है.

एक अन्य अमेरिकी अधिकारी ने फाइनेंशियल टाइम्स से बात करते हुए कहा, “प्रौद्योगिकी पहल के साथ कई अन्य समझौते होना यह दर्शाता है कि वर्ष 2023 अमेरिका-भारत कूटनीति के लिहाज से शायद सबसे बढ़िया साल होगा. क्योंकि भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी है.”

अधिकारी ने आगे कहा, “भारत चीन के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों खासकर 2020 में गलवान घाटी में गंभीर सीमा संघर्ष के बाद अमेरिका के और करीब आया है. भारत भले ही इसका प्रचार न कर रहा हो. लेकिन यह एक तरह का 9/11 पर्ल हार्बर-शैली का रणनीतिक सोच है.”

शुरुआत में जेट इंजन और आर्टिलरी सिस्टम पर फोकस

भारत और अमेरिका हथियारों को साथ में विकसित करने के शुरुआती प्रयास में जेट इंजन, आर्टिलरी सिस्टम और बख्तरबंद पैदल सेना के वाहनों पर फोकस करेंगे. सुलिवान के अनुसार, जनरल इलेक्ट्रिक ने दोनों देशों के साथ मिलकर जेट इंजन बनाने के लिए अमेरिकी सरकार को एक प्रस्ताव पेश किया है.

सार्वजनिक-निजी संयुक्त भागीदारी को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों से मुलाकात की. इस मुलाकात में माइक्रोन, लॉकहीड मार्टिन और एप्लाइड मैटेरियल्स जैसी अमेरिकी कंपनियां शामिल हुई. वहीं भारत की ओर से रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस और आर्सेलर मित्तल शामिल हुए.
चीन का निगेटिव व्यवहार दुनिया के लिए खतरा

सुलिवन ने कहा कि रक्षा पहल भारत के भू-राजनीतिक ओरियंटेशन में मौलिक बदलाव का सुझाव नहीं देता है. लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि चीन के निगेटिव व्यवहार से दुनिया भर के देशों पर असर पड़ रहा है

उन्होंने कहा, “चीन का आर्थिक प्रयोग, आक्रामक सैन्य मूव्स, भविष्य के उद्योगों पर हावी होने के अलावा भविष्य की आपूर्ति श्रृंखलाओं को नियंत्रित करने का प्रयास ने भारत की सोच पर गहरा प्रभाव डाला है.”

सुलिवन ने कहा कि व्हाइट हाउस भारत से विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस के साथ काम करेगा. भारतीय प्रतिभा अमेरिका के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका अपने घरेलू चिप उद्योग को पुनर्जीवित करने के प्रयास में है.