देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को राजनीति और देश प्रेम विरासत में मिला था। उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू भी कांग्रेस के नरमपंथी धड़े के नेताओं में से एक थे। नेहरू खानदान कश्मीर का रहने वाला था, लेकिन 18वीं सदी की शुरुआत में उनका परिवार दिल्ली आकर रहने लगा था। इसके बाद यह सफर इलाहाबाद जाकर समाप्त हुआ और यहीं नेहरू परिवार का स्थायी ठिकाना बना। आज भी स्वराज और आनंद भवन में नेहरू-गांधी परिवार की यादें संजोकर रखी हुई हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में तो नेहरू परिवार का घर आनंद भवन क्रांतिकारियों का गढ़ बना हुआ था।
हालांकि यहां वह तीन साल ही प्रैक्टिस कर पाए थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील रहे उनके भाई नंदलाल का देहांत हो गया। 42 साल की उम्र में नंदलाल 5 बेटों और दो बेटियों को छोड़ गए थे। इस बड़े परिवार की जिम्मेदारी अचानक मोतीलाल पर आई तो वह सब छोड़कर इलाहाबाद ही बस गए। यहां वह हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे, जो उस दौर में बड़ा केंद्र था। मद्रास, बॉम्बे और इलाहाबाद हाई कोर्ट का उस समय नाम हुआ करता था। मोतीलाल नेहरू वकालत में विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और खूब सफल हुए। यही उनके अमीर बनने का राज था और फिर जवाहर लाल नेहरू की पीढ़ी में तो बेशुमार दौलत के कई किस्से सुनाए ही जाते हैं।
मोती लाल नेहरू कांग्रेस से जुड़ने वाले शुरुआती दौर के नेताओं में से एक थे। उन्होंने 1888 में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लिया था। इसके बाद 1907 में उन्होंन नरमपंथी नेताओं के एक कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता की थी। इसमें उन्होंने अतिवादी नेताओं पर तीखा हमला बोला था। मोतीलाल नेहरू 1909 में यूपी विधानपरिषद के सदस्य भी चुने गए थे। इसके बाद वह कई अहम पदों पर रहे और यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी निभाई थी। द इंडिपेंडेंट नाम से एक अखबार की लॉन्चिंग भी मोतीलाल नेहरू ने की थी। 6 फरवरी, 1931 को मोतीलाल नेहरू का निधन हो गया था।