लखनऊ। यह फोटो गैलेक्सी अस्पताल की फार्मेसी की है। इंटर पास खुर्शीद इसे संभालते हैं। वहीं पर्चा पढ़कर दवा देते हैं। अस्पताल में 15 आईसीयू बेड हैं लेकिन एक भी डाक्टर मौके पर नहीं है। नर्स से पूछा डाक्टर कौन है? जवाब मिला, डाक्टर साहब शाम को मिलेंगे। फिर पूछा, किसी मरीज की तबीयत अचानक बिगड़ी तो क्या करेंगे? नर्स ने कहा, तब बुला लिया जाएगा।
थोड़ा आगे बढ़ने पर अल्फा अस्पताल मिला। यहां कैंसर सर्जरी से लेकर दुनिया के सारे इलाज होते हैं। केवल एक नर्स शालिनी मरीजों को संभाले थी। यहां भी इंटर पास जितेंद्र दवा दे रहा था। जागरण टीम के पहुंचने की खबर पाकर थोड़ी देर में डाक्टर फिरोज हांफते हुए पहुंचे। फिरोज के पास बीयूएमएस की डिग्री है लेकिन वह सारे रोगों के इलाज का बोर्ड लगाए हैं। इसी रास्ते पर तुलसी अस्पताल है। पहले इसका नाम न्यू ट्रामा सेंटर तुलसी था लेकिन अब बदल गया है।
डायरेक्टर देशराज हैं लेकिन उनके भाई नंदलाल अस्पताल चलाते हैं। देशराज एक और अस्पताल कहीं बनवा रहे हैं। नाम क्यों बदला इस पर नंदलाल बोले पिछली बार सीएमओ साहब की टीम आई थी तब कहा था कि ट्रामा सेंटर का बोर्ड हटाकर अस्पताल चलाते रहो। यह वही अस्पताल है जहां प्रशासन के छापे में ओटी में बीयर की कैन मिली थी। दैनिक जागरण ने करीब एक साल पहले तथाकथित डाक्टरों का सच सामने रखा था जो अफसरों की नाक के नीचे दो-तीन कमरों में ट्रामा सेंटर खोलकर इलाज के नाम पर लूट कर रहे थे।
केवल हरदोई रोड पर ही टीम को पांच किलोमीटर में 80 अवैध ट्रामा सेंटर चलते मिले थे। इस खुलासे के बाद स्वास्थ्य महकमा जागा था और 45 नोटिस देकर कई अस्पतालों पर ताले भी डाले थे। स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई और सख्ती का सच जानने बुधवार को जागरण टीम फिर हरदोई रोड पर निकली थी। टीम में शामिल अम्बिका वाजपेयी, राजीव बाजपेयी, निशांत यादव और रामांशी मिश्र ने पड़ताल में यह पाया कि अस्पताल धड़ल्ले से उसी तरह चल रहे हैं, बस फर्क इतना है कि नियम कानूनों का बेजा फायदा उठाने के लिए ट्रामा सेंटर का बोर्ड हटा दिया गया है।