लखनऊ। भगवान राम की मूर्ति के निर्माण के लिए नेपाल के गंडकी नदी से शालिग्राम की विशाल शिला लंबी यात्रा तय करने के बाद अयोध्या पहुंच गई है. अयोध्या में रामलला की मूर्ति नेपाल के शालिग्राम शिलाओं से बनेगी. हिंदू धर्म में शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं. इस शालिग्राम की शिला को लगभग छह करोड़ साल पुराना बताया जा रहा है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भौमिकी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बीपी सिंह ने बताया कि आमतौर पर ऐसी शिलाएं 14 करोड़ से लेकर 20 करोड़ वर्ष पुरानी जुरासिक काल की होती हैं और इसकी उम्र का अंदाजा शिला में एम्यूनोएड के आधार पर लगाया जा सकता है. इसका विकास बहुत तेजी से हुआ है. इसके आधार पर शिलाओं की उम्र का पता लगाना काफी सटीक माना जाता है.
इस तरह के एम्यूनोएड स्फीति में भी मिलते हैं और कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी पाए जाते हैं. यह एम्यूनोएड चक्र जैसा दिखता है और इसमें कॉलिंग होती है. इसमें एक हिस्सा एम्बो होता है, जिसे एम्यूनोएड का मुंह कह सकते हैं. यह समुद्र के तल पर चिपके रहते थे और काफी भारी भरकम रूप में पाए जाते हैं. यह जीवाश्म के रूप में लाइमस्टोन यानी चूना पत्थरो में आमतौर पर मिल जाते हैं.
कैसे लाखों वर्षों तक सुरक्षित रहेगी मूर्ति?
प्रोफेसर बीपी सिंह ने आगे कहा, ‘जहां तक इस तरह के एम्यूनोएड के संरक्षण और आगे की उम्र के बारे में सवाल है तो यह एसिड से रिएक्ट करते हैं. इसलिए इसे एसिड से बचाना चाहिए और जहां तक संभव हो इसे बैक्टीरिया और फंगस से भी बचाना चाहिए. इसके लिए इसे दूध, फल या किसी भी तरह की खाद्य सामग्री से दूर रखें. क्योंकि उसके जरिए बैक्टीरिया और फंगस इस लाइमस्टोन को नष्ट कर सकते हैं. इससे लाइमस्टोन को नुकसान होगा. अगर इसे संरक्षित करके रखा जाए तो कई लाख करोड़ों साल तक यह सुरक्षित रह सकता है.’