लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों नई राजनीतिक इबारत लिखने की कवायद में जुटे हैं. सपा अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम को साधे रखते हुए दलित-ओबीसी को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. अखिलेश रामचरितमानस से लेकर जातिगत जनगणना तक के मुद्दे के बहाने नेरेटिव सेट कर रहे हैं, जिससे सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि बसपा के भी वोटबैंक में सेंधमारी का प्लान है. इतना ही नहीं, सपा अंबेडकर की विरासत को अपनाने के साथ-साथ अंबेडकरवादी नेताओं को भी अहमियत दे रही है. ऐसे में मायावती बेचैन हो गई हैं और गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाकर सपा के दलित एजेंडे की हवा निकालने की कोशिश की है?
दलितों के मसीहा बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर की राजनीतिक परिकल्पना को लेकर कांशीराम ने बसपा की सियासत को खड़ा किया था. बसपा के महापुरुषों में अंबेडकर का सबसे ऊपर दर्जा था, जबकि सपा लोहिया की समाजवादी विचाराधारा को लेकर चलती रही. लेकिन अखिलेश यादव ने लोहिया के साथ-साथ अंबेडकर की सियासत को भी अपना लिया है. सपा के कार्यक्रमों और मंचों पर अंबेडकर की तस्वीर साफ दिखाई देती हैं. इतना ही नहीं कांशीराम की प्रयोगशाला से निकले अंबेडकरवादी नेताओं को सपा में खास अहमियत मिल रही है. इस तरह से अंबेडकरवादी सियासत पर समाजवादी पार्टी पूरी तरह से अपना दावा मजबूत कर रही है, जो मायावती को बेचैन करने वाला कदम है.
2. बसपा से आए नेताओं को तवज्जो
सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अखिलेश यादव ने बसपा पृष्ठभूमि वाले नेताओं को जिस तरह से जरूरी जिम्मेदारियां सौंपी हैं, उसके पीछे उनका सियासी मकसद छिपा है. स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. इतना ही नहीं त्रिभवन दत्त, डा. महेश वर्मा और विनय शंकर तिवारी को राष्ट्रीय सचिव का जिम्मा दिया गया है. इसमें से बसपा में रहते हुए तीन नेता प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और पार्टी विधायक दल के नेता सदन रह चुके हैं. बसपा से आए नेताओं को जिस तरह से अखिलेश ने इज्जत दी है, उसके पीछे बसपा के वोटबैंक को अपने पाले में लाने की रणनीति मानी जा रही है. मायावती को सपा की यह प्लान बेचैन कर रहा है, क्योंकि इन नेताओं की अपने-अपने समाज में मजबूत पकड़ रही है.
3. रामचरितमानस की बिहार से यूपी तक सियासी धुन
रामचरितमानस की चौपाई को लेकर बिहार से शुरू हुई सियासत के जरिए उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव दलित वोटबैंक के बीच अपनी गहरी पैठ बनाना चाहते हैं. रामचरितमानस पर मोर्चा खोलने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा महासचिव बनाते हुए जिस तरह से जातिगत जनगणना पर आगे बढ़ने के लिए अखिलेश यादव ने बयान दिया, उससे साफ है कि सपा की सियासत किस दिशा में जा रही है. अखिलेश ने जैसे ही खुद को शूद्र बताया तो सपा कार्यालय पर ‘गर्व से कहो कि हम शुद्र हैं’ के होर्डिंग लग गए. इस तरह से सपा की कोशिश बसपा के दलित और अति पिछड़ों को अपने पाले में लाने की है. मायावती ने इसके लिए फौरन सपा को दलित विरोधी कटघरे में खड़ी करने की कोशिश की.
बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर कहा था, ‘रामचरितमानस और मनुस्मृति नहीं बल्कि दलितों पिछड़ों के लिए बाबा साहब का संविधान सबसे अहम है. उस संविधान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग का जिक्र है. सपा जिस तरह से शूद्र कह रही है, ऐसे में वह समाज का बार-बार अपमान कर रही है और बाबा साहब के संविधान की भी अवहेलना कर रही है.’ इस बात के जरिए मायावती कहीं ना कहीं अपनी पार्टी के कैडर और कार्यकर्ताओं को मैसेज देना चाहती हैं कि सपा केवल राजनीति करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल कर रही है, उसने सत्ता में रहते ना तो इस समाज के लिए और ना ही समाज के महापुरुषों का सम्मान किया है. साथ ही उन्होंने गेस्ट हाउस कांड का भी जिक्र किया था.
4. बीजेपी की बी-टीम का नेरेटिव
अखिलेश यादव लगातार मायावती और बसपा को बीजेपी की बी-टीम के होने का आरोप लगाते हैं. इस नेरेटिव के चलते 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को तगड़ा झटका लगा था. मुस्लिम वोटबैंक का पूरा-पूरा वोट सपा में चला गया. सत्ता विरोधी वोट भी पूरा सपा के संग चला गया. बसपा का कोर वोटबैंक दलित समुदाय का वोट भी सपा को पहले से ज्यादा मिला. ऐसे में मायावती लगातार यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि यूपी की सियासत में सपा किसी भी सूरत में बीजेपी को हराने का ताकत नहीं रखती है. मुसलमानों को साधने के लिए लगातार सक्रिय है, लेकिन अखिलेश यादव बसपा को बीजेपी की बी टीम का आरोप लगाने से पीछे नहीं हट रहे हैं. यह बात मायावती को लगातार परेशान कर रही है. मायावती बीजेपी से ज्यादा सपा को लेकर चिंतित हैं.
5. चंद्रशेखर आजाद से अखिलेश की नजदीकी
यूपी की सियासत में मायावती के विकल्प बनने के लिए दलित नेता चंद्रशेखर आजाद लगातार कोशिश कर रहे हैं. 2024 के चुनाव से पहले चंद्रशेखर की सपा के साथ नजदीकियां बढ़ने लगी हैं. खतौली उपचुनाव में चंद्रशेखर ने रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया था तो रामपुर लोकसभा उपचुनाव में आजम खान और अखिलेश यादव के साथ मंच शेयर किया था. आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी ने चंद्रशेखर को सपा गठबंधन में शामिल होने पर मुहर भी लगा दी है. चंद्रशेखर की सपा गठबंधन में हो रही एंट्री से भी मायावती बेचैन हैं, क्योंकि दलितों का एक बड़ा तबका उनके साथ जा सकता है. दलितों के बीच चंद्रशेखर की पकड़ बन रही है और अगर सपा में शामिल होकर चुनाव लड़ते हैं तो निश्चित तौर पर उसका सियासी नुकसान बसपा को ही होगा. इसीलिए मायावती चिंतित नजर आ रही हैं.